विश्वनाथ दत्ता को ही डालमिया को क्रिकेट प्रशासन में लाने का श्रेय जाता है.
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कोलकाता: बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष बिश्वनाथ दत्त का फेफड़ों के संक्रमण के कारण सोमवार को निधन हो गया. दत्त 1982 से 1988 तक बीसीसीआई उपाध्यक्ष रहे जिसके बाद 1988 में उन्होंने अध्यक्ष पद संभाला था. बिस्वनाथ ने 1988 से 1990 तक बीसीसीआई के अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला था. उन्हें जगमोहन डालमिया के मेंटर के रूप में भी जाना जाता है.
बिस्वनाथ दत्त 92 साल के थे. बिस्वनाथ सीएबी (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल) के भी प्रमुख रह चुके थे. वे आईएफए (इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन) के भी अध्यक्ष रहे हैं. उनके परिवार में पुत्री और पुत्र सुब्रत दत्ता हैं जो कि अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ (एआईएफएफ) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं.
सुब्रत दत्ता ने कहा, ‘‘मूत्राशय में संक्रमण से दस सितंबर को उनकी बीमारी शुरू हुई. एक सप्ताह के अंदर उनके फेफडों में संक्रमण हो गया और वे इससे नहीं उबर पाए. उनका हमारे आवास (भवानीपुर) में सुबह चार बजकर सात मिनट पर देहांत हो गया. वह दस अक्तूबर को 93 साल के हो जाते.’’
डालमिया ने सीखा था दत्त से क्रिकेट प्रशासन
फुटबाल और क्रिकेट दोनों में कुशल प्रशासकों में से एक दत्त ने डालमिया को क्रिकेट प्रशासन में लाने में अहम भूमिका निभाई थी. डालमिया भी स्वीकार करते रहे कि उन्होंने दत्त से क्रिकेट प्रशासन की सीख ली. दत्ता ने एक बार बताया था कि कैसे डालमिया ने 1970 में कोलकाता हाई कोर्ट में उनका ध्यान खींचा था, डालमिया ने आईएफ के खिलाफ एक केस में जज को अपने तर्कों से प्रभावित किया और केस जीत लिया था.
हालांकि दोनों गुरु चेलों के रिश्तों में दरार तब आई जब डालमिया ने दत्ता को छोड़ 1990 के बीसीसीआई अध्यक्ष चुनाव में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया का समर्थन कर दिया था. डालमिया का 20 सितंबर 2015 में कोलकाता में निधन हो चुका है.
कोलकाता मैदान के लिए पितृतुल्य थे दत्ता
डालमिया के बेटे और क्रिकेट एसोसिएशन के संयुक्त सचिव अविषेक डालमिया ने कहा, “यह मेरे लिए बड़ी व्यक्तिगत क्षति है, हमारे परिवार के बीच एक अलग ही रिश्ता था. वे पूरे कोलकाता मैदान के लिए पितृतुल्य थे.” पूर्व एआईएफएफ सचिव अशोक घोष ने दत्ता के सचिव रहते ही भारतीय फुटबॉल एसोसिएशन में अपना करियर बतौर उप सचिव शुरू किया था. घोष ने नेहरू गोल्ड कप जैसे अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के भारत में आयोजन में अहम भूमिका निभाई थी.