INDvsSA: अश्विन-जडेजा पर चल रही है बहस, वैसे विदेश में रहे हैं फिसड्डी
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INDvsSA: अश्विन-जडेजा पर चल रही है बहस, वैसे विदेश में रहे हैं फिसड्डी

अब भारत के पास तेज गेंदबाजों का बड़ा पूल मौजूद है, इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि केप टाउन में अश्विन और जडेजा दोनों में से एक को ही खेलने का मौका मिलेगा.

जडेजा और अश्विन ने एशिया से बाहर केवल दो टेस्ट खेले हैं (File Photo)

नई दिल्ली: श्रीलंका के खिलाफ जब टेस्ट सीरीज के लिए रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा का चयन हुआ तो यह तय था कि उन्हें यहां वैसी पिचें नहीं मिलेंगी जैसी दक्षिण अफ्रीका के अगले दौरे पर मिलनी हैं. इसलिए टीम प्रबंधन का इसी बात पर जोर था कि ये दोनों पिच पर नहीं बल्कि गेंद पर ध्यान दें. नागपुर में श्रीलंका को बुरी तरह परास्त करने के बाद और दिल्ली में होने वाले तीसरे टेस्ट के बाद टेस्ट क्रिकेट विशेषज्ञों का यही मानना है कि 5 जनवरी से शुरू हो रहे दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर ये दोनों स्पिनर घरेलू पिचों के माइंडसैट से नहीं जा सकते. 

  1. 2010-11 में दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर भारत सीरीज ड्रॉ कराकर लौटी थी
  2. 2006-07 में डर्बन में भी दक्षिण अफ्रीका का पलड़ा भारी रहा था
  3. वांडरर्स में 36 ओवर फेंकने के बाद भी अश्विन को कोई विकेट नहीं मिला था

दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया भारतीय टीम के खिलाफ लड़ाकू टीम रही हैं. हालांकि, 2010-11 में दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर भारत सीरीज ड्रॉ कराकर लौटी थी. यदि ईमानदारी से कहा जाए तो 2006-07 की सीरीज भारत को जीत लेनी चाहिए थी. केप टाउन में खेले गए टेस्ट में भारत ने पहली पारी में 41 रनों की लीड ले ली थी, लेकिन इसके सात साल बाद वांडरर्स में एबी डिविलियर्स और फाफ डुप्लेसिस की शानदार पार्टनरशिप ने मैच के अंतिम दिन अफ्रीका को जीत दिला दी थी. डर्बन में भी दक्षिण अफ्रीका का पलड़ा भारी रहा था. 

भारतीय तेज गेंदबाज, श्रीनाथ और जहीर खान, ने 2006-07 में और मोहम्मद शमी या ईशांत शर्मा ने 2013-14 में वहां की परिस्थितियों का शानदार फायदा उठाया था. डर्बन में 2010 में हरभजन ने सीरीज ड्रॉ कराने में अहम भूमिका निभाई थी. 

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लेकिन आर. अश्विन के जेहन में वांडरर्स, 2013 की कुछ मनहूस यादें शेष होंगी. 36 ओवर फेंकने के बाद भी अश्विन को कोई विकेट नहीं मिला था. अफ्रीका ने 458 रन बनाए थे. इसके बाद डर्बन में अश्विन को प्लेइंग 11 से बाहर बैठना पड़ा था. उनकी जगह खिलाए गए रवींद्र जडेजा ने 138 रन देकर दक्षिण अफ्रीका के 6 बल्लेबाजों को आउट किया था. लेकिन अफ्रीका फिर भी 500 रन बनाने में कामयाब रहा था. टेस्ट टीम में नियमित जगह बनाने के लिए जडेजा के पास कुछ आखिरी महीने बचे हैं. 

जडेजा ने पांच साल पहले टेस्ट में डेब्यू किया था. लेकिन तब से लेकर जडेजा और अश्विन ने एशिया से बाहर केवल दो टेस्ट खेले हैं. मैन्चेस्टर में, 2014 में जहां भारत को तीन दिनों में एक पारी से पराजित होना पड़ा था. इस मैच में अश्विन ने 29 रन देकर कोई विकेट नहीं लिया जबकि जडेजा ने 36 देकर एक विकेट लिया था. पिछले साल वेस्टइंडीज में ग्रास आईलैट में दोनों गेंदबाजों को केवल 3 विकेट मिले थे. 

अब भारत के पास तेज गेंदबाजों का बड़ा पूल मौजूद है, इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि केप टाउन में अश्विन और जडेजा दोनों में से एक को ही खेलने का मौका मिलेगा. दोनों को बेशक ऑल राउंडर कहा जाता है लेकिन हार्दिक पांड्या पर टीम प्रबंधन का ज्यादा भरोसा होगा. सीम फ्रैंडली पिचों पर दोनों स्पिनरों का खेलना बेहद मुश्किल है. 

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पिछले दो सालों में भारत ने अपने अधिकांश मैच घरेलू मैदानों पर ही खेले हैं. केवल ऑस्ट्रेलिया ही बड़ी परायज को टाल पाने में सफल रहा. उसकी वजह थी स्टीव ओकीफ का पुणे में शानदार स्पैल अश्विन और जडेजा टीम की सफलता के प्रमुख कारण रहे. 19 टेस्ट मैचों में अश्विन ने अविश्वसीय रूप से 21.6 की औसत से 121 विकेट लिए, जबकि जडेजा ने 19.81 की औसत से 99 विकेट लिए. 

जडेजा के पास नियंत्रण है, जो चार गेंदबाजों के साथ उपयोगी हो सकता है. लेकिन दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाजों के खिलाफ यह कितना काम कर पाएगा यह देखना होगा. दूसरी तरह अश्विन के पास गजब की विविधता है. उनकी यह विविधता उनके चयन का कारण बन सकती है. अश्विन ज्यादा व्यवस्थित और भरोसेमंद बल्लेबाज भी हैं. लेकिन जडेजा एक बेहतरीन फील्डर हैं. 

इस पर लगातार चर्चा होगी क्योंकि अगले 18 महीने में भारत को दक्षिण अफ्रीका के बाद इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का दौरा भी करना है. अश्विन जानते हैं कि किस तरह विदेशी दौरे उनकी विरासत को प्रभावित कर सकते हैं. वह एक साल पहले के अपने कोच अनिल कुंबले के अनुभवों से भी कुछ सीखेंगे. 

1999-2000 में ऑस्ट्रेलिया के अपने पहले दौरे में कुंबले ने 90 रन देकर 5 विकेट लिए थे. उनका खूब मजाक उड़ा था और उन्हें स्टॉक बॉलर कहा गया था, लेकिन इसके चार साल बाद ही कुंबले ने तीन टेस्ट में 23 विकेट लिए. सिडनी में कुंबले ने 12 विकेट लिए थे. भारत यह सीरीज जीतते-जीतते रह गया था. अश्विन को भी कमोबेश ऐसा ही कुछ करना होगा, अन्यथा वह जानते हैं कि वांडरर्स का अनुभव उन्हें जीवन भर सालता रहेगा. 

कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री पहले ही यह संकेत दे चुके हैं कि चयन के मामले में उनका रुख लचीला है. इस लिहाज से दिल्ली टेस्ट में कुछ तय नहीं होना है. दोनों जानते हैं कि वांडरर्स में परिस्थितियां तय करेंगी कि कौन प्लेइंग 11 में खेल पाएगा.

 

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