'16 दिसंबर की वह कभी न भूलने वाली रात, निर्भया की आहों भरी रात'
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'16 दिसंबर की वह कभी न भूलने वाली रात, निर्भया की आहों भरी रात'

भययुक्त समाज जो सदैव नारी जीवन का मूल्यांकन ही करते रहता है. क्या वह नारी को निर्भय होने का अधिकार दे सकता है? जघन्य अपराधों की श्रृंखला से जुड़ा समाज नारी को निर्भया नहीं बना सकता. कातिलाना वहशियत की त्रासदी झेलती नारी क्या सचमुच निर्भया है?

'16 दिसंबर की वह कभी न भूलने वाली रात, निर्भया की आहों भरी रात'

जिंदगी सिसकती तड़पती गुजर गई, सांसों की तर टूट गई और मौत के पश्चात नाम मिला निर्भया! क्या सच में ये नाम उन सभी अहसासों, जज्बातों और क्रूरतम अपराधों को अंजाम देने वाला कोई तोहफा है, पद है, अंजाम है या मौत का पैगाम है. प्रतिष्ठा है या कलंक है, क्या है? जो उस रात को निर्भया के नाम की पहचान मिली. नहीं चाहिए ऐसा नाम, जिसने जिंदगी को सिसकियां दी और मौत को विरासत में निर्भया नाम. आंखें खुलनी चाहिए समाज की, उसकी परवरिश की जिसने इस नाम को पहचान दी अपने घिनौने कुकृत्यों के द्वारा.

भययुक्त समाज जो सदैव नारी जीवन का मूल्यांकन ही करते रहता है. क्या वह नारी को निर्भय होने का अधिकार दे सकता है? जघन्य अपराधों की श्रृंखला से जुड़ा समाज नारी को निर्भया नहीं बना सकता. कातिलाना वहशियत की त्रासदी झेलती नारी क्या सचमुच निर्भया है? क्या मात्र नाम देने से निर्भया के साथ न्याय हो गया? सीमित दायरों में छटपटाती जिंदगी का क्या अस्तित्व है. यह हमें निर्भया के जीवन से अहसास होता है. क्रूरतम इरादों के साए में पनपे खूंखार दरिंदों के पंजों में जकड़ी आत्मसम्मान को बचाने के लिए अपने हर अहसास पर दम तोड़ती जिंदगी वहशियों के अट्टहासों को सहन करती कितनी बार मरी होगी, क्या हम उस दर्द का अहसास कर सकते हैं? इस निर्भया नाम के पीछे दो कटु गरल पी लेने को मजबूर कर देने वाली सत्यता है, क्या उसे समाज समझ सकेगा? क्या नारी समाज की दम तोड़ती कहानी का नाम ही निर्भया है? जीवन की बाजी को दांव पर लगा देने का अंजाम निर्भया है? अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अंतिम सांसों तक संर्घश का नाम निर्भया है तो शर्मनाक है यह सत्य कि समाज में निर्भया सुरक्षित है.

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नारी जो सदा से सम्मानीय है क्या उसका जीवन इतना दीन-हीन है कि कोई भी उसे प्रताड़ित कर उसका गौरव, उसका स्वाभिमान, उसका सम्मान छीन ले. कोमलांगी नारी अपने मजबूत इरादों से कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी समाज में अस्तित्व को सुरक्षित रखती है किंतु क्या करें, उन नरभक्षियों का, जो मानव कहलाने के ही अधिकारी नहीं. उन्मादी, हिंसक, पशुप्रवृत्ति वाले मनुष्य सभ्य समाज का अंग नहीं होने चाहिए. निर्भया के साथ हुए हादसे को जन्म देने वाले ये हत्यारे समाज के दुश्मन हैं जो नारी का सम्मान नहीं कर सकते, नारी शरीर और उसके मन की पीड़ा को नहीं समझ सकते व शारीरिक रूप से मनुष्य होकर भी राक्षस हैं, ऐसे राक्षकों का वध समाज व कानून द्वारा कर देना चाहिए.

'निर्भया' के जीवन ने नारी सुरक्षा को प्रश्नों के दायरे में खड़ा कर दिया है. आज के वातावरण में नारी कितनी सुरक्षित है, उसके सम्मान के लिए कानून व समाज में क्या बदलाव हुए हैं, क्या कोई सीख मिली है समाज को? आज भी एक नहीं कितनी ही निर्भया भय का सामना करती अपनी जिंदगी की सिसकती सांसों के साथ समाज में विभिन्न हादसों का शिकार हो रही हैं, क्या कोई उनका सम्बल बनकर खड़ा है? शारीरिक व मानसिक रूप से सताई ये नारियां समाज में कैसे भयमुक्त होकर रहें यह आज का गंभीर विषय है. समाज में जैसी पहचान निर्भया की बनी है, जिस नाम की अधिकारिणी वह बनी है, ऐसी पहचान किसी नारी को न मिले. इतने अत्याचारों का दंश झेलने वाली निर्भया की इति श्री सिर्फ नाम से ही नहीं होनी चाहिए, जरूरत है समाज में सुरक्षित पर्यावरण की. समाज के हर वर्ग को नारी सम्मान के प्रति जागरूक होना होगा.

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नारी का हर रूप वंदनीय है, हर घर की आधार नारी है, किसी भी घर की चाहरदीवारी निर्भया की सिसकियों से न गूंजे, हर घर में प्रत्येक संतान को नारी सम्मान की शिक्षा मिलनी चाहिए. समाज की सोच और देश के कानून इतने सुलझे हुए होने चाहिए कि किसी की कुदृष्टि से कोई निर्भया घायल न हो. ऐसा हो कि किसी कुकृत्य को जन्म देने से पहले उससे मिलने वाली सजा से ऐसे नर पिशाचों की रूह कांप जाए. क्या हमारा कानून निर्भया का साथ देगा? क्या वो बीती रात हर किसी के जहन में है? क्या ये प्रश्न हर किसी की अंतर्आत्मा को झिंझोड़ नहीं देता कि ऐसे किसी भी हादसे की पुनरावृत्ति न हो यदि नहीं तो निर्भया के बलिदान के पश्चात भी हम सब आज उसे सच्ची श्रद्धांजलि देने के हकदार नहीं हैं.

अखबारों की सुर्खियों में नारी सम्मान को पददलित करने की पंक्तियां रोज ही पढ़ने को मिलती हैं, नारी सम्मान को सहानुभूतियों की नहीं, सख्त कानून व अच्छे-सच्चे समाज की आवश्यकता है. जिससे निर्भया सच में भयमुक्त समाज में रह सके. वही 16 दिसंबर की रात को बलिदान हुई निर्भया को हमारी सही अर्थों में श्रद्धांजलि होगी.

(रेखा गर्ग सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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