जाति संघर्ष से वर्ग संघर्ष तक...
बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) समेत महाराष्ट्र के नगर निकाय चुनावों में बीजेपी को बड़ी कामयाबी मिली है। 10 में से आठ निकायों पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया जबकि बीएमसी में शिवसेना को कांटे की टक्कर दी है। नोटबंदी के बाद ये तीसरा निकाय चुनाव है जिसमें बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया है। बड़ा सवाल ये है कि नोटबंदी के सहारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिर ऐसा कौन सा दांव चला है कि जहां बीजेपी का ज्यादा आधार भी नहीं था वहां भी बीजेपी मजबूती से उभर रही है।
पहले चंडीगढ़ फिर ओडिशा और अब महाराष्ट्र, इन तीनों राज्यों के स्थानीय चुनावों की दो सबसे बड़ी खासियतें हैं, पहली ये कि यहां चुनाव नोटबंदी के फैसले के बाद हुए और दूसरी ये कि इन सभी जगहों पर बीजेपी को बड़ी बढ़त मिली। चंडीगढ़ नगर निगम हो, ओडिशा के पंचायती निकाय या फिर बीएमसी, बीजेपी नोटबंदी से पहले इन जगहों पर बेहद कमजोर मानी जाती थी लेकिन नोटबंदी के बाद बीजेपी यहां मजबूती के साथ उभरी है।
बड़ा सवाल ये है कि नोटबंदी से ऐसा क्या हुआ जो बीजेपी को अचानक इतनी ताकत मिल गई। अचानक ऐसी जगहों पर जहां बीजेपी का कोई आधार नहीं था वहां भी बीजेपी मजबूती से खड़ी हो गई। दरअसल, पीएम मोदी ने नोटबंदी के सहारे भारतीय समाज को सीधे-सीधे दो वर्गों में बांटने की कोशिश की है-अमीर और गरीब।
जो भारतीय समाज अभी तक अपनी पहचान जाति, उपजाति और धर्म से करता है। नोटबंदी के बाद वो अमीर और गरीब के बीच बंटता नजर आने लगा। नोटबंदी के फैसले के पहले ही दिन से पीएम मोदी बार-बार हर मंच से एक ही बात दोहरा रहे हैं कि इस फैसले से देश की गरीब जनता को फायदा होगा और ब्लैकमनी वाले परेशान होंगे। मोदी की इस मुहिम का सीधा असर धर्मनिरपेक्षता की सियासत करने वाले दलों की रणनीति पर पड़ा है। धर्मनिरपेक्षता की सियासत करने वाले राजनैतिक दलों की कोशिश हमेशा 85 फीसदी हिंदू समाज को जातियों में बांटकर रखने की रही है।
लेकिन वक्त-वक्त पर हिंदुओं को एक करने की कोशिशें की गई। महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी ने गणेश उत्सव के नाम पर हिंदू समाज को जोड़ने की कोशिश की थी। तो कुछ ऐसी ही कोशिश बीजेपी ने राम के नाम पर की थी... इन कोशिशों का उद्देश्य समाज में कास्ट सिस्टम को कमजोर कर सभी को एक साथ लाना था। पीएम मोदी ने इसी मुहिम को नोटबंदी के सहारे आगे बढ़ाया। मोदी राजनीति विज्ञान के छात्र रहे है और बखूबी जानते है कि समाज में जब वर्ग संघर्ष बढ़ेगा तो जातिय संघर्ष खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा। और जातीय संघर्ष खत्म होगा तो ही हिंदू समाज को एकजुट करने का राष्ट्रीय स्वयंसेवक का सपना भी साकार होगा।
इसीलिए नोटबंदी के बाद पीएम मोदी ने हर मंच से अमीर-गरीब की बात की यानी सीधे-सीधे गरीब के नाम पर वोट बढ़ाने की कोशिशें की। कुछ ऐसी ही कोशिश पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी की थीं। 1971 में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। इंदिरा ने कहा था कि 'गरीबी हटाओ, देश बचाओ' जबकि उनके विरोधी उस वक्त नारा दे रहे थे 'इंदिरा हटाओ देश बचाओ'। इसका असर ये हुआ था कि इंदिरा अपनी हर रैली में कहती थीं कि हम देश से गरीबी हटाने की बात कर रहे हैं और विरोधी मुझे हटाने की बात कर रहे हैं। तब से लेकर आज तक देश में गरीबी और भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर की राजनीति हो रही है। हालांकि न गरीबी खत्म हुई है और न भ्रष्टाचार। लेकिन इस सब से बेखर आम जनता को नोटबंदी से एक बार फिर उम्मीद जगी है। गरीब अपनी परेशानियां भूल अमीर को परेशान देखकर सुकून महसूस कर रहा हैं। लोग मुद्दे भूल गए है, विकास के नारे आज पीछे छूट गए हैं।
विकास, भ्रष्टाचार और गवर्नेंस के मुद्दे पर चुनाव जीतकर सत्ता में आए नरेंद्र मोदी अब गरीबी हटाने की बात कर रहे हैं। यानी सीधे-सीधे गरीबों का सायकोलॉजिकल फायदा उठाने की कोशिश की जा रही है या सियासी जुबां में कहे तो कमजोर को हक दिलाने के नाम पर वोट बैंक बढ़ाया जा रहा है।