दुलार के चक्‍कर में बच्‍चों को टॉन्सिल की समस्‍या गिफ्ट मत कीजिए
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दुलार के चक्‍कर में बच्‍चों को टॉन्सिल की समस्‍या गिफ्ट मत कीजिए

अपने झूठे हाथों से बच्‍चों को खाना कभी न खिलाएं. इस आदत के चलते बच्‍चे के मुंह में पहुंचे कीटाणु टॉन्सिलिसिट की समस्‍या पैदा कर देते हैं. 

दुलार के चक्‍कर में बच्‍चों को टॉन्सिल की समस्‍या गिफ्ट मत कीजिए

बच्‍चों में आम हो चली टॉन्सिलिसिट (टॉन्सिल) की समस्‍या कई बार आप अनजाने में उन्‍हें गिफ्ट कर देते हैं. आपको यह सुनकर थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन बहुत हद तक यह सच है. दरअसल, बच्‍चों में टॉन्सिलिसिट की समस्‍या की एक बड़ी वजह उनके साथ एक ही बर्तन में खाना खाने की आदत भी है. जी हां, अक्‍सर बच्‍चों से प्‍यार जताने के लिए आप उन्‍हें अपने साथ खाना खाने के लिए बैठा लेते हैं. जिस थाली, प्‍लेट या चम्‍मच से आप खाना खा रहे होते हैं, उसी थाली, प्‍लेट या चम्‍मच से आप बच्‍चों को भी खाना खिलाना शुरू कर देते हैं. आपका यही प्‍यार बच्‍चों को टॉन्सिलिसिट की समस्‍या गिफ्ट में दे देता है. बच्‍चों को यदि आप टॉन्सिलिसिट की बीमारी से बचाना चाहते हैं तो आपको कोशिश करनी चाहिए कि आप एक साथा खाना खाएं लेकिन प्‍लेट या थाली और चम्‍मच अलग अलग हों.

इसके अलावा अपने झूठे हाथों से बच्‍चों को खाना कभी न खिलाएं. इस आदत के चलते बच्‍चे के मुंह में पहुंचे कीटाणु टॉन्सिलिसिट की समस्‍या पैदा कर देते हैं. हमें बच्‍चों के हाइजीन यानि साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए और उनमें बार-बार हाथ धोने की आदत डालना चाहिए. खाने-पीने के बर्तनों को दूसरों के साथ शेयर न करने की आदत से बच्चों में संक्रमण की संभावना काफी हद तक कम किया जा सकता है. आप बच्चे के स्कूल में भी हाइजीन पर ध्यान देने के लिए भी कह सकते हैं. बच्‍चों को बीमारी से बचाने के लिए उनकी प्रतिरक्षी क्षमता बढ़ाने पर हर माता-पिता ध्‍यान देना चाहिए. इसके लिए बच्चे को संतुलित आहार देना और सुनिश्चित करना शामिल है कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में ताज़ी हवा और आराम मिले. आपको लगता है कि आपके बच्‍चे के उपरी श्वसन मार्ग में कोई भी संक्रमण है तो तुंरत डॉक्टर की सलाह ले, ताकि एबसेस न बन पाए.

अगर डॉक्टर ने एंटीबायोटिक दवा दी है तो उसका पूरा कोर्स करें और एंटीबायोटिक दवाएं सिर्फ डॉक्टर के कहने पर ही लें. जब हम बात टॉन्सिलिटिस की बात कर रहे हैं तो आपको बच्‍चों के गले से संबंधित हर समस्‍या के बारे में थोड़ा विस्‍तार से बताते हैं. इन समस्‍याओं में टॉन्सिलिटिस, पेरीटॉन्सिलर एबसेस (क्विन्सी), एडीनॉइडिटिस टॉन्सिल्स और रेट्रोफैरिन्जियल एबसेस अहम हैं. आइए अब इन समस्‍याओं के बारे में विस्‍तार से आपको बताते हैं.

टॉन्सिलिटिस (Tonsillitis)
गले में सूजन वायरस के कारण होती है, इनके लक्षण कुछ ही दिनों तक रहते हैं. जु़काम खांसी इसके आम लक्षण हैं, इसके लिए आमतौर पर किसी इलाज की ज़रूरत नहीं होती. पैरासिटामोल और आइबोप्रोफेन जैसी दवाओं से राहत मिल जाती है. वहीं दूसरी ओर बैक्टीरियल टॉन्सिलाइटिस ज़्यादा गंभीर होता है और एक सप्ताह या अधिक समय तक चलता है. टॉन्सिल्स मुंह के पिछले हिस्से में मौजूद छोटी ग्रंथियां हैं जो बच्चों को संक्रमण से बचाती हैं, लेकिन कभी कभी इन्हीं ग्रंथियों में सूजन आ जाती है. टॉन्सिल्स में संक्रमण टॉन्सिलाईटिस कहलाता है. लक्षण- बच्चा खाने पीने से मना करता है. उसे बुखार हो जाता है, गले की ग्रंथियों में सूजन आ जाती है और टॉन्सिल्स पर सफेद धब्बे हो जाते हैं. आमतौर पर इसके साथ नाक बहना या खांसी जैसे लक्षण दिखाई नहीं देते. इसके इलाज के लिए एंटीबायोटिक, एनलजेसिक, एंटीपायरेटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है. नमक वाले पानी से ग़रारे करने से भी आराम मिलता है. यह बीमारी एक सप्ताह में ठीक हो जाती है. अगर यह बार-बार हो तो बच्चे को अक्सर स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ती है. गंभीर मामलों में सर्जरी (टॉन्सिलेक्टोमी) पर विचार किया जा सकता है, जिसमें टॉन्सिल्स को पूरी तरह से निकाल दिया जाता है. हालांकि इस तरह की सर्जरी में खून बहने की संभावना बहुत कम 1 से 2 फीसदी होती हैं.

पेरीटॉन्सिलर एबसेस (क्विन्सी) {Peritonsillar abscess or Quinsy}
पेरीटॉन्सिलर एबसेस में मुंह के पिछले हिस्से में टॉन्सिल्स के पास के टिश्यूज़ में पस यानि मवाद भर जाती है. इसमें मरीज़ को बहुत अधिक दर्द होता है और उसके लिए मुंह खोलना भी मुश्किल हो जाता है. आमतौर पर ऐसा तब होता है जब टॉन्सिल्स का संक्रमण टॉन्सिल्स के आस-पास में पूरे हिस्सों में फैल जाए. इस तरह की समस्या आमतौर पर नहीं होती है क्योंकि ज़्यादातर मामलों में टॉन्सिलाइटिस के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दे दिए जाते हैं. लक्षण- गले में दर्द, तेज़ बुखार, ठंड लगना, मुंह खोलने में परेशानी, निगलने में परेशानी, आवाज़ में घरघराहट, सांस लेने में परेशानी. टॉन्सिल्स में सूजन होने पर युवुला एक तरफ खिसक जाता है, जिससे इसमें दर्द होने लगता है. अगर इसका इलाज न किया जाए तो संक्रमण जबड़े, गर्दन और छाती में फैल सकता है. गंभीर स्थिति में न्युमोनिया भी हो सकता है. इसका इलाज करने के लिए एबसेस पर छोटा कट लगाकर पस निकाल दी जाती है. इसक बाद एंटीबायोटिक, पेनकिलर दवाओं और बीटाडीन से इलाज किया जाता है.

एडीनॉइडिटिस टॉन्सिल्स (Adenoiditis Tonsillitis)
एडीनॉइडिटिस टॉन्सिल्स मुंह में मौजूद संवेदनशील ग्रंथियां होती हैं. एडीनॉयड्स ऐसी ग्रंथियां हैं जो मुंह की छत पर नाक के पिछले हिस्से में होती हैं. एडीनॉयड्स नाक और मुंह में मौजूद हानिकर बैक्टीरिया को नष्ट करता है. एडीनॉयड्स एंटीबॉडीज़ बनाते हैं, जिनसे संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है. ये ग्रंथियां भी संक्रमित हो सकती हैं. बड़े और संक्रमित एडीनॉयड्स को एडीनॉयडिटिस कहलाते हैं. लक्षण- बच्चे का नाकबंद हो जाता है, जिससे वह मुंह से सांस लेने लगता है, खंर्राटे, गले में सूजन, कान में दर्द, कभी कभी गंभीर एप्निया (जिसमें नींद के दौरान कभी बच्चे की सांस रुक जाती है). टॉन्सिल्स के विपरीत एडीनॉयड्स मुंह खोलने पर दिखाई नहीं देते हैं. ईएनटी स्पेशलिस्ट छोटे से मिरर, नासल एंडोस्कोपी और एक्स-रे की मदद से इसे देखता है. इसका इलाज एंटीबायोटिक्स, एंटीहिस्टामाईन, पेनकिलर दवाओं और नोज़ ड्रॉप की मदद से किया जाता है. हालांकि अगर बच्चे को बार-बार संक्रमण हो या सांस लेने में परेशानी हो और एंटीबायोटिक दवाओं से आराम न मिल रहा हो तो सर्जरी के द्वारा एडीनॉयड्स (एडीनॉयडेक्टोमी) को निकाल दिया जाता है.

रेट्रोफैरिन्जियल एबसेस (Retroeharyngeal Abscess)
यह गले में होने वाला गंभीर संक्रमण है. यह आमतौर पर गले के लिम्फ नोड से शुरू होता है. हालांकि यह आम बीमारी नहीं है, यह 8 साल से कम उम्र के बच्चों में पाई जाती है. 2-4 साल के बच्चों में यह अधिक आम है. छोटे बच्चों में इस संक्रमण की संभावना अधिक होती है क्योंकि गले में मौजूद लिम्फ नोड संक्रमित हो सकते हैं. जब छोटा बच्चा बड़ा होता है तो ये लिम्फ नोड पीछे हटने लगते हैं. लिम्फ नोड आमतौर पर 8 साल की उम्र तक छोटे होते हैं. लक्षण- सांस लेने में परेशानी, निगलने में परेशानी, निगलते समय गले में दर्द, तेज़ बुखार, ड्रोलिंग, गले में सूजन और अकड़न, गले की पेशियों में ऐंठन. आमतौर पर इसका निदान जांच के द्वारा किया जाता है, एक्स-रे और सीटी स्कैन से इसकी पुष्टि हो जाती है. इसके इलाज के लिए बच्चे को इन्ट्रावीनस एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं. गंभीर स्थिति में बच्चे को सांस लेने में परेशानी होने लगती है, जिसमें इंट्यूबेशन ज़रूरी हो जाता है. इस प्रक्रिया में डॉक्टर बच्चे की सांस की नली में एक ट्यूब डालते हैं, जिससे सांस की परेशानी ठीक हो जाती है. एबसेस को निकालने के लिए सर्जरी की जाती है. अगर इसका इलाज न किया जाए तो संक्रमण शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाता है.

(लेखक नई दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में ENT, Head & Neck Surgery के कंसलटैंट हैं)

 

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