ZEE जानकारी : क्या न्यूज़ चैनल अब अश्लील और हानिकारक हो चुके हैं?
Advertisement

ZEE जानकारी : क्या न्यूज़ चैनल अब अश्लील और हानिकारक हो चुके हैं?

ZEE जानकारी : क्या न्यूज़ चैनल अब अश्लील और हानिकारक हो चुके हैं?

DNA एक पारिवारिक शो है, और हमें पूरी उम्मीद है कि आप अपने परिवार के साथ बैठकर ही हमारा ये शो देखते हैं. इस शो की ख़बरों और भाषा के चयन के दौरान हम इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि हमारी ख़बरें और भाषा आपको असहज न कर दे. लेकिन मीडिया में कई ऐसे लोग हैं. जिनके लिए ख़बरों और मनोहर कहानियों के बीच कोई अंतर नहीं है. ख़बरों को कच्चे माल की तरह सस्ती सोच वाली फैक्ट्री में डाला जाता है. और फिर उन्हें अश्लील बनाकर आपके सामने पेश कर दिया जाता है. भारत में टीवी देखना एक पारिवारिक गतिविधि माना जाता है. हमारे देश में ज़्यादातर घरों में एक ही टीवी होता है और पूरा परिवार एक साथ बैठकर टीवी देखता है. और ऐसे समय में अचानक सस्ता और ओछा Content देखकर लोग शर्मिंदा हो जाते हैं और न्यूज़ चैनल बदलकर कोई Entertainment चैनल लगा लेते हैं.

यहां आप पिछले कुछ हफ़्तों की Headlines और न्यूज़ कार्यक्रमों के शीर्षकों पर गौर कीजिए...

  • हनीप्रीत की 'शहद' वाली सहेली
  • होटल में हनीप्रीत की 'लीला' !
  • बुर्के में बाबा की बेबी
  • हनीप्रीत की बेवफाई का डबल गेम!
  • बलात्कारी बाबा की गुफा में कैद मुर्दे!
  • बलात्कारी बाबा का यमलोक!
  • बाबा और हनीप्रीत का डर्टी नाटक!
  • हाथ से फिसल गई हनीप्रीत
  • जेल में बाबा को चाहिए सिर्फ हनीप्रीत
  • बाबा हनी की मिड-नाइट पार्टी
  • हनीप्रीत का हनीट्रैप
  • राम रहीम का दर्द-ए-हनीप्रीत
  • हनीप्रीत की सीक्रेट लव स्टोरी

इन Headlines को पढ़कर आपके मन में क्या विचार आ रहे हैं? हमारे बहुत सारे दर्शक मीडिया के इस रवैये और चरित्र से पीड़ित हैं. और इसलिए हमें लगा कि ये देश के हर परिवार से जुड़ी हुई ख़बर है.. असल में ये ख़बरों की ख़बर है. इसीलिए हमने कल आपके सामने कुछ सवाल रखे थे. हमने आपसे पूछा था कि क्या आप आजकल अपने परिवार के साथ न्यूज़ चैनल देखते हुए असहज महसूस करते हैं? क्या न्यूज़ चैनल अब अश्लील और हानिकारक हो चुके हैं? क्या आपको ख़बरों की जगह सस्ता Entertainment दिया जा रहा है, जो परिवार के साथ बैठकर नहीं देखा जा सकता? ये वो तमाम सवाल हैं जिनका जवाब हां है. और ये बातें कहीं न कहीं आपने भी महसूस की होंगी.

आप अपने परिवार के साथ फिल्मों के चैनल देख सकते हैं. Entertainment चैनल्स भी देख सकते हैं. लेकिन न्यूज़ चैनल नहीं देख सकते. क्योंकि न्यूज़ चैनलों पर आजकल ऐसी ख़बरें दिखाई जा रही हैं, जिनकी पारिवारिक Value शून्य हैं. इन ख़बरों को देखकर परिवार के सदस्यों को कई बार शर्मिंदगी होती है और गुस्सा भी आता है कि न्यूज़ चैनल आखिर कर क्या रहे हैं? भारतीय न्यूज़ चैनलों का ये स्वरूप समय समय पर किसी चक्रवाती तूफान की तरह सामने आता रहता है. और इसका ताज़ा उदाहरण 25 अगस्त के बाद देखने को मिला. गुरमीत राम रहीम रेप के मामले में जेल क्या गया, न्यूज़ चैनलों ने सस्ती लोकप्रियता और TRP हासिल करने के लिए बहुत ही गिरे हुए स्तर की Reporting और Programming शुरू कर दी.
जिस तरह देश के आर्थिक हालात, आतंकवाद या महिलाओं की सुरक्षा पर डिबेट होते हैं, न्यूज़ चैनलों पर दिन-रात वैसी ही चर्चाएं और डिबेट बाबा और हनीप्रीत पर होने लगे. आज ही एक न्यूज़ चैनल ढेर सारे Experts को स्टूडियो में बुलाकर इस बात पर डिबेट कर रहा था कि हनीप्रीत और गुरमीत राम रहीम के बीच अवैध संबंध हैं या नहीं? बहस और डिबेट शो का स्तर इतना गिर जाएगा ये किसी ने सोचा नहीं था.

गुरमीत राम रहीम और हनीप्रीत से जुड़ी एक जैसी ख़बरें सभी न्यूज़ चैनलों के पास होती हैं, लेकिन हर चैनल उस ख़बर को Exclusive और Breaking News के तौर पर दिखाता है.  पिछले कुछ हफ़्तों में बाबा और हनीप्रीत पर नए नए खुलासे करने के लिए Reporters की पूरी की पूरी सेना उतार दी गई. बाबा की गुफा हो. या डेरा सच्चा सौदा का Wonderland.. TRP की लड़ाई में न्यूज़ चैनलों ने अश्लीलता की सारी सीमाएं तोड़ दीं. गुरमीत राम रहीम की मुंहबोली बेटी हनीप्रीत की खबरें दिखाने के चक्कर में न्यूज़ चैनल सस्ता मनोरंजन करने पर उतर आए. हनीप्रीत कौन थी? क्या थी? और कैसे राम रहीम की मुंहबोली बेटी बन गई? इस पर तरह तरह की रिपोर्टिंग होने लगी. इन कथित ख़बरों पर जो News Show बनाए गये उनके शीर्षक ऐसे थे, जैसे किसी सस्ते Novel का शीर्षक हों.

ऐसा लगता है जैसे सभी न्यूज़ चैनलों में इस बात ही होड़ मची है, कि कौन कितना ज़्यादा अश्लील शीर्षक दे सकता है. इस वक़्त हनीप्रीत लापता है, लेकिन पुलिस से ज्यादा उसकी तलाश न्यूज़ चैनलों के रिपोर्टर कर रहे हैं. कई न्यूज़ चैनलों ने अपने रिपोर्टरों की सेना नेपाल तक भेज दी है. न्यूज़ चैनल का स्वरूप पारिवारिक होता है, लेकिन न्यूज़ चैनलों का आचरण पारिवारिक नहीं है, ये बात सबके मन में है. इसे लेकर लोगों में गुस्सा है. आज हमने देश के कई शहरों में लोगों से इस विषय पर बात की. उनकी प्रतिक्रिया आपको भी सुननी चाहिए. फिल्म दिखाने वाले Channels और Entertainment Channels में Content पर किसी ना किसी तरह का नियंत्रण रहता है. और य़े बता दिया जाता है कि जो कार्यक्रम दिखाया जा रहा है वो 15 साल या 18 साल की उम्र से ज़्यादा के लोगों को ही देखना चाहिए. लेकिन न्यूज़ चैनल्स के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. और ये बहुत चिंता की बात है.

ये ख़बर देश के हर परिवार की ख़बर है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि हमारे देश में करीब 78 करोड़ लोग TV देखते हैं. देश के 18 करोड़ 30 लाख घरों में TV Sets हैं. भारत के 64% परिवार TV देखते हैं. और भारत में करीब 22 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो न्यूज़ चैनल देखते हैं. हमारे देश में TV देखने वाले लोग हर रोज़ औसतन 2 घंटे 11 मिनट तक TV देखते हैं. यानी Television और न्यूज़ लोगों के जीवन का अहम हिस्सा है. पहले पूरे देश में सिर्फ एक ही टीवी चैनल हुआ करता था और वो था दूरदर्शन. तब दूरदर्शन में भी बहुत कम न्यूज़ बुलेटिन आते थे. इसके बाद देश को नये नज़रिए की ज़रूरत महसूस हुई. लोगों को लगा कि ख़बरों को सरकारी News Platform से आज़ाद होना चाहिए. इसलिए पहले Private Channels आए. फिर उन पर न्यूज़ बुलेटिन दिखाए जाने लगे. और बाद में प्राइवेट न्यूज़ चैनल्स की शुरुआत हुई.

Zee ने देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल Zee News की शुरुआत की थी. Zee News की शुरुआत 1999 में हुई थी. लेकिन उससे पहले ही Zee ने अपने दूसरे चैनल Zee TV पर देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ बुलेटिन की शुरुआत कर दी थी. 13 मार्च 1995 को Zee TV पर Private News Industry का पहला बुलेटिन पढ़ा गया था. ये एक क्रांतिकारी बदलाव था और इसके बाद वक़्त के साथ भारत में न्यूज़ चैनलों की बाढ़ आ गई. आज पूरे देश में 391 न्यूज़ चैनल हैं.

शुरुआत में न्यूज़ चैनलों को बदलाव और सच्चाई की मशाल के रूप में देखा जाता था. लेकिन इसके बाद टेलीविज़न की दुनिया का व्यवसायीकरण हो गया. धीरे धीरे न्यूज़ चैनलों में Competition बढ़ता गया और न्यूज़ चैनलों की दुनिया में TRP की Entry हो गई. TRP को आप न्यूज़ की करेंसी भी कह सकते हैं. जिस चैनल की जितनी ज़्यादा TRP होती है वो उतना ही ज़्यादा पैसा कमाता है. अब इसी TRP के लिए न्यूज़ चैनल, सारी हदें पार कर रहे हैं. उन्हें ये समझ में नहीं आ रहा कि व्यावसायिकता और अश्लीलता को अलग करने वाली लकीर बहुत पतली होती है. और उसे पार करने वाले न्यूज़ चैनल कभी भी लोगों के मन में भरोसा पैदा नहीं कर पाते. आज के दौर में न्यूज़ की करेंसी TRP है, जबकि नैतिकता के आधार पर भरोसे को न्यूज़ की करेंसी होना चाहिए था.

News Channels के आचरण को लेकर ज़ी न्यूज़ ने पूरे भारत से एक सवाल पूछा है...और हम इस सवाल पर आपकी राय जानना चाहते हैं. क्या आप आजकल परिवार के साथ न्यूज़ चैनल देखने में असहज महसूस कर रहे हैं? अगर आपका जवाब हां है तो ZN लिखकर SPACE दीजिए फिर Y लिखिये. अगर आपका जवाब ना है तो ZN लिखकर SPACE दीजिए और N लिखिये और 57575 पर SMS कर दीजिए. आपके जवाब ही ये तय करेंगे कि हमारे देश में न्यूज़ का भविष्य कैसा होगा?

सवाल ये भी है कि क्या भारत के लोगों की सोच इतनी घटिया हो गई है कि उन्हें न्यूज़ चैनलों पर स्तरहीन Content ही पसंद आता है, क्योंकि अगर आप TRP Charts पर नज़र डालेंगे. तो आपको पता चलेगा कि लोग यही Content बड़े चाव से देख रहे हैं. आज भी हमें इस बात पर यकीन है कि लोगों की सोच इतनी स्तरहीन नहीं है. इतनी गिरी हुई नहीं है कि वो ऐसी ओछी ख़बरें पसंद करें. य़े बड़ी समस्या है और इसका समाधान हमें मिलकर करना होगा.

Trending news