जया बच्चन पर टिप्पणी, पुरुषवादी सोच के ढर्रे को बदलने का वक्त
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जया बच्चन पर टिप्पणी, पुरुषवादी सोच के ढर्रे को बदलने का वक्त

नरेश अग्रवाल वही शख्स हैं जो बढ़ते बलात्कार का कारण महिलाओं के कपड़ों में ढ़ूंढ चुके हैं. 2013 में ये भी कहने से नहीं चूके थे कि कई ऐसी कंपनियां हैं, जो महिलाओं को नौकरी देने से डरती हैं.

जया बच्चन पर टिप्पणी, पुरुषवादी सोच के ढर्रे को बदलने का वक्त

11 मार्च को प्रधानमंत्री कार्यालय से मेरे इनबॉक्स में आए एक मेल में बताया गया कि कैसे बीते सप्ताह देश की बेटियों ने भारत के प्रधानमंत्री को प्रेरित किया. निश्चित ही ये मेल लाखों लोगों ने अपने मेलबॉक्स के जरिए पढ़ा होगा. 12 मार्च की शाम, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणासी में महिलाओं को देश की ताकत बताया. उनका भाषण भी करोड़ों लोगों ने सुना होगा. लेकिन इसी शाम, बीजेपी के वरिष्ठ नेता बन चुके नरेश अग्रवाल एक टिप्पणी के कारण महिलाओं के प्रति अपने रवैये पर सवालों से भागते दिखे. जब मीडिया ने उनसे सवाल पूछना शुरू किए तो वहां मौजूद बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा उन्हें वहां से चुपचाप निकलने की सलाह देते सुनाई दिए. शीर्ष नेतृत्व और पार्टी नेताओं के व्यवहार का ये विरोधाभास परेशान करने वाला है.

कांग्रेस, एसपी, बीएसपी सहित अलग-अलग दलों से सात बार विधानसभा और दो बार राज्यसभा पहुंचे नरेश अग्रवाल को जब-जब उनके मन मुताबिक पद नहीं मिला तब-तब उन्होंने पार्टी बदल ली. लेकिन राज्यसभा नहीं पहुंचने की तड़प ने उन्हें इतना बैचेन कर दिया कि उन्होंने अपनी ही वरिष्ठ साथी सांसद को ‘नाचने वाली’ कह दिया. 13 मार्च को कटघरे में खड़ा पाकर नेताजी ने खेद तो प्रकट किया लेकिन माफी मांगने का साहस नहीं जुटा पाए. नाचना या ठुमका लगाना ओछा कैसे है? इस सवाल का जवाब भी वे नहीं सोच पाए. वे भारत में नृत्य जीवन शैली और संस्कृति का हिस्सा है, वहां नाचने वालों के प्रति इतनी घृणा क्यों, जया बच्चन की जगह उनको क्यों वरीयता दी जाए, इसका तर्क वे नहीं दे पाए.

यहां आपको बता दें कि सत्तारुढ़ पार्टी में शामिल होने के साथ ही 68 साल के नरेश अग्रवाल 40 सालों से राजनीति कर रहे हैं. वे पहली बार उत्तर प्रदेश के हरदोई से 1980 में कांग्रेस से विधायक बने थे. वे उत्तर प्रदेश सरकार में ऊर्जा, पर्यटन और परिवहन जैसे मंत्रालयों के मंत्री भी रह चुके हैं.

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बहरहाल, जया बच्चन राज्यसभा में समाजवादी पार्टी से चौथी बार चुनी जाने वाली वरिष्ठ सांसद ही नहीं हैं, बल्कि उन्होंने नरेश अग्रवाल के साथ सालों तक समाजवादी पार्टी में साथ काम भी किया है. नरेश अग्रवाल ने बीजेपी से जुड़ते हुए साफ कहा ‘पार्टी इसलिए छोड़ी क्योंकि एसपी ने ‘फिल्मों में नाचने वाली’ को राज्यसभा भेजा. ये एक पुरुष के अहम को बर्दाश्त नहीं हुआ. इसलिए राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी से जुड़ने का फैसला लिया. इस दौरान उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री के काम से काफी प्रभावित भी बताया. प्रधानमंत्री के भरोसे पर खरा उतरने का वादा भी किया.

राज्यसभा नहीं पहुंचने की पीड़ा से कराह रहे नरेश अग्रवाल ये भूल गए कि पीएम ने महज चार दिन पहले 8 मार्च को ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ को राष्ट्रव्यापी विस्तार दिया था. इस योजना की शुरुआत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन साल पहले 2015 में, पानीपत में बालीवुड एक्ट्रेस और डांस क्विन कही जाने वाली माधुरी दीक्षित को विशेष आमंत्रण दिया था. 

बीजेपी की मथुरा से लोकसभा सांसद हेमा मालिनी की भी एक पहचान उनका कथक नृत्य है. फिल्म देवदास में नृत्य कर वाहवाही बटोरने वाली एक्ट्रेस किरण खेर बीजेपी की चंडीगढ़ से लोकसभा सांसद हैं. अनुष्का शर्मा की शादी में आशीर्वाद देने खुद प्रधानमंत्री पहुंचे थे. फिर नरेश अग्रवाल की फिल्मों से इतनी कुंठा की वजह क्या है?

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पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने कठोर संदेश दिया. राजनीतिक संकेत भी, कि वे पिछलग्गू नेता नहीं हैं. लोकतांत्रिक चेहरे के लिए ये एक पोषक संकेत तो हो सकता है लेकिन निराशा को दूर करने के लिए बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी के अनुकूल बड़ा संदेश भी देना होगा. सुषमा स्वराज को लोग महिला नेत्री के रूप में कम, एक ओजस्वी, मुखर वक्ता के रूप में ज्यादा जानते हैं. वे देश की अकेली महिला हैं जो खुद के बूते राजनीति के इस शिखर पर पहुंची है. ये अलग बात है कि इस सरकार में वे अकेले पथिक जैसी भूमिका में दिखती हैं. इस मुद्दे पर भी पार्टी ने उनके जैसी सख्ती नहीं दिखाई.
 
हालांकि विदेश मंत्री के बाद सूचना एंव प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने भी महिलाओं के सम्मान की पैरवी की. रूपा गांगुली ने भी विरोध किया. महिला मोर्चे ने कमान संभाली. लेकिन क्या ये विषय महिला मोर्चे के शोर में खत्म हो जाना चाहिए?
 
जया बच्चन का फिल्म इंडस्ट्री को योगदान अतुलनीय है. वे 1963 के उस दौर में मुंबई पहुंची जब उत्तर भारत की लड़कियों के लिए फिल्म में काम करना बहुत ज्यादा बुरा माना जाता था. भोपाल में तीन बहनों के पिता को नाचने वाली से कहीं निचले स्तर की उपमाएं सुनने को मिली होंगी. लेकिन अभिनय को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाली जया ने ना उस वक्त ऐसे लोगों की परवाह की ना आज. 13 मार्च को संसद भवन के बाहर पत्रकारों ने प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने कोई पलटवार नहीं करते हुए अपनी वरिष्ठता साबित कर दी.

1973 में महज 25 साल की उम्र में अभिमान फिल्म के जरिए भारतीय पुरुष की मानसिकता को पेश कर समाज को आईना दिखाने वाली जया ने ना सिर्फ फिल्मों में दमदार एक्टिंग की बल्कि संसद में भी अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई. महज 2012 से अब तक सदन में 810 सवाल उठाए. 77 फीसदी से ज्यादा उपस्थिति के साथ सदन की बहसों में दमदार हिस्सेदारी दिखाई. लेकिन जया बच्चन के समूचे योगदान को भूलाकर नरेश अग्रवाल गद्दी के साहूकार बन बैठे. ऐसा साहूकार जिसके चौक में परिवार की वरिष्ठ महिलाओं की इज्जत नाचने वाली से आगे नहीं बन पाई.

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2013 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने, मदांत होकर अपनी ही पार्टी की मीनाक्षी नटराजन को ‘सौ टंच माल’ बताया था. बीजेपी जितनी मुखर उस वक्त थी आज क्यों नहीं है?  समाज अपनी चिरस्थायी आत्म मुग्धता में पूर्ववत लीन रहेगा तो स्थायी बदलाव नहीं होंगे.

प्रधानमंत्री योजनाओं की मशाल थामकर सरकारी प्रचार से नारी समाज की तकदीर नहीं बदल सकते. सरोकार समूचे राजनीतिक तंत्र को दिखाने होंगे. कांग्रेस की दीर्घकालीन चुप्पी को जनता ने अस्वीकार कर दिया. बीजेपी राष्ट्रवादी पार्टी बनकर राष्ट्रव्यापी स्वरूप लेना चाहती है तो राष्ट्रीय विषयों पर जवाबदेही तय करे. बीजेपी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री ऐसे बयानों पर चुप्पी तोड़ें ताकि बेलगाम नेता सतर्क रहें.
 
नरेश अग्रवाल वही शख्स हैं जो बढ़ते बलात्कार का कारण महिलाओं के कपड़ों में ढ़ूंढ चुके हैं. 2013 में ये भी कहने से नहीं चूके थे कि कई ऐसी कंपनियां हैं, जो महिलाओं को नौकरी देने से डरती हैं. समाजवादी पार्टी के मुखिया को ये अटपटा नहीं लगा क्योंकि खुद मुलायम सिंह बलात्कारियों को बेचारे लड़कों की भूल-चूक कह चुके थे. आज बीजेपी को ये बयान चुभन नहीं दे रहा क्योंकि लोकतंत्र में सत्ता मात्र अंकगणित है. इस अंकगणित का दर्द पिछले 4 दशकों में कड़वे, अपमानकारी व खूनी सबकों से भाजपा ने सीखा है.

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इतिहास की अनदेखी कर बीजेपी उसी प्रवाह में नहीं बह सकती. देश की सबसे बड़ी पार्टी की जिम्मेदारी है कि वो चुप्पी, अफसोस, बयान के परिप्रेक्ष्य और खेद जैसे कुछ पायदानों को पार करके इस बयान को पटाक्षेप की गति प्राप्ति से बचाए. नरेश अग्रवाल माफी मांगे.
 
जिस पत्रकार ने उनसे माफी मांगने का सवाल पूछा उसे धमकाते हुए बोले ‘बड़ा मैं हूं या तुम.’ माफी मांगने से अग्रवाल का कद बढ़ता, ना कि वो छोटे होते. गौरतलब ये भी है कि जया बच्चन उम्र में भी बड़ी हैं और 2004 से समाजवादी पार्टी से चौथी बार राज्यसभा सांसद बन रही हैं जबकि नरेश अग्रवाल 2010 से दूसरी बार यानि बतौर सांसद भी वरिष्ठ.
 
खुद को जन्मसिद्ध और स्वघोषित प्रथम पंक्ति का हकदार समझने वाले पुरुषों ने साथी महिला नेत्रियों के लिए अमर्यादित शब्दों का प्रयोग बेखौफ किया है. 20 सितंबर 2017 को वरिष्ठ पत्रकार से नेता बनकर शिवसेना से बीजेपी में पहुंचे प्रेम शुक्ला ने कांग्रेस की प्रियंका चतुर्वेदी को ‘रूपजीवा’ प्रवक्ता कहते हुए समूची महिला नेत्रियों को अपमानित किया था. हालांकि चौतरफा घिरे दिखने पर नेताजी ने ट्वीट डिलीट कर दिया. पार्टी ने भी उन पर सख्त कारवाई नहीं की. मुंबई के ही संजय निरुपम ने जनवरी 2013 में मौजूदा सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी को खुली टीवी बहस में अपमानित करते हुए कहा था ‘आप तो टीवी पर ठुमके लगाती थीं आज चुनावी विश्लेषक बन गईं.’ बधाई की पात्र हैं स्मृति ईरानी की उन्होंने साहस भरा कदम उठाते हुए मानहानि का मुकदमा दर्ज कर महिलाओं की गरिमा के मुद्दे को वरीयता दिलाई लेकिन विचारणीय प्रश्न ये है कि आज बतौर मंत्री उनकी जिम्मेदारी क्या महज आलोचना तक सीमित रहनी चाहिए?
 
कांग्रेस शासन में जो गलतियां उस वक्त के नेतृत्व ने की आज उस ढर्रे को बदलने का वक्त आ गया है. दिग्विजय सिंह ने अरविंद केजरीवाल की तुलना राखी सांवत से, श्री प्रकाश जायसवाल ने क्रिकेट मैच की जीत को महिलाओं से, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी द्वारा गैंगरेप के खिलाफ प्रदर्शन करने वाली लड़कियों को मेकअप कर फोटो सेशन कराने वाले बयानों से, अगर बीजेपी आक्रोशित होती थी तो वो आक्रोश आज एक्शन में बदलना चाहिए. सड़कों पर हंगामे की जगह जनता ने संसद में मुद्दों को उठाने का जो अवसर दिया है उससे, जनप्रतिनिधों के लिए आचार संहिता बनानी चाहिए.
 
नारीवाद का छद्म रुदन, आडम्बर जनता जानती है. सत्तारुढ़ पार्टी ही नहीं पूर्व सरकारों से लेकर विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने खूब मगरमच्छ के आंसू बहाए हैं. इन्हीं झूठे आंसुओं के तालाब में पुरुष प्रधान समाज द्वारा पोषित, असफलता से दमित अहम की लहरें राजनीति में मूक व परोक्ष समर्थन देकर नरेश अग्रवाल जैसे नेताओं के वाचाल बयानों को बल देता रहती हैं. ये वक्त इस बहाव को रोकने का होना चाहिए.

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