Opinion: क्या रेप पर मौत की सजा देने से अपराध कम होंगे?
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Opinion: क्या रेप पर मौत की सजा देने से अपराध कम होंगे?

आज भी देश में टीएफटी यानी टू फिंगर टेस्ट जैसी यातना भरी प्रक्रिया बलात्कार पीड़ित के साथ कई जगह दोहराई जा रही है. जबकि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि टू फिंगर टेस्ट पीड़ित को उतनी ही पीड़ा पहुंचाता है जितनी बलात्कार के दौरान होती है.

Opinion: क्या रेप पर मौत की सजा देने से अपराध कम होंगे?

खाकी फिल्म का एक सीन है जिसमें डीसीपी अनंत कुमार श्रीवास्तव (अमिताभ बच्चन) के सीनियर अधिकारी उन्हें अपनी ड्यूटी निभाने से रोकते हैं. ऐसे में बच्चन एक डायलॉग बोलते हैं. 'अगर हम पुलिस वाले चाह लें तो कोई आदमी चौराहे पर खड़ी हुई लड़की की गुड़िया भी नहीं छीन सकता है.' ये 'चाह लें' वाली जो बात है, दरअसल यही वो ज़रूरी तत्त्व है जो किसी भी अपराध को, किसी भी विसंगति को मिटाने में कारगर साबित हो सकता है. और किसी भी अपराध को लेकर हमारी राजनीति से लेकर प्रशासन तक सभी बस खानापूर्ति करना चाहते हैं. किसी के अंदर वो खत्म करने की चाह नज़र नहीं आती है. गोया अगर अपराध खत्म हो गया तो फिर मुद्दे क्या बचेंगे.

पॉस्को कानून में संशोधन के आध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार के मामलो में दोषियों को मृत्युदंड तक की सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है. इस सशोधन के तहत भारतीय दंड संहिता औऱ आपराधिक दंड संहिता में भी बदलाव किए गए हैं औऱ बलात्कार के मामलों में त्वरित जांच औऱ सुनवाई की समयसीमा भी तय की गई है. इस अध्यादेश के मुताबिक 16 और 12 साल से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार के मामलो में दोषियों के लिए सख्त सजा की अनुमति है. 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा देने की बात इस अध्यादेश में कही गई है.

अब सवाल ये पैदा होता है कि क्या मौत की सजा लिख देने से अपराध कम होंगे. क्योंकि प्रक्रिया तो वही रहनी है. अगर प्रक्रिया लचर है तो मृत्युदंड दिया जाए या मरने के बाद दोबारा मारा जाए क्या फर्क पड़ता है. यहां कानून में संशोधन किसी फौरी कार्यवाही के तहत लिया गया निर्णय भर लगता है. निर्भया मामले के बाद जब आंदोलनों से ज़ोर पकड़ा और दोषियों को सजा की बात की गई तो मीडिया ट्रायल और सामाजिक दबाव के चलते मौत की सजा सुना दी गई. अहम बात यें है कि उसके बाद कई बलात्कार मामलों मे निचली अदालतो के मौत की सजा सुनाने की खबरे सामने आई. लेकिन ये सिलसिल ज्यादा दिन नहीं चला.

यहां ये समझने की ज़रूरत है कि कानून का सजा देने को लेकर सख्त होना ज़रूरी है. अगर पीड़ित के साथ हुई घटना के बाद उसे पहले ही दिन से ये आत्मविश्वास मिल जाए कि उसके साथ जिन्होंने भी ऐसा काम किया है अब उनकी खैर नहीं. और अपराधियों को सजा मिलने लग जाए तो खुद ब खुद सब कुछ नियंत्रण में आ जाएगा. लेकिन होता क्या है. जिस दिन किसी लड़की के साथ कुछ घटना घटती है तो उसके सदमे से निकलते ही वो प्रक्रियाओं की उलझनों के सदमें को झेलती है.

आज भी देश में टीएफटी यानी टू फिंगर टेस्ट जैसी यातना भरी प्रक्रिया बलात्कार पीड़ित के साथ कई जगह दोहराई जा रही है. जबकि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि टू फिंगर टेस्ट पीड़ित को उतनी ही पीड़ा पहुंचाता है जितनी बलात्कार के दौरान होती है. टीएफटी से बलात्कार पीड़ित महिला की योनि के लचीलेपन की जांच की जाती है. अंदर प्रवेश की गई उंगलियों की संख्या के आधार पर डॉक्टर ये बताते हैं कि ‘महिला सक्रिय सेक्स लाइफ’ में थी या नहीं. ज्यादातर देशों ने इसे पुरातन, अवैज्ञानिक, निजता और गरिमा पर हमला बताकर खत्म कर दिया है. जस्टिस जेएस वर्मा समिति ने तो इसकी कड़ी आलोचना की थी. समीति ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर आपराधिक कानूनो पर जो रिपोर्ट सौंपी थी उसमें लिखा था कि “सेक्स अपराध कानून का विषय है, न मेडिकल डायग्नोसिस का.” 

रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला की वजाइना के लचीलेपन का बलात्कार से कोई लेना-देना नहीं है. इसमें टू फिंगर टेस्ट न करने की सलाह दी गई है. रिपोर्ट में डॉक्टरों के यह पता लगाने पर भी रोक लगाने की बात कही गई है जिसमें पीड़िता के ‘यौन संबंधों में सक्रिय होने’ या न होने के बारे में जानकारी दी जाती है. लेकिन अभी भी इस तरह के टेस्ट किये जाते हैं. जो ये बताता है कि कानून कितना संख्त बना दिया जाए. लेकिन समाज में उसे पालन करने और करवाने वाला तो इंसान ही है ना और जब तक उसके मानस में वो कुंठा पल रही है. जब तक वो औरत को अपने शक्ति प्रदर्शना का जरिया मानता है. या जब तक वो ये मानता है कि नारी ताड़ना की अधिकारी है. तब तक आध्यादेश निकाले जाएं जाय उम्र कैद को मौत की सजा में बदल दिया जाए. कोई विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला है.

दरअसल, हमारे देश ने ही नहीं पूरी दुनिया में बच्चियों के साथ बलात्कार के मामले में सख्त रवैया अपनाया है. हाल ही में इंडोनेशिया ने इस मामले में रासायनिक बधियाकरण की सजा जैसा विवादास्पद कानून पारित किया है. इंडोनेशिया के अलावा रशिया, पोलैंड और साउथ कोरिया में भी बच्चों के साथ हो रहे बलात्कार को रोकने के लिए रासायनिक बधियाकरण की सजा का प्रावधान है. वहीं जर्मनी और यूके में ऐसे लोग जो बच्चों के साथ अपराध कर सकते हैं या जिनके अंदर ऐसी इच्छा जागती है उनके लिए थेरेपी का प्रावधान है जिससे अपराधों में कमी आ सके. जर्मनी के दस शहरों में ये परियोजना चलाई गई है जहां पर ये थेरेपी पूरी तरह से मुफ्त होती है. हालांकि, इसे बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा है. वहीं चेक रिपब्लिक जैसे देश में सर्जिकल बधिया करने का कानून है.

ग्रीस, सर्बिया, रूस और थायलैंड में तो कानून में ऐसी भी कुछ विशेष परिस्थितियां मौजूद हैं जिसके तहत अगर ल़ड़की की उम्र सेक्स की सहमति देने के हिसाब से कम है तो ये मानकर चला जाता है कि उसके साथ बलात्कार नहीं हो सकता है.

फ्रांस जिसे हम आधुनिक सोच वाले देशों की श्रेणी में शामिल करते हैं वहां 15 साल से कम उम्र के किसी बच्चे के साथ शारीरिक संबंध बनाना गैरकानूनी है लेकिन बच्चे के साथ सेक्सुअल संबंध बनाने के आरोप और रेप के आरोप एक नहीं है. इसमें बलात्कार से कम सजा औऱ कम जुर्माने का प्रावधान है. सभी पश्चिमी देशों में किसी बच्चे के साथ किसी भी तरह से शारिरिक संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में आता है लेकिन फ्रांस में ऐसा नहीं है. फ्रांस में बलात्कार तब माना जाता है अगर हिंसा के सबूत हो, दबाव बनाया गया हो या अचानक कुछ किया गया हो. खास बात ये है कि अब तक वहां पीड़ित पर अपराध साबित करने का बोझ था लेकिन तमाम आलोचनाओं के बाद वहां पर भी अब कानून में बदलाव के बारे में विचार किया जा रहा है.

भारत में अगर आंकड़ों की मानें तो बलात्कार के मामले में चार में से एक अपराधी को ही सजा मिल पाती है. 2016 में 38,947 बलात्कार के मामले सामने आए. इनमें से कितनों को सजा हुई ये बात कानून के सख्त रवैये की तस्वीर पेश कर देता है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में 19,765 बच्चे अपराध का शिकार हुए थे. ये संख्या 2015 के मुकाबले 82 फीसद अधिक थी. अमेरिका जैसे विकसित देश में एक साल में बलात्कार के एक हज़ार मामले सामने आए. इनमें तीन सौ में शिकायत दर्ज कराई गई औऱ सजा सिर्फ छह लोगों को हुई.

दरअसल हम कितने आधुनिक हो जाएं, अपने कानून को कितना सख्त बना लें, उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, जब तक समाज का मानस नहीं बदलता है. जब तक कानूनी प्रक्रिया सख्त नहीं होती, जब तक हम औरत के साथ होने वाले बलात्कार को उसकी अस्मिता के साथ जोड़ते रहेंगे. जब तक किसी बच्ची या महिला के साथ हुई क्रूरता के बाद तरह-तरह के सवाल होंगे. जब तक किसी औरत के बलात्कार के बाद उसका टीएफटी करके उसकी योनि की ढिलाई से उसके कैरेक्टर को लूज या टाइट साबित किया जाता रहेगा तब तक भले ही लाख कानून में बदलाव कर लिए जाएं अपराध होते रहेंगे.

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

 

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