आप किस रसोई से खाते हैं, भगवान की, इंसान की या फिर शैतान की?
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आप किस रसोई से खाते हैं, भगवान की, इंसान की या फिर शैतान की?

अधिकांश बीमारियां हमारी जीवन शैली, खान-पान की आदतों से जुड़ी हैं. वर्तमान में ‘शैतान की रसोई’ पर निर्भरता का ट्रेंड चल रहा है.

आप किस रसोई से खाते हैं, भगवान की, इंसान की या फिर शैतान की?

आजकल लोग सेहत को लेकर चिंतित तो होते हैं, लेकिन इस चिंता को दूर करने के लिए कुछ खास नहीं करते. जिसकी वजह से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ता जाता है. अधिकांश बीमारियां हमारी जीवन शैली, खान-पान की आदतों से जुड़ी हैं. वर्तमान में ‘शैतान की रसोई’ पर निर्भरता का ट्रेंड चल रहा है. आगे बढ़ने से पहले इसे विस्तार से समझ लेते हैं.

रसोई को तीन भागों में बांटा जा सकता है. पहली, भगवान की रसोई, दूसरी इंसान की रसोई और तीसरी शैतान की रसोई. भगवान की रसोई से मेरा तात्पर्य है, उन फल-सब्जियों से जिनका हम यथावत सेवन कर सकते हैं. यानी भगवान ने जिस रूप में उन्हें उत्पन्न किया है, उसी रूप में हम उसे ग्रहण कर सकते हैं.

अदृश्य शत्रु के समान
इंसान की रसोई का अर्थ है हम जो कुछ भी खेत-खलिहान, बाजार से लेकर आते हैं और उसे अपने घर में पकाते हैं. जैसे चावल, दाल रोटी सब्जी. इसे संतुलित आहार कहा जा सकता है. शैतान की रसोई वह है, जो न केवल आपके घर पर डाका डालती है, बल्कि आपकी सेहत को भी प्रभावित करती है. सीधे शब्दों में कहें तो जहां से भी रंग-बिरंगे प्लास्टिक के डिब्बों में पैक होकर खाना आपके घर पहुंचता है, वो शैतान की रसोई है. ऐसा इसलिए कि यहां तैयार होने वाला खाना आपकी सेहत को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किया जाता. इसके अलावा, जिन प्लास्टिक के डिब्बों में खाना पहुंचाया जाता है, वो हमारे स्वास्थ्य के लिए अदृश्य शत्रु के समान काम करते हैं.    

स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी
इन डिब्बों में आने वाला फूड फर्मेंटेड होता है. शुरुआत में आपकी पाचन क्रिया प्रभावित होती है, लेकिन धीरे-धीरे आपके शरीर का पूरा सिस्टम उसे अडॉप्ट कर लेता है. आप इस तरह के खाने के आदी हो जाते हैं और अनजाने में अपने शरीर को प्रताड़ित एवं कमजोर करते जाते हैं. ये ‘रसोई’ आपका पैसा भी लेती है और आपको बीमार भी बना देती है, इसलिए मैं इसे ‘शैतान की रसोई’ कहता हूं.

लिहाजा, शैतान की रसोई से खाना कभी नहीं खाना चाहिए. संभव है मेरी यह बात आपको बुरी लगे, लेकिन यह एक स्वस्थ जीवन के लिए बेहद जरूरी है. जितना आप खा सकते हैं, जितना पका सकते हैं उतना ही भोजन करें. आपका बनाया हुआ भोजन, आपके मन,स्वाभाव और रुचि के अनुकूल होगा. जबकि बाहर से मंगवाए जाने वाले खाने के मामले में यह आवश्यक नहीं.

आधा पेट ही खाएं
रसोई के बाद बात आती है कि हम कितना खाते हैं और कैसे खाते हैं. आमतौर पर कहा जाता है कि आधा पेट ही खाना चाहिए. इसका अर्थ यह है कि जब आपको लगे कि एक चपाती की भूख और है, तभी रुक जाना चाहिए. जबकि हो इसके एकदम उलट रहा है. खानपान पर हमारा बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं है, हम गले तक खा लेते हैं. दूसरी गलती हम करते हैं खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीकर. ऐसा करने से खाना पचाने की प्रक्रिया मंद पड़ जाती है और Gastroesophageal reflux disease का खतरा बना रहता है, जो आगे चलकर Esophageal Cancer का कारण भी बन सकता है.

एंट्री और एग्जिट पॉइंट
हमारे शरीर में एक एंट्री और चार एग्जिट पॉइंट है. एंट्री पॉइंट यानी जिसके द्वारा हम कुछ भी शरीर में डालते हैं जैसे कि मुंह. एग्जिट पॉइंट हैं श्वसन,पसीना, मल और मूत्र, जहां से अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकलते हैं. यह कई बार स्पष्ट हो चुका है कि hyperventilation seraxis में कमी लाता है और साथ ही इससे बॉडी के एसिडिटी लेवल को कम करने में मदद मिलती है. प्राणायाम या दूसरे व्यायामों से hyperventilation संभव है. अब बात करते हैं दूसरे एग्जिट पॉइंट यानी पसीने की. बेहतर स्वास्थ्य के लिए ऐसी गतिविधियों में भाग लेने जरूरी है, जिसमें पसीना आये. क्योंकि पसीने के जरिये शरीर से कई टॉक्सिन बाहर निकलते हैं. टॉक्सिन बाहर न निकलने की स्थिति कैंसर जैसी गंभीर और प्राणघातक बीमारियों को जन्म देती है.  

बिगड़ते जा रहे हैं हालात
तीसरे और चौथे एग्जिट पॉइंट के मामले में हालात बिगड़ते जा रहे हैं. इंडियन फूड के हिसाब से सुबह और शाम यानी दिन में दो बार मल त्याग होना चाहिए. जबकि आज स्थिति यह है कि लोग कब्ज आदि के चलते दो-दो, तीन-तीन दिन में एक बार जाते हैं. यह आंतों के कैंसर को न्यौता देने के समान है. इसके अलावा, मूत्र के अत्यधिक पीला होने की समस्या भी आजकल आम हो गई है. जो स्पष्ट संकेत हैं कि टॉक्सिन शरीर से नहीं निकल रहे हैं.  

यह करना है आपको
कुल मिलाकर देखें तो शरीर के चार एग्जिट पॉइंट में से दो-ढाई अवरुद्ध रहते हैं, प्रभावी रूप से काम नहीं करते. नतीजतन इनका वेस्ट शरीर में जमा होता रहता है और कैंसर का कारण बनता है. वैसे तो कैंसर के विभिन्न प्रकार हैं और उनके उत्पन्न होने की वजह भी भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन कुछ सामान्य बातों को अमल में लाकर कई तरह के कैंसर से बचा जा सकता है. मसलन,

(1) शुद्ध खाना खाइए. यह तभी मुमकिन है जब आप शैतान की रसोई पर निर्भरता छोड़ देंगे.

(2) खाना पचाने की कोशिश कीजिये. भोजन के तुरंत बाद पानी बिल्कुल न पीयें.

(3) टॉक्सिन को शरीर से बाहर निकालें. इसके लिए व्यायाम करें. नियमित रूप से इतनी मात्रा में पानी पीयें कि मूत्र का रंग पानी जैसा हो जाए.

यदि इतना सब भी आपने कर लिया, तो आपके स्वस्थ जीवन की गाड़ी कभी पटरी से नहीं उतरेगी.

(लेखक: डॉ अंशुमान कुमार, दिल्‍ली में कैंसर विशेषज्ञ हैं.)

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.)

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