विपक्ष के ऐसे 10 बड़े फैसले जिन्‍होंने देश की सियासत की तस्‍वीर बदल दी
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विपक्ष के ऐसे 10 बड़े फैसले जिन्‍होंने देश की सियासत की तस्‍वीर बदल दी

2014 से 2020 तक विपक्ष कोई ऐसा फैसला नहीं ले पा रहा है जिससे बीजेपी को टक्कर दी जा सके. विपक्ष का मनोबल टूटा है, ना कोई नई पार्टी है, ना नेता है और ना ही कोई नया विचार. देश को विपक्ष की जरूरत है, होगी और हमेशा रहेगी.

विपक्ष के ऐसे 10 बड़े फैसले जिन्‍होंने देश की सियासत की तस्‍वीर बदल दी

 ये पहली बार नहीं है कि देश में विपक्ष के सामने एक मजबूत सरकार है. एक वक्त था कि जब कांग्रेस की बेहद ताकतवर सरकार इस देश पर राज करती थी थी और उस वक्त विपक्ष था बेहद कमजोर. तब कांग्रेस को चुनाव हराने के लिए विपक्ष ने मिलकर चुनाव लड़ने की सोची।. यह पहल 1977 में पूरी हुई थी जब सारे विपक्ष ने मिलकर चुनाव लड़ा था. 1947 से 2014 तक विपक्ष ने कई बड़े कदम उठाए जिससे देश की राजनीति का चेहरा मोहरा ही बदल गया. आज विपक्ष बड़ी भूमिका में नहीं दिख रहा है. यही कारण है कि बीजेपी के सामने वोटर के सामने कोई विकल्प नहीं है।

इसका एक कारण कांग्रेस में चल रहा गृह युद्ध है. पार्टी में 'सरनेम' एक-दूसरे से लड़ रहे हैं. कांग्रेस ना तो अध्यक्ष चुन पाई है और ना ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC). यही कारण है कि कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी की भूमिका ढंग से नहीं निभा पा रही है. उसका सारा ध्यान गांधी परिवार पर है जिसको जनता ने एक बार फिर से नकार दिया है. लोकतंत्र में  प्रभावशाली विपक्ष बहुत जरूरी है। किस तरह देश के इतिहास मेंं विपक्ष ने बड़े फैसले लिए हैं, आइए भारतीय राजनीति में विपक्ष के 10 बड़े फैसलों पर नजर डालते हैं.

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पहला फैसला  को  आरएसएस पर केंद्रीय मंत्री  पटेल ने बैन किया था. महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ राजनीतिक रूप से खत्म हो गया था लेकिन जन संघ की 1951 में स्थापना और संघ से राजनैतिक पार्टी में संगठन मंत्रियों को भेजे जाने की परंपरा ने एक बड़ी पार्टी को जन्म दिया. इसी पार्टी से अटल बिहारी बाजपेयी निकले और 1967 और 1977 के चुनावों में जनसंघ ने कांग्रेस के खिलाफ अहम भूमिका निभाई. जनसंघ के पहले अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी बने, यह एक बड़ा कदम था.

दूसरा बड़ा फैसला 1959 में हुआ जब सी. राजगोपालाचारी कांग्रेस से बाहर आ गए और उन्होंने स्वतंत्र पार्टी का गठन किया. ये पार्टी 1974 तक देश में सक्रिय रही. लोकसभा में विपक्ष का बड़ा प्लेटफॉर्म बनी. दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों को जगह दी. दिल्ली में कम संख्या के बावजूद उन्होंने कांग्रेस को टक्कर दी.

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देश के विपक्ष का तीसरा सबसे बड़ा फैसला था जब विपक्ष की तरफ से पहल डॉ. राम मनोहर लोहिया ने की. लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद को पैदा किया. उनके हिसाब से कांग्रेस को हराना विचारधारा के सवालों से ज्यादा जरूरी था. यही कारण था कि 1967 में स्वतंत्र विधायक दलों की कई राज्यों में सरकार बनी जिसमें पीएसपी, जनसंघ, बीकेडी और एसएसडी जैसी पार्टियां शामिल थीं.

चौथा बड़ा फैसला विपक्ष ने तब लिया जब इंदिया गांधी के खिलाफ जय प्रकाश नारायण को खड़ा कर दिया. जेपी के इर्दगिर्द इंदिरा के खिलाफ विपक्ष एक हो गया.

पांचवां बड़ा फैसला तब हुआ जब जनता पार्टी बनी. सब दलों ने मिलकर उस वक्त की ताकतवर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा. इंदिरा गांधी चुनाव हारीं. पहली बार कांग्रेस केंद्र से बाहर हो गई.

छठवां बड़ा फैसला 1980 में लिया गया. जनता पार्टी टूट चुकी थी. जन संघ गायब हो चुका था. संघ ने फिर फैसला लिया और बीजेपी का जन्म हुआ. बीजेपी ने अपने जन्म के 16 साल बाद केंद्र में अपनी सरकार बना ली. इस फैसले से वाजपेयी और आडवाणी की जोड़ी का जन्म हुआ.

सातवां बड़ा फैसला विपक्ष ने 1990 में लिया जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने. लेफ्ट और बीजेपी ने उनको समर्थन दिया. दूसरी बार देश में 9 साल के भीतर गैर कांग्रेस सरकार बनी.

आठवां बड़ा फैसला बीजेपी के भीतर का था. आडवाणी ने बाजपेयी के लिए जगह बनाई. उनके फैसले और हिंदुत्व की राजनीति से बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी तो बनी पर उनके नेतृत्व को अन्य दलों ने स्वीकार नहीं किया. ऐसे में अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में एनडीए 7 साल तक राज कर पाया.

नौंवां बड़ा फैसला  विपक्ष में बैठी सोनिया गांधी ने उस समय किया. उन्होंने कांग्रेस की एकला चलो रे की राजनीति को खत्म करके मिलकर चुनाव लड़ने की परंपरा को जन्म दिया और यूपीए की नींव रखी. यही कारण रहा कि कांग्रेस 10 साल सत्ता में रही.

आखिरी और दसवां सबसे बड़ा फैसला फिर विपक्ष ने लिया. यह फैसला 2009 के बाद लिया गया जिसका प्रभाव दूरगामी रहा. संघ ने आडवाणी को रिटायर कर दिया. मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने. 2014 में उन्होंने दस साल राज कर चुकी कांग्रेस को हरा दिया. 2014 में कांग्रेस की सबसे बड़ी हार हुई. बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला.

लेकिन 2014 से 2020 तक विपक्ष कोई ऐसा फैसला नहीं ले पा रहा है जिससे बीजेपी को टक्कर दी जा सके. विपक्ष का मनोबल टूटा है, ना कोई नई पार्टी है, ना नेता है और ना ही कोई नया विचार. देश को विपक्ष की जरूरत है, होगी और हमेशा रहेगी.

(लेखक: कार्तिकेय शर्मा WION के राजनीतिक संपादक हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

 

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