क्रिकेट के मैदान में 1883 से शुरू हुए इस जुनून की गिरफ्त में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड का हर खेल प्रेमी होता है.
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नई दिल्ली : 23 नवंबर से क्रिकेट जगत की सबसे मशहूर जंग शुरू हो रही है. ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में एशेज का आगाज होगा. हमेशा की तरह ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की टीमें आमने सामने होंगी. इन दोनों देशों के बीच इस सीरीज को लेकर किस कदर जुनून रहता है, ये किसी को बताने की जरूरत नहीं है. क्रिकेट के मैदान में 1883 से शुरू हुए इस जुनून की गिरफ्त में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड का हर क्रिकेट प्रेमी होता है. यही कारण है कि उन्हें अपनी टीमों की हार इस सीरीज में बर्दाश्त नहीं होती.
इसकी लोकप्रियता का आलम ये है कि इन दोनों देशों के लिए क्रिकेट और एशेज एक दूसरे के पर्याय हैं. बहुत जल्द ये सीरीज शुरू हो जाएगी. लेकिन इसकी शुरुआत की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि दोनों देशों के बीच ये लड़ाई राख की है. तो कैसे शुरू हुई ये राख की लड़ाई इस पर डालते हैं नजर.
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दरअसल 1882 में ऑस्ट्रेलियाई टीम इंग्लैंड के दौरे पर गई. पहली बार ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड को उसकी ही धरती पर हरा दिया. ऐसे में क्या आम और क्या खास सभी का गुस्सा चरम पर पहुंच गया. इसी समय लंदन से निकलने वाले अखबार स्पोर्टिंग टाइम्स के एक पत्रकार रेगिनाल्ड शिर्ले ने तो इंग्लिश क्रिकेट को ही श्रद्धांजलि दे दी.
उन्होंने अखबार में सख्त टिप्पणी करते हुए लिखा, 29 अगस्त 1882 को इंग्लिश क्रिकेट की मौत हो गई. अब इसे दफनाया जाएगा और राख (एश) को ऑस्ट्रेलिया ले जाया जाएगा. इसके बाद दिसंबर 1882 में ही इंग्लैंड की टीम को ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर जाना था.
तब इंग्लैंड टीम के कप्तान इवो ब्लिघ ने कहा कि वह इस एश को वापस लाएंगे. इंग्लैंड की टीम हालांकि पहला मैच हार गई, लेकिन बाकी के दो मैच जीतकर उसने सीरीज अपने नाम कर ली. कहा जाता है, उस समय वहां पर विकेट के ऊपर रखी जाने वाली वेल्स को जलाया गया. उसकी राख को ब्लिघ को सौंपा गया. और कहा गया ले जाइए एशेज वापस. दूसरी कहानी ये कहती है कि वेल्स नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया में बॉल जलाई गई थी, उसी की राख को एशेज ट्रॉफी के अंदर भर कर रखा गया है. उसी साल के बाद एशेज की लड़ाई शुरू हो गई. हालांकि ट्रॉफी के अंदर राख किसकी है, इस पर विवाद अब भी है.
जीतने के बाद भी ऑस्ट्रेलिया को कभी नहीं मिली मूल ट्रॉफी
इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया इस सीरीज को बराबर बराबर जीत चुके हैं. लेकिन आज तक ऑस्ट्रेलिया को इसे ले जाने का मौका नहीं मिला है. उसे सीरीज जीतने पर एशेज की रेप्लिका थमा दी जाती है. यह ट्रॉफी अब भी लॉड्र्स के म्यूजियम में रखी हुई है. ये दुनिया में सबसे छोटी ट्रॉफी है. इसकी ऊंचाई बस 14 सेमी है.ये एशेज 1929 से सिर्फ दो बार ऑस्ट्रेलिया गई है, एक बार 1988 में सिडनी में और दूसरी बार 2006 में.