उस दिन जयपुर में धोनी ने खेली थी धमाकेदार पारी, पस्त हो गई थी लंका सेना
31 अक्टूबर 2005 जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में महेंद्र सिंह धोनी ने श्रीलंका के खिलाफ 183* रन की पारी खेली थी.
नई दिल्ली: मुझे याद है, अक्टूबर की वो दोपहर, उस दिन सूरज कुछ ज्यादा चमक रहा था. हम सभी लोग अपने टीवी स्क्रीन से चिपके हुए थे क्योंकि भारत आज दमदार श्रीलंका से भिड़ने वाला था. 2005 का वो साल, श्रीलंकाई क्रिकेट टीम भारत के दौरे पर थी और इस सीरीज़ के लिए वो अपने बेस्ट खिलाड़ियों को लेकर आए थे. उनकी टीम में शामिल खिलाड़ियों में कुछ के नाम आपको बता देते हैं - कुमारा संगकारा, सनथ जयसूर्या, मर्वन अट्टापट्टू, महेला जयवर्धने, चमिंडा वास और मुथैय्या मुरलीधरन. इस चैंपियन टीम का सामना करना ही एक मुश्किल काम था और फिर उन्हें हराना तो लगभग असंभव ही लगता था.
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लेकिन 7 एकदिवसीय मैचों की इस लंबी सीरीज में भारत ने पहले 2 मैच जीत कर पलड़ा अपनी ओर खिसका लिया था. श्रीलंका की टीम अब एक जीत के लिए भूखी थी और जयपुर की धीमी पिच उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं थी. भारतीय क्रिकेट टीम इस समय एक अलग समस्या से जूझ रही थी. भारत को तलाश थी एक भरोसेमंद विकेटकीपर की.
जब भारत के शानदार विकेटकीपर रहे नयन मोंगिया ने क्रिकेट को अलविदा कहा तो भारतीय टीम के पास उनका विकल्प तैयार नहीं था. मोंगिया एक अच्छे विकेटकीपर थे लेकिन वह हमेशा निचले क्रम में आकर बैटिंग में योगदान देते थे और इसलिए वो भारत के पिंच हिटर थे. भारत को कई मुश्किल मैचों में स्लॉग ओवरों के दौरान मोंगिया ने ही बचाया था. अब भारत को एक ऐसे ही कीपर की ज़रूरत थी. दरअसल भारत विकेटकीपर नहीं एक ऐसा बल्लेबाज़ ढूंढ रहा था जो विकेटकीपिंग भी करता हो.
सबा करीम पर भारत की तलाश पूरी होती नज़र आ रही थी कि खेल के दौरान लगी एक चोट ने उन्हें रिटायर होने पर मजबूर कर दिया. इसके बाद भारतीय टीम में विकेट के पीछे खड़े होने के लिए लंबी कतार लगी. समीर दीघे, अजय रात्रा, विजय दाहिया, पार्थिव पटेल और दिनेश कार्तिक जैसे खिलाड़ियों को आज़माया गया. इन सभी को घरेलू क्रिकेट में बेहतरीन बल्लेबाज़ी रिकॉर्ड के आधार पर चुना गया था लेकिन विकेट के पीछे ये खिलाड़ी औसत ही रहे.
इस प्रदर्शन का एक कारण यह भी था कि इन खिलाड़ियों की तुलना राहुल द्रविड़ से की जा रही थी. राहुल द्रविड़ उन दिनों भारत के लिए वनडे मैचों में विकेट कीपिंग कर रहे थे और ऐसे में नए विकेट कीपर से आशा की जा रही थी कि वो बल्लेबाज़ी में भी वही जौहर दिखाए जो द्रविड़ दिखाते हैं. यह मुश्किल था और इसलिए विकेट के पीछे लोगों का आना-जाना लगा रहा.
लेकिन फिर आए धोनी, लंबे बाल, बेहद सौम्य हाव-भाव और सरल व्यक्तित्व. आप कह सकते हैं कि वो भारतीय खिलाड़ियों की तरह Flashy नहीं थे लेकिन उनमें एक आकर्षण था. श्रीलंका के खिलाफ़ इस टूर्नामेंट में उनको खुद को साबित करना था. उनके पास एक लंबा डोमेस्टिक करियर था पर इससे पहले उन्हें भारत के लिए खेलने का मौका नहीं मिला था. बांग्लादेश और पाकिस्तान की सीरीज़ में उनके प्रदर्शन के आधार पर उनको इस सीरीज में मौका दिया जा रहा था. वो जानते थे कि उन्हें क्या करना है
2016 में धोनी की बायोपिक के दौरान हुई मुलाकात (मुंबई) में उनसे जब इस पारी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वो बिल्कुल भी परेशान नहीं थे, "मैं डरा हुआ या परेशान नहीं था. मुझे पता था कि यह सीरीज़ कितनी ज़रूरी है और यहां रन नहीं बनाने पर क्या हो सकता है." यह वही दौर था जब बीसीसीआई (BCCI) हर सीरीज़ में विकेटकीपर बदल रहे थे, "मुझे पता था, मेरे पास मौका है और इसे जाने नहीं देना."
यह एक खास दिन था, श्रीलंका इस सीरीज़ में अपनी पहली जीत तलाश रही थी और संगकारा ने 147 गेंदो पर 138 रन जड़ कर इस जीत को तय कर दिया था. संगकारा के साथ जयवर्धने ने भी 70 गेंदो पर 71 रन बनाए थे और 298 रनों का बड़ा लक्ष्य भारत के सामने था.
जयपुर का सवाई मानसिंह स्टेडियम दर्शकों से खचाखच भरा था और यहां दिल्ली में लगभग हर घर से कमेंट्री की आवाज़ आ रही थी. भारत के लिए पारी की शुरूआत वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर करने वाले थे और इस तूफ़ानी सलामी जोड़ी के सामने 298 का लक्ष्य बौना लग रहा था. हम सोच रहे थे कि या तो आज सचिन शतक बनाएंगे या सहवाग दनादन छक्के मारेंगे. पर ऐसा नहीं हुआ. चमिंडा वास खेल का पहला ओवर फेंक रहे थे और ओवर की पांचवी गेंद पर ही वास की एक तेज़ गति से जाती आउटस्विंगर पर सचिन बैट लगा बैठे और मात्र 7 रन के स्कोर पर भारत का पहला विकेट, खुद सचिन पैवेलियन की ओर चल दिए. कई लोगों के लिए यही मैच का अंत था. पूरे स्टेडियम में वैसी ही खामोशी थी जैसी आजकल विराट कोहली के आउट होने पर हो जाती है.
ये एक चमकीली दोपहर थी और अब हमें पता था कि राहुल द्रविड़ मैदान पर आने वाले हैं और यह मैच अब धीमी गति से आगे बढ़ेगा. लेकिन राहुल क्रीज़ पर नहीं आए. भारतीय खेमे से कोई और निकल कर आया- वो थे धोनी! घर पर टीवी के सामने बैठे मेरे पिता लगभग चिल्ला ही पड़े, 'इसको कहां भेज दिया?'
धोनी इस सीरीज़ के पहले मैच में कुछ रन बना चुके थे और फिर दूसरे मैच में उन्हें बल्लेबाज़ी का मौका नहीं मिला था. ऐसे में तीसरे नंबर पर आना एक बड़ी जिम्मेदारी थी. उनके आने पर बहुत शोर नहीं हुआ, न घर पर और न ही स्टेडियम में. वो आए और मैदान के बीच में उन्होंने अपनी जगह ली. मुझे लगा, यह ज्यादा नहीं चल पाएगा.
लेकिन वो शांत थे, उनके चेहरे पर तनाव नहीं था. उस लंबे खिलाड़ी के लंबे बाल ध्यान खींच रहे थे. कमेंटेटर भी इस युवक के बालों के बारे में बात करने लगे क्योंकि बल्लेबाज़ी के बारे में बात करने के लिए कुछ था नहीं. सभी लोग सहवाग से किसी करिश्मे की उम्मीद लगाए बैठे थे लेकिन इसके बाद जो हुआ वो किसी ने नहीं सोचा था. सवाई मानसिंह स्टेडियम में जैसे रनों का तूफान आ गया था. धोनी ने अकेले श्रीलंकाई बॉलरों की धज्जियां उड़ा दी थीं. अपनी 183 रनों की उस धुआँधार पारी में उन्होंने 15 चौके जड़े और 10 आसमानी छक्के मारे. श्रीलंका के गेंदबाज़ उस दिन धोनी के आगे किसी गली के क्रिकेटर लग रहे थे. आलम यह था कि मैदान में मौजूद श्रीलंका के समर्थक भी धोनी का नाम पुकार रहे थे.
मुझे वो दिन साफ़ पानी की तरह याद है. धोनी ने सहवाग, सचिन और द्रविड़ सरीखे खिलाड़ियों को पीछे छोड़ भारत के लिए अपने दम पर जीत का परचम लहराया था. यह आसान मैच नहीं था पर उन्होंने इसे आसान बना दिया. श्रीलंका कोई छोटी टीम नहीं थी लेकिन उनके सामने वो कमज़ोर लगी. यही वो दिन था जब भारत को उनका अगला विकेटकीपर मिला था और मैच के शुरूआत पर धोनी पर अविश्वास जताने वाले मेरे पिता ने कहा "ये लड़का कुछ करेगा".
वो 'लड़का' भारतीय टीम का सबसे सफल कप्तान बना और इसी लड़के की कप्तानी में भारत ने 28 साल बाद दूसरा वर्ल्ड कप जीता. आज धोनी के 39वें जन्मदिन पर हम सभी जानते हैं कि शायद वो जल्दी ही क्रिकेट से संन्यास ले लें. शायद धोनी के नाम की चमकदार रोशनी कम हो जाए लेकिन वो चमकदार दोपहर मुझे याद रहेगी जहां से यह सबकुछ शुरू हुआ था और लोग पूछ रहे थे - 'यह लड़का कौन है?'