ट्रिपल तलाक: 'शुक्रिया सुप्रीम कोर्ट...' - निदा रहमान
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ट्रिपल तलाक: 'शुक्रिया सुप्रीम कोर्ट...' - निदा रहमान

कभी तार से, कभी फोन से, कभी व्हाट्सअप से मुस्लिम मर्द अपनी बीवियों को तलाक दे देते थे लेकिन अबये मुमकिन नहीं है.

न जाने कितनी औरतें तलाक, तलाक, तलाक के तीन लफ्ज़ सुनकर अपनी ज़िंदगी खराबकर चुकी हैं.

शुक्रिया सुप्रीम कोर्ट... सिवाए इसके और कोई लफ्ज़ हैं ही नहीं कहने के लिए. इंस्टंट ट्रिपल तलाक के ज़रिए जो ज़ुल्म मुस्लिम महिलाओं पर किया जा रहा था उससे आज़ादी मिली है. सालों की लंबी लड़ाई और अपनों से बग़ावत के बाद आखिरकार मुस्लिम महिलाओं की मेहनत रंग लाई है. न जाने कितनी मुसीबतों का सामना किया है, न जाने कितने ताने सुने हैं, न जाने कितनी गालियां खांईं हैं, न जाने कितनी तोहमते लगीं, लेकिन मुस्लिम औरतों ने हार नहीं मानी न ही डरीं, आखिरकार इस लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया. 

कभी तार से, कभी फोन से, कभी व्हाट्सअप से मुस्लिम मर्द अपनी बीवियों को तलाक दे देते थे लेकिन अब ये मुमकिन नहीं है. न जाने कितनी औरतें तलाक, तलाक, तलाक के तीन लफ्ज़ सुनकर अपनी ज़िंदगी खराब कर चुकी हैं. उनके पास न घर बचा है न परिवार, न ही ज़िंदगी जीने का कोई ज़रिया. सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने के लिए ट्रिपल तलाक पर बैन लगाया है और सरकार से इस पर कानून बनाने को कहा है. हम मुस्लिम औरतें उम्मीद करती हैं कि 6 महीने के अंदर मोदी सरकार तमाम राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर कानून बना लेगी.

हम खुश हैं, क्योंकि ट्रिपल तलाक की तलवार मुस्लिम औरतों के सिर पर से हट गई है वरना पता नहीं कब गुस्से में पति ज़रा सी बात पर नाराज़ होकर तीन तलाक बोल दे और एक लम्हें में घर-परिवार टूट जाए.आज हर वह औरत खुश है जो इस ज़ुल्म के ख़िलाफ़ थी, जो ट्रिपल तलाक को अमानवीय मानती थी. इंस्टंट ट्रिपल तलाक कुरान के भी खिलाफ़ है लेकिन ये बात मानता कोई नहीं था.

जो फ़ैसला आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये खुद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी कर सकता था, उसे पहले ही इंस्टंट ट्रिपल तलाक को बैन कर देना चाहिए था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. नतीजा ये हुआ कि आप जिसे अपने घर की बात कह रहे थे वही घर की औरतें सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं और उन्हें वहां से जीत हासिल हुई.
सोशल मीडिया पर ट्रिपल तलाक पर लिखने के बाद मुखर मुस्लिम औरतों को टारगेट किया गया उन्हें डरायाभी गया, मज़हब का डर दिखाया गया लेकिन वो खुलकर लिखती रहीं कि ट्रिपल तलाक मंज़ूर नहीं है.

मुस्लिम पतियों के हाथ में जो ट्रिपल तलाक का हथियार था वो उसे किसी भी वक़्त इस्तेमाल कर सकते थे,लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. मुस्लिम महिलाओं के चेहरे पर मुस्कुराहट है, आंखों में खुशी के आंसू हैं. ये मुस्लिम औरतों की सबसे बड़ी जीत है. मिठाइयां बांटी जा रही हैं, एक-दूसरे को बधाई दी जा रही है क्योंकि ये आज़ादी और बराबरी का फ़ैसला है. सालों से जारी सियासी घमासान के बाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इंसाफ़ किया है.

इंस्टंट ट्रिपल तलाक के मामले भले ही बहुत कम सामने आते हैं लेकिन जो गलत है उसे बंद होना ही चाहिए. मुसलमान अपने मज़हब का पाबंद है और शरिया में कोई बदलाव नहीं चाहता है तो उसे व्हाट्सअप, फोन,खत, तार, मेल से पहले तलाक को नकार देना चाहिए था. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में बाद में दिया उसे पहले ही लागू करना चाहिए था. लेकिन तब शायद पर्सनल लॉ बोर्ड को लगा नहीं होगा कि घर की चार दीवारी में रहने वाली औरतें एक दिन सुप्रीम कोर्ट पहुंचकर उन्हें आईना दिखा देंगी.

इंस्टंट ट्रिपल तलाक से आज़ादी मुबारक. ये आज़ादी मुबारक हर उस औरत को जो इस ज़ुल्म का शिकार हुई है, मुबारक हर उस औरत को जो धर्म के ठेकेदारों से लोहा लेकर सामने आई. मुबारक हर उस मुस्लिम औरत को जो ट्रिपल तलाक़ के खिलाफ़ थी. सबको मुबारक हमारी जीत हुई है. हमें सम्मान की ज़िंदगी और कुरान के ख़िलाफ़ दी जाने वाली तलाक से मुक्ति मिली है. एक बार फिर से थैंक्यू सुप्रीम कोर्ट...

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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