फैमिली नहीं चाहती थी ट्रैप शूटर बने बेटा, अब एशियन गेम्स में जीता सिल्वर मेडल
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फैमिली नहीं चाहती थी ट्रैप शूटर बने बेटा, अब एशियन गेम्स में जीता सिल्वर मेडल

पदक जीतते ही लक्ष्य ने सबसे पहले अपने पिता को फोन किया और कहा,  बधाई हो पापा, मैं पदक जीतने में कामयाब हुआ.

निशानेबाज लक्ष्य ने कहा कि बचपन से ही मुझे बंदूक और राइफल पसंद थी.

जींद (हरियाणा). ट्रैप निशानेबाज लक्ष्य शेरॉन ने एशियाई खेलों में रजत पदक जीतने के बाद कहा कि अब उनका लक्ष्य ओलंपिक खेलों में पदक लाकर देश को गौरवान्वित करने का है. उनके पालेमबांग में एशियाड राइफल ट्रैप स्पर्धा में रजत पदक जीतने से जींद जिले में खुशी का माहौल है.

लक्ष्य जींद के पूर्व पार्षद सोमबीर पहलवान के बेटे हैं. अपनी इस उपलब्धि पर लक्ष्य ने कहा कि मेरा लक्ष्य अब ओलंपिक खेलों में देश के लिए स्वर्ण पदक लाने का है. इसके लिए मैं और ज्यादा अभ्यास और मेहनत करूंगा. लक्ष्य के परिवार के सदस्य नहीं चाहते थे कि वह इस खेल को चुने क्योंकि यह खेल बहुत ही महंगा है और अकेले इसकी राइफल की कीमत ही कई लाख रुपए की है और कारतूस भी करीब सैंकडों रुपए के पड़ते हैं. बावजूद इसके लक्ष्य ने इसे नहीं छोड़ा.

पदक जीतते ही लक्ष्य ने सबसे पहले अपने पिता को फोन किया और कहा, ‘‘बधाई हो पापा, मैं पदक जीतने में कामयाब हुआ.’’ इसके बाद उन्होंने माता प्रोमिला और मौसी सुदेश से बात की. अपने दादा हरिराम व दादी से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि उनके आशीर्वाद से ही वह आज यह पदक जीत पाया.

उनके पहलवान पिता कुश्ती में भारत कुमार रह चुके हैं. पदक जीतने की खबर मिली तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. उन्होंने कहा कि लक्ष्य से मुझे इसी तरह के प्रदर्शन की उम्मीद थी. और अब उम्मीद है कि लक्ष्य ओलंपिक खेलों में देश के लिए पदक लाने का काम करेगा.

20 साल की उम्र बने थे पदकधारी
विजेता लक्ष्य ने चार साल पहले इस खेल में प्रवेश किया था और अब 20 साल की उम्र में वह एशियाड में पुरुष ट्रैप में रजत पदकधारी बन गए. इस तरह उन्होंने पूर्व विश्व चैम्पियन मानवजीत सिंह संधू की 2006 दोहा चरण की उपलब्धि की बराबरी की. अनुभवी संधू भी आज ट्रैप स्पर्धा में थे और पदक की दौड़ में बने हुए थे लेकिन अंत में वह पांच लक्ष्य चूक गये और चौथे स्थान पर रहे. 

बचपन से बंदूक पसंद
हरियाणा के जींद के निशानेबाज लक्ष्य ने कहा, ‘‘बचपन से ही मुझे बंदूक और राइफल पसंद थी. मैं अपने पिता के साथ इसमें हाथ आजमाता था. लेकिन जब मैंने गंभीरता से निशानेबाजी में आने का फैसला किया तो उन्हें मुझ पर इतना भरोसा नहीं था. लेकिन अब मुझे पूरा भरोसा है कि उन्हें मुझ पर गर्व होगा. ’’

लक्ष्य को कमरे से बाहर नहीं निकाला
शॉटगन कोच मनशेर सिंह ने कहा कि लक्ष्य जूनियर कार्यक्रम में शामिल था लेकिन जल्द ही उसने सीनियर टीम में जगह बना ली. लेकिन उन्हें डर था कि कहीं वह इस बड़े टूर्नामेंट का दबाव महसूस नहीं करे तो उन्होंने खेल गांव में उसे सबसे दूर ही रखा और लक्ष्य अपने कमरे में ही रहते थे. अंत में हालांकि उनके लिए यह शानदार रहा.

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