विश्व काव्य दिवस विशेष: कवि से कविता का होना...
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विश्व काव्य दिवस विशेष: कवि से कविता का होना...

हमारे यहां गौतम से लेकर गांधी तक सब मौजूद है अजी हमारे आगे धरम ईमान, राम-रहीम का क्या वजूद है सच्चाई, नैतिकता तो हमारे सामने डूबता हरसूद हैं संवेदनाएं रोज़ हमारे कदमों में अपना सिर टेकती हैं ईमानदारी खुद की मार्केटिंग की राह देखती हैं.

विश्व काव्य दिवस विशेष: कवि से कविता का होना...

कविराजा अब कविता के ना कान मरोड़ो/ धंधे की कुछ बात करो कुछ पैसा जोड़ो, शेर-शायरी कविराजा ना काम आएंगे, कविता की पोथी को दीमक खा जाएंगे, भाव चढ़ रहे, अनाज महंगा हो रहा है दिन दिन, भूखे मरोगे रात कटेगी तारे गिन गिन, इसलिए ये सब कहता हूं ये सब छोड़ो, धंधे की कुछ बात करो कुछ पैसा जोड़ो.

नवरंग फिल्म की ये पंक्तियां इसलिए याद है, क्योंकि बचपन से सुनता आ रहा हूं. जब पहली कविता लिखी और पिताजी को दिखाई जो खुद कविता किया करते थे तो उन्होंने कविता की तारीफ करते हुए उक्त पंक्तिया दोहरा दी थी. उनका मानना रहा है कि कवि हृदय धरती पर नहीं रहता है, वो किसी दूसरे लोक में विचरण करता रहता है. और जब ठोस ज़मीन पर उसके कोमल भावना के पैर पड़ते हैं तो उसमें से भाव रिसने लगते हैं. उसे आघात पहुंचता है. खैर पिताजी यह बात दोहराते रहे और कविता होती रही. जवानी की दहलीज पर जब पहुंचे तो पता चला कि वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान. निकलकर आंखो से चुपचाप, बही होगी कविता अंजान. अब वियोग के लिए किसी के साथ संयोग जुड़ना जरूरी था, क्योंकि रॉकस्टार फिल्म की तर्ज पर जब तक दिल नहीं टूटेगा तब तक बात में दर्द नहीं आएगा. तो दर्द की तलाश शुरू हुई. जब ये खोज पूरी होती सी लगी तो दर्द की वजह को प्रभावित करने के लिए प्रभावी शब्दों की खोज शुरू हुई. अब कविता से ज्यादा असरदार कुछ होता नहीं है. जिस बात को कहने मैं कई बार पूरा गद्य छोटा पड़ जाता है, उसे पद्य की दो पंक्तियां ही कह जाती हैं. रुमानियत में पड़े हुए आदमी को जब अपनी प्रेमिका से कुछ कहना होता है तो वो ग़ालिब को तवज्जो देना शुरू कर देता है. क्या है ना जब कविता के शब्द प्रेमिका के सामने झरते हैं और उसे कुछ समझ नहीं आता तो वो सोचती है कि प्रेमी काफी जहीन है और वो प्रेम करने पर मजबूर हो जाती है.

मसलन खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो, हम तो आशिक है तुम्हारे नाम के, इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के.

वहीं कविताओं का फायदा ये भी होता था कि आप यदा कदा महफिल में किसी विषय पर चर्चा करते हुए अपने साथियों से भिड़े रहते हैं और वो आपकी बात सुनने को राजी नहीं होते तो आप हल्की सी सांस लेते हुए बोलते हैं - या रब वो ना समझे हैं ना समझेंगे मेरी बात, दे और दिल उनको जो ना दे मुझको ज़ुबां ओर. बस महफिल चुप और आप अचानक से सबसे ऊपर पहुंच जाते हैं. खैर कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आपकी बात का असर पूरी तरह नहीं होता और बात खाली चली जाती है, लेकिन क्योंकि आप तो कविता जानते हैं तो आपको ड़रने की जरूरत नही है. आप तुरंत ऐसे लोगों की तरफ एक नज़र फेंकते हैं और कहते हैं, बाज़ीचा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगे, होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे. इस तरह महफिल गिरफ्त में आ जाती. वहीं प्रेमिका भी अब आपके साथ है, दोस्त भी आपको मानते हैं मतलब पूरी दुनिया आपकी मुट्ठी में आ चुकी है. जब आप कविता की इस ताकत को समझते हैं तो दिमाग सोचता है बहुत उधार का सामान ले लिया, अब कुछ खुद का किया जाए. यही वो पल है जब कविता उपजती है.

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खास बात ये है कि मां, पिता, भाई-बहन, दोस्त ये वो भाव है जो किसी भी अन्य कवि के मन की तरह इस कवि के मन में बाद में भी बाद में उपजे. उसके पहले तो ये भाव आए - वक्त की आंच पर जब दिल चढ़ाइये, प्यार को फिर देर तक उसमें पकाइए, बातों का ले मसाला, हल्के से उसमें डाला, नमक तकरार का मिलाकर, अच्छी तरह चलाकर, धीमे-धीमे एक रिश्ता बनाइए, फिर रिश्ता कायम हुआ और एक दिन वो भी आया जब पिताजी की कही सच हुई और हकीकत की धरती पर पैर पड़े तो मालूम चला कि भई काम करना होगा, क्योंकि वो जो शब्दों से अभिभूत थी उसकी जरूरतें भी हैं. फिर उसने अपनी जरूरत को सहारा दिया. और वियोग हासिल हुआ - आज सुबह ख्वाब के झरोखे से झांका, तो मुझे तुम कुछ तलाशती सी नज़र आई, तुम शायद यादों के पन्नों में कुछ खंगाल रही थी, बहुत सोचा कि तुम्हे बता दूं, जो तुम ढूंढ रही हो, वो तुम्हे नहीं मिलेगा, हमारी पिछली इबारतें जिस पन्ने पर लिखी थी, वो पन्ने में तुम से बगैर बताए चुरा लाया था, तुम हमेशा से ही लापरवाह रही हो, मुझे डर था कि तुम इन यादों को भी खो दोगी, वो यादे मेरे पास आज तक सुरक्षित हैं, मैं अक्सर यूं ही उन पन्नों को खोल लेता हूं, यादों के अलाव से, ठिठुरते भावों को सेंक लेता हूं. इसके बाद क्या था फिर कविता में मां आई, पिता भी आए, भूख मिली, संवेदना दिखी. घटनाएं घटती रहती है और कविता होती रहती है. इस बीच में कविता पेशेवर भी हुई. और किसी ने अपने भावों को व्यक्त करने के लिए शब्द मांगे और उसके बदले कीमत भी मिली. इसके बाद कविता बाज़ार में आ गई.

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अब कविता की ख्वाहिश छा जाने की नहीं कुछ पा जाने की हो गई. कविता अब बाज़ार में पहुंच गई थी और कह रही थी- आइए जनाब बाजार घूमिये- चाहे जो खरीदिये, चाहे जो बेचिए यहां सब कुछ है बिकता जो पर्दे के पीछे है या जो है दिखता क्या खरीदना चाहेंगे? इंसान की जान, या किसी का ईमान आपको दिमाग भी मिल जाएगा, जिस्म भी हमने जोड़ रखी हैं चीजें हर किस्म की कम दामों में दो पैरों वाला कोल्हू का बैल लीजीए नवजात से लेकर नवयौवना तक सब मौजूद है, जिससे चाहे खेल लीजिए. तो आइए जनाब बाज़ार घूमिये चाहे जो खरीदिये, चाहे जो बेचिए हमारे पास संवेदना और आंसू भी हैं इनके साथ दर्द का एक कॉम्बो धांसू भी है. साज़िश लीजिए, षड़यंत्र ले जाईए साथ में विवादों का एक पैक मुफ्त पाईए ढोने की ज़रूरत नहीं है (अरे मैंने कहा...) ढोने की ज़रूरत नहीं है.. हम होम डिलीवरी भी करते हैं ऑर्डर दीजिए, फिर देखिए हम कैसे आपका दिमाग बाज़ारियत से भरते हैं. ये लीजिए नारे और वो बिक रहे हैं जयकारे उन्माद फैलाने, दंगा भड़काने के लिए विशेष छूट है जनाब इसके साथ आपको मिल सकती है छपने से पहले विवादों में घिर जाने वाली प्रतिबंधित किताब जल्दी कीजिए महाराज वरना पछताएंगे आपने नहीं लिया तो विपक्षी ले जाएंगे अगर आप नेता हैं, तो आपको कुछ खास दिखाते हैं यह उन विधायकों का झुरमुट है जो बिकते-बिकाते हैं हम विशेषतौर पर सबका मंच भी सजाते हैं अरे आप कहिए तो सही, हम सुनने के लिए भीड़ भी जुटाते हैं. हमारे यहां गौतम से लेकर गांधी तक सब मौजूद है अजी हमारे आगे धरम ईमान, राम-रहीम का क्या वजूद है सच्चाई, नैतिकता तो हमारे सामने डूबता हरसूद हैं संवेदनाएं रोज़ हमारे कदमों में अपना सिर टेकती हैं ईमानदारी खुद की मार्केटिंग की राह देखती हैं.

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इसके अलावा हमारे यहां प्यार भी बिकता है इसे खरीदने और बेचने वाले में यह बेशुमार दिखता है. हमारे यहां का प्यार ज्यादा नहीं टिक सकता है. इसका फायदा यह है कि इंसान कम समय में ज़्यादा स्वाद चख सकता है इसे कहते हैं इंस्टेंट प्यार यानि एक छोड़िए और दूसरा तैयार आज कल इसी प्रकार के प्यार की डिमांड है घबराइए नहीं इसे बेचने में हमारी कमांड है. क्या कहा आप यह सब नहीं चाहते हैं , चलिए आप को धोखा छल जैसा कुछ दिखाते हैं क्या? आप सच्चाई और ईमान को लेकर विश्वस्त हैं लगता है आप गांधी जैसे किसी के भक्त हैं भाई साब इन आउटडेटेड चीजों की बात करके हमें मत कीजिये फ्रस्टेट ज़रा ज़माने के साथ चलिए और बदलिए अपना टेस्ट तो क्या बोलते हैं आप आईए जनाब बाज़ार घूमिये चाहे जो खरीदिये, चाहे जो बेचिए...

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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