कोरोना काल में अर्थी उठाने को चार कंधे तो दूर, नहीं मिल पा रहे चार हाथ
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कोरोना काल में अर्थी उठाने को चार कंधे तो दूर, नहीं मिल पा रहे चार हाथ

जब हम दिल्ली के सबसे बड़े श्मशान घाट निगमबोध घाट पहुंचे तो वहां अंतिम संस्कार की कई ऐसी चुनौतियों से हमारा सामना हुआ जिनके बारे में सोच कर अब भी रोंगटे खड़े हो रहे हैं.

कोरोना काल में अर्थी उठाने को चार कंधे तो दूर, नहीं मिल पा रहे चार हाथ

दिल्ली में कोरोना से होने वाली मौतों का आधिकारिक आंकड़ा 73 है. इस बात पर यकीन करना इसलिए मुश्किल है क्योंकि अस्पतालों और श्मशान घाट से जो आंकड़े मिल रहे हैं वह 73 के आंकड़े से कहीं भी मेल नहीं खाते. इसकी पड़ताल करने के लिए जब हम दिल्ली के सबसे बड़े श्मशान घाट निगमबोध घाट पहुंचे तो वहां अंतिम संस्कार की कई ऐसी चुनौतियों से हमारा सामना हुआ जिनके बारे में सोच कर अब भी रोंगटे खड़े हो रहे हैं.

दिल्ली के रानी बाग के रहने वाले मदनलाल पाठक की मृत्यु के बाद लोकनायक अस्पताल से उनका शव एंबुलेंस में निगमबोध घाट के गेट पर पहुंचा. परिवार के तीन व्यक्ति साथ थे. श्मशान घाट में वेटिंग चल रही थी. निगमबोध घाट में सीएनजी क्रिमेटोरियम में तीन ही सिस्टम हैं. जानकारी के मुताबिक एक सिस्टम को शवदाह की प्रक्रियाा पूरा करने में 2 घंटे का वक्त लगता है. जब मदनलाल पाठक के शवदाह का नंबर आया तो पता चला कि चुनौतियां कितनी अलग हो चुकी हैं. 

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बदहवास परिवार अभी 50 वर्ष के मदन लाल की मृत्यु को झेलने की ताकत ही जुटा रहा था कि श्मशान घाट के लोगों ने पूछ लिया, आपकी पीपीई किट कहां है.

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सीएनजी शवदाह गृह के लिए बड़ी मुश्किल से ₹1000 की पर्ची कटवा कर कतार में लौटे परिवार को अचानक ख्याल आया कि पीपीई किट तो लाए ही नहीं. उसे पहने बिना कोरोना से संक्रमित व्यक्ति के शव को हाथ कैसे लगाएं. मृतक का 16 साल का बेटा पहली बार श्मशान घाट आया था. उसके साथ दो रिश्तेदार थे लेकिन उन्होंने शव को हाथ लगाने से इनकार कर दिया.

लड़का पीपीई किट खरीदने चांदनी चौक गया. लॉकडाउन के इस समय में वह चांदनी चौक कैसे पहुंचा यह एक और संघर्ष है. वह जैसे तैसे पीपीई किट लेकर आया. लेकिन एक व्यक्ति शव को कैसे उठाता भला. निगमबोध घाट पर काम करने वाले और एंबुलेंस चलाने वाले ड्राइवर से मिन्नतें कीं. 3 घंटे की जद्दोजहद के बाद पिता की अंतिम यात्रा ठेले पर शुरू हुई. शव को कंधा नहीं ठेला मिला. शव को ठेले पर रखकर सीएनजी क्रिमेटोरियम में पहुंचाया गया. किसी तरह अंतिम यात्रा पूरी की गई.

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यह श्मशान घाट की रोज की कहानी है. यहां आनेवाले कई लोग आज भी लकड़ी और सामग्री का इंतजाम करके ही यहां आते हैं. जबकि यहां पहुंचने पर उन्हें बताया जाता है कि इन सब की कोई जरूरत नहीं. सेफ्टी गियर लाइए.

वैसे तो शव यात्रा में 20 लोगों को आने की अनुमति है. लेकिन अस्पताल इतना वक्त नहीं देता. शव को जल्दी "निपटाने" की ताकीद की जाती है. साथ आने वाले भी कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति के शव को हाथ लगाने से हिचकिचा रहे हैं. 

दिल्ली में निगमबोध घाट, पंजाबी बाग और आईटीओ का कब्रिस्तान, यह तीन जगहें हैं जहां कोरोना संक्रमित शव का संस्कार किया जाता है लेकिन कहानी हर जगह इतनी ही दर्दनाक है. 

इन सबके बीच मौत का शोक, दर्द और और अपनों को खोने का खालीपन, यह सब भावनाएं कहां छूट जाती होंगी इनका अंदाजा ना ही लगाया जाए तो अच्छा है.

(लेखिका: पूजा मक्कड़ Zee News की दिल्ली ब्यूरो चीफ हैं) 

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं)

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