अब तो उतनी भी बाकी नहीं मय-खाने में, जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में!!!
Advertisement

अब तो उतनी भी बाकी नहीं मय-खाने में, जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में!!!

शराबियों या नशाखोरों में नशे की सप्लाई बंद होने के चलते हो रही छटपटाहट भी ऐसी वैसी नहीं बल्कि बेहद गंभीर है. आलम यह है कि कई डॉक्टरों और मेडिकल एक्सपर्ट के पास घनघनाते फोन में करीब 80 प्रतिशत फोन सिर्फ इसलिए आ  रहे हैं कि इस छटपटाहट से राहत कैसे मिले.

अब तो उतनी भी बाकी नहीं मय-खाने में, जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में!!!

मैखाने से शराब से
साकी से जाम से
अपनी तो जिंदगी शुरू होती है शाम से...

पर कमबख्त इस कोरोना ने ना जाने कितने शौकीनों की शाम का इंतजार बेहिसाब बढ़ा दिया है. प्रधानमंत्री मोदी ने जैसे ही 24 मार्च की शाम 8 बजे देशव्यापी Lockdown का ऐलान किया. बड़ी संख्या में लोग राशन की दुकान की ओर बदहवासी में दौड़े लेकिन कुछ दूरदृष्टि रखनेवालों के पैर ठेकों की ओर बढ़ चले. अपनी-अपनी हैसियत के हिसाब से स्टॉक जमा भी कर लिया. पर जाहिर है कलयुग में संजय जैसी दूरदर्शी होने का टैलेंट बड़े कम लोगों के पास था. तो भैया शुरू होता है 21 दिन के Lockdown का सफर. डॉक्टर, पैरा मेडिकल टीम, मीडिया, सुरक्षाकर्मी और सफाइकर्मियों के साथ-साथ शराब, सिगरेट, पान मसाला, गुटखा की लत वाले भी मैदान में आ डंटे. Go Corona Go के नारे के साथ Lockdown में एक-एक दिन काटने लगे. लेकिन शराब, बीड़ी-सिगरेट, गुटखा की तलब भला कोई मामूली तलब है ? हर बीतते दिन के साथ इन विशेष सिपाहियों में नशे को लेकर छपटाहट बढ़ने लगी है. अब ऊपर से एक और लॉकडाउन. अब 3 मई तक के लिए इस सब चीजों को भुलाना होगा. 

शराबियों या नशाखोरों में नशे की सप्लाई बंद होने के चलते हो रही छटपटाहट भी ऐसी वैसी नहीं बल्कि बेहद गंभीर है. आलम यह है कि कई डॉक्टरों और मेडिकल एक्सपर्ट के पास घनघनाते फोन में करीब 80 प्रतिशत फोन सिर्फ इसलिए आ  रहे हैं कि इस छटपटाहट से राहत कैसे मिले.

ये भी पढ़ें: कुदरत ने Reset बटन दबा दिया है!! तो आपकी खिड़की से क्या दिख रहा है?

मेडिकल भाषा में इस छटपटाहट को Withdrawal Symptoms कहते हैं. एक्सपर्ट की मानें तो नशे का सामान चाहे शराब, सिगरेट, गुटखा, बीड़ी यहां तक कि चरस गांजा नहीं मिलने पर शख्स बेचैन हो उठता है. अक्सर रातें जागकर कटती, नींद नहीं आती, उबकाई, उल्टी करना तक शामिल है. ये माइल्ड लक्ष्ण हैं. लेकिन कई गंभीर मामलों में नशे के लती का व्यवहार भी बड़ी तेजी से बदलने लगता है, व्यवहार में चिड़चिड़ापन और गुस्सा भी देखने को मिलता है. इसे मॉडरेट विद्ड्रॉल स्टेटस कहा जाता है.

कई गंभीर केसेज में तो पीड़ित को भ्रम या दिमाग में झटके भी लगने लगते हैं. इसे सीवियर विद्ड्रॉल स्टेटस कहा जाता है. ये मेडिकल इमर्जेंसी की स्थिति होती है जिसमें मृत्यु भी हो सकती है.

ये भी पढ़ें: Lockdown: सेक्स वर्कर्स की गलियों में पसरा सन्नाटा उनके पेट की भूख के शोर को बढ़ा रहा है

जो लोग छटपटाहट को सहकर, डॉक्टरों की सलाह और मजबूत हौंसले के साथ आगे बढ़े वो अपनी नशे की लत को छोड़ने में भी कामयाब हो रहे हैं. यही वजह है कि शराब सिगरेट, गुटखा बीड़ी की बिक्री पर फुल स्टॉप के कदम का समाज का एक बड़ा वर्ग स्वागत भी कर रहा है. डॉक्टर लॉकडाउन को 'नशा छोड़ने' का सपना लिए हजारों पीड़ितों के लिए एक सुनहरे अवसर की तरह है. के तौर पर देख रहे हैं. क्योंकि ऐसे भी कई मामले सामने आ रहे हैं जहां कोरोना के खिलाफ जंग का हथियार बने लॉकडाउन ने नशे की लत से छुटकारा या शराब, सिगरेट, गुटखा की तलब को खत्म करने का भी काम किया है.

लेकिन नशे पर इस कहानी का अंत अभी कहां!! अभी तो देश की वो तस्वीर भी समझनी होगी जहां तमाम राज्य की सरकारें उलझन में नजर आ रही हैं. शुरुआत केरल से. केरल के मुख्यमंत्री पेनारायी विजयन ने 30 मार्च को राज्य में डॉक्टरी सलाह के आधार पर शराब बेचने या दिए जाने का फैसला सुनाया. केरल में लॉकडाउन के बावजूद राज्य सरकार को ये हैरान कर देने वाला फैसला इसलिए लेना पड़ा क्योंकि केरल में कई मामले सामने आए जहां नशे की लत के शिकार लोगों ने शराब नहीं मिलने के चलते आत्महत्या तक कर ली थी.

ऐसी ही घटनाएं तमिलनाडु से सामने आईं हैं जहां एक मामले में पानी में वार्निश मिलाकर पीने की वजह से तीन लोगों की मौत हो गई. दूसरी घटना में कोल्डड्रिंक में आफ्टर शेव लोशन मिलाकर पीने से तीन लोगों ने दम तोड़ दिया.

हरियाणा सरकार भी बैठक कर शराब बिक्री पर से रोक हटाने पर विचार कर रही है. इस लॉकडाउन में आप शराब, शराब पीने की लत स्टॉक की कमी या इफरात पर दिन रात जोक्स, टिकटॉक मीम्स देखकर हसंते होंगे और उन्हे फॉरवर्ड करते होंगे. लेकिन कई लोगों के लिए ये मसला हंसी मजाक से ऊपर का है. जिन लोगों ने इस लॉकडाउन में अपनी इस लत पर विजय पाई है उनके लिए बालकनी में ना सही घर बैठे एक ताली तो बनती है.

वो भी दिन थे जब हम भी पिया करते थे,
यूं न करो हमसे पीने पिलाने की बात,
जितनी तुम्हारे जाम में है शराब,
उतनी हम पैमाने में छोड़ दिया करते थे.

(लेखिका: कविता शर्मा Zee News की प्रिंसिपल करस्पॉन्डेंट हैं) 

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

Trending news