नई दिल्ली: इंग्लैंड के महान बल्लेबाज ज्योफ्री बायकॉट (Geoffrey Boycott) सोमवार को अपना 79 साल के हो गए हैं. बायकॉट के करियर कई बार विवादों में रहा लेकिन उनकी बल्लेबाज पर कभी कोई संदेह नहीं कर सका. लंबे समय तक इंग्लैंड के लिए सलामी बल्लेबाजी करने वाले बॉयकॉट करियर उतार चढ़ाव भरा रहा, लेकिन कई बार पाया गया कि वे अपने सीनियर्स तो कभी कप्तानों का भरोसा नहीं जीत सके. इन सबके बाद भी वे इंग्लैंड के सबसे शानदार बल्लेबाजों में से एक रहे.
स्कूल के दिनों से ही किया प्रभावित
बायकॉट का जन्म 21 अक्टूबर 1940 को यार्कशायर के फिट्सविलियम में हुआ था. उनके पिता कोयले की खान में काम करते थे. स्कूल के दिनों से ही बायकॉट ने सभी को अपनी बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों से प्रभावित कर दिया था. 1962 में काउंटी क्रिकेट खेलने के बाद बायकॉट ने कभी पीछे मुड़के नहीं देखा. वे 1986 तक इंग्लैंड के लिए खेलते रहे. उन्होंने अपना पहला टेस्ट मैच 1964 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला था. शुरुआत से ही उन्होंने अपनी सबको अपनी बल्लेबाजी का कायल बना लिया और लंबे समय तक इंग्लैंड के लिए सलामी बल्लेबाजी की.
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बेहतरीन रिकॉर्ड रहा था टेस्ट में
अपने 108 टेस्ट मैचों की 193 पारियों मं 23 बार नॉटआउट रहकर बायकॉट ने 47.73 के औसत से एक दोहरे शतक, 22 शतक और 42 अर्द्धशतकों के साथ कुल 8114 रन बनाए. हालाकि जितना शानदार उनका टेस्ट करियर रहा, वनडे करियर उतना शानदार नहीं रहा. उन्होंने केवल 36 वनडे खेल जिसमें एक शतक और 9 अर्द्धशतक लगाते हुए 36.07 के औसत कुल 1082 रन बनाए. इसके अलावा टेस्ट में उनकी गेंदबाजी में उन्होंने 108 मैचों की 20 पारियों में 54.57 के औसत के 7 विकेट लिए और 36 वनडे की 6 पारियों में गेंदबाजी कर 3.75 की इकोनॉमी से 5 विकेट लिए.
दोहरा शतक फिर भी टीम से बाहर
एक बार बॉयकॉट ने भारत के खिलाफ इंग्लैंड में दोहरा शतक लगाया था, लेकिन इस पारी के बाद भी उन्हें टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. बॉयकॉट ने 1967 में हेडिंग्ले में 246 रन की पारी खेली थी. इसके लिए उन्होंने 555 गेंदें खेली थीं और वे 573 मिनट तक क्रीज पर टिके रहे. इस मैच को इंग्लैंड ने छह विकेट से जीता था. बताया जा रहा है कि उन्हें धीमी बल्लेबाजी करने की सजा के तौर पर टीम से ही बाहर कर दिया गया था. उस मैच में दोहरा शतक लगाने के बाद भी वे मैच के टॉप तीन बल्लेबाजों में उनका नाम नहीं था.
तीन साल तक दूर हो गए थे क्रिकेट से
एक और 1974 और 1977 के बीच बायकॉट क्रिकेट से दूर रहे. बायकॉट का कहना है कि उनका मन क्रिकेट से काफी उचट गया था, लेकिन उनकी जीवनी लिखने वाले मैकिंस्ट्रे का मानना है कि उनके क्रिकेट से दूर होने में उनकी माइक डेनिस और टोनी ग्रेग की कप्तानी भी थी जिनके बायकॉट मुखर आलोचक रहे थे. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि बायकॉट उस समय के ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज डेनिस लिली और जेफ थामसन के खौफ के कारण क्रिकेट से दूर हुए थे. लेकिन साल 1979 में ऑस्ट्रेलिया में उन्होंने इन दोनों ही गेंदबाजों का बेखौफ सामना किया और पर्थ जैसी तेज पिच पर नाबाद 99 रन बनाए.
बगावत कर दक्षिण अफ्रीका में खेले थे बॉयकॉट
जब दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति के कारण उसके साथ सभी देशों ने अपने रिश्ते समाप्त कर दिये थे तब 1982 में इंग्लैंड के बागी खिलाड़ियों का दक्षिण अफ्रीकी दौरा कराने में बायकॉट भी शामिल थे. इस वजह से उन पर तीन साल का प्रतिबंध भी लगा जिसके बाद उनका करियर खत्म हो गया. इसके बाद उन्होंने कॉमेंट्री में सफल करियर बनाया. 2002 में उन्हें कैंसर से पीड़ित पाया गया लेकिन वे इस बीमारी से निकलने में सफल रहे.