Opinion: क्या अब देश में खेल संस्कृति का विकास होगा
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Opinion: क्या अब देश में खेल संस्कृति का विकास होगा

राष्ट्रमंडल खेलों में 500 पदक अर्जित करने वाला भारत पांचवां देश बन गया है. 

Opinion: क्या अब देश में खेल संस्कृति का विकास होगा

गोल्ड कोस्ट (ऑस्ट्रेलिया) में संपन्न 21वें राष्ट्रमंडल खेल भारतीय खिलाड़ियों के अभूतपूर्व प्रदर्शन के लिए जाना जाएगा. भारत ने 26 स्वर्ण, 20 रजत व 20 कांस्य पदक जीते. कुल 66 पदक जीतने के साथ भारत पदक तालिका में तीसरे स्थान पर रहा. इसके पहले भारत ने 2010 में दिल्ली आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में 38 स्वर्ण, 27 रजत व 36 कांस्य पदक सहित कुल 101 पदक अर्जित किए थे. पदक तालिका में भारत दूसरे स्थान पर रहा था. जो इन खेलों में भारत का सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन रहा है. 88 वर्षों के इन खेलों के इतिहास में विदेशी धरती पर आयोजित कॉमनवेल्थ गेम में यह भारत का सबसे अच्छा प्रदर्शन है. उम्मीद की जानी चाहिए कि देश में अब खेल संस्कृति का विकास होगा. इस प्रदर्शन के लिए भारत सरकार, खेल फेडरेशन, खिलाड़ी व सर्पोटिंग स्टॉफ सहित सभी वे लोग बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने इस उपलब्धि तक पहुंचने में अपना परोक्ष व अपरोक्ष सहयोग दिया है. राष्ट्रमंडल खेलों में 500 पदक अर्जित करने वाला भारत पांचवां देश बन गया है. ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा व न्यूजीलैंड पदक जीतने के मामले में भारत से आगे हैं.

हर दिन जीते पदक
4 से 15 अप्रैल तक आयोजित 21वें राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने 5 अप्रैल से 15 अप्रैल तक प्रतिदिन एक ना एक पदक हासिल किया जिसके चलते सारे खेलप्रेमियों की निगाहें भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन और देश को मिलने वाले पदकों पर लगी रही. जो सबसे अच्छी बात भी सिद्ध हुई. अभी तक हमारे खिलाड़ियों का प्रदर्शन बड़े आयोजनों में कभी-कभार ही स्तरीय हुआ करता था. लेकिन भारतीय खिलाड़ियों ने इन खेलों में उस मिथक को तोड़ दिया. कई युवा खिलाड़ियों ने जहां अपने प्रदर्शन की बदौलत देश के लिए पदक हासिल किए, तो वहीं अनुभवी खिलाड़ियों ने भी अपनी ख्याति के अनुरूप प्रदर्शन कर तिरंगे की शान बढ़ाई. युवा खिलाड़ियों ने अपने ऊपर इस बड़े आयोजन का दबाव नहीं आने दिया. वहीं अनुभवी खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से यह साबित कर दिया कि वे अपने प्रदर्शन में निरंतरता को बरकरार रख सकते हैं. 

15 में से 9 खेलों में जीते पदक
भारत ने 15 खेलों में अपनी हिस्सेदारी की थी जिसमें से 9 खेलों में पदक जीते. कई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से सबको आश्चर्यचकित कर दिया. जो इस बात की ओर इंगित करता है कि यदि आपने जज्बा है और कुछ करने की इच्छाशक्ति है तो आप कुछ भी हासिल कर सकते है. टीम गेम हो या व्यक्तिगत स्पर्धा, दोनों में ही हमारे खिलाड़ियों ये अपने प्रदर्शन का उच्च स्तरीय बनाया. सबसे अधिक 16 पदक भारत ने शूटिंग में अर्जित किए जिसमें 7 स्वर्ण, 4 रजत व 5 कांस्य पदक शामिल थे. कुश्ती में 5 स्वर्ण के साथ कुल 12 पदक भारत की झोली में आए. वेटलिफ्टिंग व टेबल टेनिस में 9-9 पदक भारतीय खिलाड़ियों के गले में आए.

कुश्ती में सभी खिलाड़ियों ने जीते पदक
इन खेलों में हमारे पहलवाल सबसे सफल रहे. 6 पुरुष व 6 महिला पहलवानों ने इन खेलों में हिस्सा लिया और सबके देश के लिए पदक जीते. इसके पहले राष्ट्रमंडल खेलों में ऐसा कभी नहीं हुआ था. दो बार के ऑलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार की अगुवाई में भारतीय खिलाड़ियों ने 3 स्वर्ण, 1 रजत व 2 कांस्य पदक अपनी झोली में डाले. सुशील कुमार व अनुभवी बजरंग पूनिया ने अपने सारे मुकाबलों में अपने विपक्षी खिलाड़ियों को एक भी अंक नहीं बनाने दिया. महिला वर्ग में ऑलंपिक पदक जीतकर इतिहास रचने वाली साक्षी मलिक सहित 6 पहलवानों ने 2 स्वर्ण, 2 रजत व 2 कांस्य पदक जीते.
 
बॉक्सिंग में सभी पुरुष खिलाड़ियों ने पदक जीते
वैसे तो भारतीय खिलाड़ियों ने हर खेल में अच्छा प्रदर्शन किया है. लेकिन कुछ खेलों मे तो ऐसा प्रदर्शन सामने आया है, जिसके कारण भारत चर्चा में रहा. बॉक्सिंग पुरुष वर्ग में 8 खिलाड़ियों ने इन खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया और सभी की झोली में मेडल आए जिससे यह पता चलता है कि देश में इस खेल के प्रति कितना रुझान है. ऑलंपिक मेडलिस्ट महिला बॉक्सिंग में जीवंत किवदंती बन चुकी एमसी मैरीकॉम ने राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण पदक जीतकर अपने आलोचकों को करारा जवाब दिया है. यह खिलाड़ी हमेशा से ही अपने जुझारूपन के लिए जानी जाती है. 2012 से 2017 तक भारतीय बॉक्सिंग फेडरेशन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैन का सामना करना पड़ा था. जिसकी वजह से हमारे खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के मौके कम ही मिल रहे थे. साथ ही नेशनल बॉक्सिंग चैम्पियनशिप भी लगातार नहीं हो रही थी. जिसकी वजह से नए खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का सही मौका नहीं मिल पाया था. लेकिन अब फिर से फेडरेशन ने अपनी गतिविधियों को सुचारू रूप से प्रारंभ कर दिया है. जो इस खेल के लिए बहुत अच्छी बात है. 

युवाओं ने अपनी धाक जमाई
भारतीय युवा खिलाड़ियों ने इस बड़े खेल मंच पर अपने प्रदर्शन से सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है. 15 वर्षीय स्कूली छात्र अनीस भानवाला ने 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल ईवेंट में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया. राष्ट्रमंडल खेलों में वे देश के सबसे कम उम्र के पदक स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ी बन गए हैं. अब अनीस को अपनी स्कूली परीक्षा की तैयारी करनी है. दूसरी ओर 16 वर्षीय मनु भाकर ने भी शूटिंग में स्वर्ण पर निशाना साधकर अपने प्रतिभासंपन्न होने का नमूना प्रस्तुत किया. मनु ने हाल ही में शूटिंग वर्ल्डकप में 2 स्वर्ण पदक जीते थे. वर्ल्ड कप में से भारत की सबसे कम उम्र की स्वर्ण पदक जीतने वाली खिलाड़ी भी बनी थी. 20 वर्षीय जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने भी स्वर्ण पदक जीतकर अपने पहले राष्ट्रमंडल खेल का जश्न मनाया. जैवलिन थ्रो में जूनियर वर्ल्ड चैम्पियन रहे नीरज देश के पांचवे खिलाड़ी बने हैं, जिन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों की एथलेटिक्स स्पर्धा में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया है. उनके पहले केवल मिल्खा सिंह, कृष्णा पूनिया, विकास गौड़ व महिला रिले टीम ने ही देश को स्वर्ण पदक दिलाया था. टेबल टेनिस में मणिका बत्रा ने एक स्वर्ण सहित कुल 4 पदक जीते. वे इन खेलों में सबसे ज्यादा पदक जीतने 
वाली भारतीय खिलाड़ी बनीं. 

अनुभवी खिलाड़ियों ने किया ख्याति के अनुरूप प्रदर्शन
देश के अनुभवी खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से भारत की झोली में पदक डाले. मीरा बाई चानू, संजीता चानू, पूनम यादव, जीतू राय, सुशील कुमार, सायना नेहवाल, पीवी सिंधू, हिना सिद्धू, श्रेयांशी सिंह, बजरंग पूनिया, तेजस्विनी सावंत, एमसी मैरीकॉम, विनेश फोगाट, विकास कृष्णन यादव, सीमा अंतिल, मेहुली घोष सहित कई ऐसे खिलाड़ी थे, जो उम्मीद पर खरे उतरे. ये वे खिलाड़ी रहे हैं जो पिछले कई वर्षों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के गौरव को बढ़ा रहे थे. लेकिन अब उनके पीछे इन खेलों में युवा खिलाड़ियों की अच्छी फौज नजर आई है. जो अपने सीनियर की तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को गौरवान्वित करने कर सपना संजोए रखे हैं.

भारतीय खेल जगत मजबूत होगा
इस राष्ट्रमंडल खेलों का प्रदर्शन भारतीय खेल जगत को और मजबूती प्रदान करेगा. 2002 के बाद से भारतीय खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से इन खेलों में निरंतर अच्छा प्रदर्शन किया है. लेकिन अभी भी आस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड जैसे देशों से हम पीछे ही हैं. अभी हम इन खेलों में उन्हें चुनौती नहीं दे सके है. उनके पास तक पहुंचने के लिए अभी हमें बहुत मेहनत करनी होगी. लेकिन 1996 के अटलांटा ऑलंपिक में जबसे लिएंडर पेस ने भारत को ऑलंपिक पदक मंच पर पहुंचाया है, वहां से बड़े खेल आयोजनों में हम अपनी पहचान बनाने लगा है. पहले केवल हॉकी हीं हमारी पहचान थी. लिएंडर पेस के बाद अब व्यक्तिगत स्पर्धाओं में भी हमारे खिलाड़ी पदक जीत चुके हैं. यही वजह है कि अब हमारी नई पीढ़ी हर खेल में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है. जिसका परिणाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को मिल रही सफलता है. उम्मीद की जानी चाहिये कि इस राष्ट्रमंडल खेल के प्रदर्शन से भारतीय खेल जगत को सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी.

(लेखक खेल समीक्षक, कमेंटेटर हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

 

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