दुनिया में डंका बजाने वाली Harley Davidson भारत में क्यों नाकाम रही?
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दुनिया में डंका बजाने वाली Harley Davidson भारत में क्यों नाकाम रही?

अनोखी बाइक बनाने वाली अमेरिका की कंपनी हार्ले डेविडसन भारतीय बाजार से पूरी तरह निकलने की तैयारी कर रही है. ऐसा नहीं भी हो तो कम से कम कंपनी की कोशिश खुद को समेटने की है. लगता है कि करीब एक दशक के मुश्किल भरे सफर के बाद हार्ले डेविडसन का भारतीय बाजार से मोहभंग हो गया है.

दुनिया में डंका बजाने वाली Harley Davidson भारत में क्यों नाकाम रही?

मुझे वह शानदार दिन याद है जब मोटरसाइकिल बनाने वाली अमेरिकी कंपनी हार्ले डेविडसन ने अपनी बाइक पहली बार भारत की सड़कों पर उतारी थी. कुछ चुनिंदा पत्रकारों को इसकी सवारी के लिए दिल्ली के लोधी गार्डन इलाके में बुलाया गया था. जिन्हें राइड का न्यौता मिला था, वह सभी भाग्यशाली माने जा रहे थे और उनमें मेरा नाम भी शामिल था.

खैर, हम सभी को यह हाई-पावर बाइक दिल्ली में एक तयशुदा रूट पर चलाने को दी गई. जाहिर है हार्ले डेविडसन का लुत्फ जिम्मेदारी के साथ उठाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हम अपने जोश को काबू में नहीं रख पाए और कतार को तोड़ते हुए मनमाने तरीके से राइड का मजा लिया. असल में इस भारी-भरकम बाइक को लेकर शुरू में उत्साह ही कुछ अलग था. निश्चित तौर पर, उस वक्त हार्ले डेविडसन बाइक एक नायाब चीज थी. एक अंतराल के बाद अब 2020 में हालात अलग हैं. अनोखी बाइक बनाने वाली अमेरिका की यह कंपनी भारतीय बाजार से पूरी तरह निकलने की तैयारी कर रही है. ऐसा नहीं भी हो तो कम से कम कंपनी की कोशिश खुद को समेटने की है. लगता है कि करीब एक दशक के मुश्किल भरे सफर के बाद हार्ले डेविडसन का भारतीय बाजार से मोहभंग हो गया है. 

हालांकि, लॉन्च के बाद हार्ले डेविडसन के लिए शुरूआती कुछ साल उम्मीद से भरे हुए थे. उस वक्त के एमडी अनूप प्रकाश भारतीय बाजार को लेकर उत्साह में दिखते थे. असल में तब भारत में सुपर बाइक का दौर शुरू नहीं हुआ था. सुपर बाइक के तौर पर तब सड़कों पर सुजुकी की 'हायाबुसा' ही कभी-कभार नजर आती थी. हार्ले डेविडसन को भी एक बाइक बनाने वाली मजबूत और संभावनाशील कंपनी के तौर पर देखा गया. ऐसा लगा कि कंपनी का इरादा भारत में लंबी रेस का घोड़ा बनने का है. हार्ले डेविडसन ने असेम्बलिंग के लिए हरियाणा के बावल में अपनी यूनिट स्थापित की. यह बड़ी बात थी क्योंकि तब ऐसी बड़ी बाइक का सीधे आयात किया जाता था. यहां तक कि होन्डा और यामाहा जैसी कंपनियां भी भारत की यूनिट में असेम्बलिंग नहीं करती थीं.

खैर शुरुआती जोश धीरे-धीरे ठंडा पड़ता गया. इसके बाद अमेरिका की इस विख्यात कंपनी को भारतीय बाजार की कड़वी सच्चाई का सामना करना पड़ा. यानी किसी प्रोडक्ट को लेकर शुरुआती जोश का मतलब यह नहीं कि वास्तव में उसकी ब्रिकी भी होगी. वैसे तो भारतीय खरीदार सभी ब्रांड को आजमाते हैं, लेकिन आखिरकार कुछ भरोसेमंद ब्रांड को ही चुनते हैं. कार के मामले में उसका भरोसा मारूति सुजुकी और ह्युंडई मोटर पर है, तो बाइक के मामले में हीरो मोटो, बजाज ऑटो, टीवीएस और रॉयल एनफिल्ड से जुड़ाव है. इसके अलावा, बाइक बनाने वाली भारतीय कंपनियों ने भी समय के साथ खुद को बदला है. उन्होंने समय के साथ बेहतर और आकर्षक मॉडल लॉन्च किए. जबकि हार्ले डेविडसन का जलवा फीका पड़ता चला गया.  

हैरत की बात नहीं है कि भारत में पिछले दस साल में हार्ले डेविडसन की सिर्फ 30 हजार बाइक बिकी हैं. जबकि भारत में हर साल 17 मिलियन यानी एक करोड़ 70 लाख बाइक बेची जाती हैं और ऐसा तब है जब 500 सीसी इंजन से ज्यादा वाली बाइक का बाजार अपने शैशव काल में है. बाद के कुछ वर्षों में हार्ले डेविडसन को दूसरी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों मसलन ट्रायम्फ, केटीएम, डुकाटी, बेनेल्ली और बीएमडबल्यू से भी मुकाबला करना पड़ा. भारत में टॉप एंड बाइक की सालाना ब्रिकी 25 हजार से कुछ ही ज्यादा है. इसलिए कई कंपनियों के आने से हार्ले डेविडसन के लिए मुश्किल बढ़ती चली गई.

बाद में भारत की रॉयल एनफिल्ड ने भी हार्ले डेविडसन के किले में सेंध लगाई. उसने 650 सीसी की इंटरसेप्टर और कॉन्टिनेंटल जीटी लॉन्च कर दी. इसके अलावा ऑस्ट्रिया, जर्मनी और इटली की बाइक और उनकी क्षमता के आगे हार्ले डेविडसन की ज्यादातर क्रूजर और लेजर बाइक कमजोर साबित हुईं. अब भी हार्ले डेविडसन की सबसे सस्ती बाइक की शुरुआत 5 लाख से होती है, जबकि इसी कीमत पर करीब दर्जनभर जाने-माने ब्रांड के कई आकर्षक मॉडल बाजार में मौजूद हैं.  

साफ है कि हार्ले डेविडसन के लिए आगे का रास्ता चुनौतियों से भरा है. कोरोना वायरस महामारी की वजह से प्रीमियम बाइक की डिमांड कम हुई है. इसके अलावा, बाजार में कड़ा मुकाबला है. अंतरराष्ट्रीय तौर पर भी हार्ले डेविडसन कंपनी कोविड-19 के बाद आई चुनौतियों से निपटने में नाकाम रही है. कंपनी ने अपनी ब्रिकी और कमाई बढ़ाने के लिए लोगों की छंटनी का प्लान लॉन्च किया है. इसके साथ ही गैर-फायदेमंद बाजार से खुद को हटाने की योजना है.

भारत में अमेरिकी ऑटोमोबाइल कंपनियों की कहानी और उनकी नाकाम रणनीति सोचने पर विवश करती है. जनरल मोटर्स को भारत में अपना काम पूरी तरह बंद करना पड़ा. वहीं फोर्ड को अपना वजूद बचाए रखने के लिए महिंद्रा एंड महिंद्रा (M&M) से विलय करना पड़ा. ऐसा लगता है कि हार्ले डेविडसन कंपनी भी इनमें से कोई एक रास्ता चुनेगी. फैसला जल्दी ही सामने आ सकता है. 

(लेखक: ZEE समूह के इंटरनेशनल चैनल WION में कार्यरत हैं.)

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

 

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