बिना 'राज्यों की शक्ति' के शराब बंदी से कैसे महफूज़ होंगे हाइवे
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बिना 'राज्यों की शक्ति' के शराब बंदी से कैसे महफूज़ होंगे हाइवे

बिना 'राज्यों की शक्ति' के शराब बंदी से कैसे महफूज़ होंगे हाइवे

राष्ट्रीय राजमार्ग से 500 मीटर की दूरी पर शराब की दुकानों के स्थानांतरण का मुद्दा देश के कुछ हिस्सों में अशांति पैदा कर रहा है. कुछ ही दिनों में इनमें से ज्यादातर शराब की दुकानों को अपने नए स्थानों पर शिफ्ट हो गई हैं. इस कदम से काफी हद तक शराब पीकर गाड़ी चलाने की प्रवृति के कम होने की संभावना है.  यह कदम काफी अच्छी मंशा के साथ उठाया गया है लेकिन इसके वांछित लाभ तभी मिल पाएंगे जब इन्हें लागू किए जाने मे पर्याप्त गंभीरता और ठोस पहल होगी. जब ये नियम सख्ती से लागू होंगे तो यकीनन उसके परिणाम बेहतर और मनोवांछित होंगे. 

इस मुद्दे की गंभीरता को समझने के लिए इसके लिए हमें एक शराबी व्यक्ति के बारे में जानना होगा .  उसके मन मस्तिष्क में झांकना होगा कि क्यों शराब पीकर ड्राइविंग करने का जोखिम उठाता है? इसके पीछे उसके  मन में कानून के  प्रति पर्याप्त सम्मान नहीं होना बड़ा कारण लगता है. इसके साथ ही यह भी कि हाइवे पर शराब पीने वाले व्यक्ति की अमूमन जांच ही नहीं होती है.

यहां तक कि अगर वह कोई एक्सीडेंट कर दे तो वह रिश्वत देकर इससे  आसानी से बच जाता है, मान लीजिए उस पर इसको लेकर मुकद्दमा भी चलाया जाता है तो मुश्किल  उसपर 2,000 रुपए का जुर्माना होगा जो कि पर्याप्त हल नहीं माना जा सकता है.उसका ड्राइविंग लाइसेंस छिन सकता है जिससे उसकी आजीविका भी छिन जाएगी. तो क्यों नहीं ड्राइवर को अपने शाम को पीने को लेकर थोड़ा-बहुत चिंतन करना चाहिए जिससे उनके दिमाग में कानून को लेकर थोड़ा डर पैदा हो. हाइवे से 500 मीटर दूर शराब की दुकानों का पुनर्वास कुछ सकारात्मक परिणाम दे सकते हैं लेकिन शेष सड़कों के बारे में क्या होगा. उन्हें कैसे सुरक्षित बनाया जा सकता है?

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(सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय राजमार्ग से 500 मीटर की दूरी पर शराब की दुकानों के स्थानांतरण का आदेश दिया था)

समस्या को समझने और उसका समाधान निकालने के लिए सबसे पहले हमें 'राज्यों की क्षमता' की मूल अवधारणा को समझने की ज़रुरत है. वैश्विक परिदृश्य को देखें तो कई ऐसे देश हैं जहां 'राज्यों की क्षमता' इतनी ज्यादा है राज्य माता-पिता और उनके बच्चों के बीच बातचीत के तरीके तक को नियंत्रित करता है, यहां तक कि उनके घरों की सीमाओं में भी.

वहीं एक पहलू ये भी है कि कई देश ऐसे हैं जहां हत्या जैसे अपराध भी स्थानीय समुदायों द्वारा हल कर लिए जाते हैं और राज्य को इसके बारे में भी जानकारी भी नहीं होती है. लेकिन भारतीय राज्य इन दोनों अतिरकों के बीच के दायरे में आते हैं.

अपने स्वयं के कानून लागू करने की अपनी क्षमता को बढ़ाने की जरूरत है. इसके लिए, नशा करके ड्राइविंग को समाप्त करने, अधिक पुलिस अधिकारियों की भर्ती, उन्हें अच्छी तरह से तैयार करने, उनके बेहतर तरीके से प्रशिक्षित करने और यह सुनिश्चित करना होगा कि वे भ्रष्ट नहीं हैं और त्वरित कानूनी प्रक्रिया की गारंटी दे रहे हैं जैसी व्यवस्थाएं करनी होंगी. इसमें जुर्माना लगाने की आवश्यकता होगी, जिससे उन्हें इस बात का अहसास रहे कि बिना ड्राइविंग गाड़ी चलाना एक बहुत बड़ा अपराध माना जाएगा और राज्य में भी इस कानून को लागू करने की क्षमता होगी.

एक आम तर्क यह है कि हम एक अमीर देश नहीं हैं और सामाजिक क्षेत्र से धन नहीं ले सकते और आपराधिक न्याय व्यवस्था के लिए आवंटित नहीं कर सकते, यह मौलिक रूप से दोषपूर्ण है 'राज्य' और उसके 'नागरिकों' के बीच सबसे बुनियादी अनुबंध यह है कि नागरिक कानून का पालन करेंगे और अगर गलत होगा तो राज्य हमेशा न्याय प्रदान करने के लिए कदम उठाएंगे.

परिणामस्वरूप, यह जरूरी है कि राज्य को अपने नागरिकों के प्रति अपने सबसे मूलभूत दायित्वों का सम्मान करना चाहिए और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए उचित 'राज्य क्षमता' बनाना चाहिए. अगर दंड बढ़ जाएंगे और कई प्रक्रियाएं स्वचालित हो जाएंगी, तो एक मजबूत आपराधिक न्याय प्रणाली बन जाएगी और वह खुद को पर्याप्त परिणाम उपलब्ध कराएगी. अगर कानून का शासन होता है तो हम एक कुशल समाज भी बनेंगे. कम शराबी ड्राइवरों के साथ कम मृत्यु होगी, बेहतर प्रवर्तन के साथ सड़कों और समाज में पर्याप्त व्यवस्था होगी. इसको सटीक मौद्रिक टर्म में अनुवाद करना तो मुश्किल है लेकिन यह साफ है कि इससे समाज को बेहद लाभ मिलेगा.

ऐसे अधिकार संपन्न राज्य अपने कमजोर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम होंगे, लोग अधिक जिम्मेदार होंगे और यातायात नियमों का पालन करना शुरू कर देंगे और वे पर्यावरण को खराब करने और प्रदूषित करने जैसे अपराधों से बचेंगे. इससे अर्थव्यवस्था को मजबूत बढ़ावा मिलेगा क्योंकि विवाद होने पर लोग अनुबंधों पर हस्ताक्षर करेंगे और अदालत से इसे तेजी से लागू करने के लिए कदम उठाएगे और इस तरह के माहौल में लोग अपना व्यवसाय भी स्थापित करना चाहेंगे.

अधिकतर राज्य की क्षमता के निर्माण में सरल लेकिन मजबूत कानूनों की आवश्यकता होगी, स्पष्ट प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाएगा, पर्याप्त प्रशिक्षित हाथ और आवश्यक उपकरण प्राप्त होंगे, भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मजबूत निरीक्षण, सत्तारूढ़ शासन की इच्छा और एक सामाजिक संस्कृति जो 'कानून का शासन' करती है, ऐसे माहौल में एक चालक जो अपनी गाड़ी में शराब की बोतल ले जाना चाहता है वो ऐसा करने से पहले सौ बार सोचेगा.

(लेखक असीम अरुण उत्तर प्रदेश पुलिस में महानिरीक्षक (एटीएस) हैं)

 

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