पिता व्हीलचेयर पर, मां संभालती हैं घर; क्रिकेट की दुनिया का सितारा बना बेटा
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पिता व्हीलचेयर पर, मां संभालती हैं घर; क्रिकेट की दुनिया का सितारा बना बेटा

आदित्य सरवटे जब महज तीन साल के थे, तभी उनके पिता आनंद सरवटे का एक्सीडेंट हो गया था.

विदर्भ की लगातार दूसरी रणजी ट्रॉफी खिताबी जीत का अहम हिस्सा रहे हरफनमौला खिलाड़ी आदित्य सरवटे.

नई दिल्ली: विदर्भ की लगातार दूसरी रणजी ट्रॉफी खिताबी जीत का अहम हिस्सा रहे हरफनमौला खिलाड़ी आदित्य सरवटे (29) ने बचपन से ही अपनी मां अनुश्री सरवटे की बहुत मेहनत और संघर्ष को देखा है और उसी से प्रेरणा लेकर वह अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं.आदित्य जब महज तीन साल के थे, तभी उनके पिता आनंद सरवटे का एक्सीडेंट हो गया था. तब से वह व्हीलचेयर पर हैं. तब से उनकी मां ने घर की जिम्मेदारी ली. तमाम दिक्कतों के बाद भी उनकी मां ने हार नहीं मानी और अपने बेटे को आगे बढ़ाती रहीं. अपनी मां की इसी हार न मानने के नजरिए को आदित्य ने अपने जेहन में उतार लिया.

वैसे सरवटे को क्रिकेट खून में मिला है. आदित्य के पिता भी क्रिकेटर रहे हैं. वह नागपुर विश्वविद्यालय और पंजाब नेशनल बैंक के लिए खेला करते थे. इसके अलावा उनके ताऊ चंदू सरवटे ने भारत के लिए नौ टेस्ट मैच खेले हैं. चंदू होल्कर टीम के दिग्गज थे और सीके नायडू और मुश्ताक अली जैसे महान खिलाड़ियों के साथ भारतीय टीम का ड्रेसिंग रूम साझा कर चुके हैं.

क्रिकेट विरासत में मिली
आदित्य ने कहा, "एक खिलाड़ी परिवार के बिना कुछ नहीं है. क्रिकेट मुझे विरासत में मिली लेकिन मैं आज जो कुछ हूं, उसके लिए मैं अपनी मां का आभारी हूं. मैं जब तीन साल का था तब मेरे पिता का एक्सीडेंट हो गया था. तब से मेरी मां ने ही सब कुछ किया. नौकरी भी की. पापा का ध्यान भी रखा. मेरा भी ध्यान रखा. मुझे पूरी छूट दी. मैं उनसे काफी प्रेरित रहा हूं. उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और उनका जो नजरिया है, वो मेरे अंदर भी है."

सौराष्ट्र को हराया
विदर्भ ने इस साल सौराष्ट्र को मात देकर इस सीजन अपने खिताब को सफलतापूर्वक बचाया. इस सफलता के बारे में पूछे जाने पर आदित्य ने कहा कि पिछली बार कई लोगों ने हमारी टीम की जीत को तुक्का करार दिया था. इस बार हमें उन्हें गलत साबित करना था और हमने किया.

खुद को साबित किया
उन्होंने कहा, "पिछले सीजन की हमारी जीत को कई लोगों ने तुक्का कहा था तो इस बार हमें अपने आपको साबित करना था. पहले से हमें इस पर विश्वास था कि हम ऐसा कर सकते हैं. हमने हर मैच को 'करो या मरो' के तौर पर लिया." बीते सीजन आदित्य ने सिर्फ छह मैच खेले थे, लेकिन इस बार उन्होंने टीम के लिए कुल 11 मैच खेले और 55 विकेट लिए और 354 रन बनाए, जिसमें एक शतक शामिल हैं.

मैंने कुछ अलग नहीं किया
राज्य टीम में अपनी जगह पक्की करने के बारे में पूछने पर आदित्य ने कहा, "मैंने पिछले सीजन के बाद कुछ अलग नहीं किया. जो मेहनत करता था वही जारी रखी. हमारी टीम में किसी की भी जगह पक्की नहीं है इसलिए आपके सामने जब भी मौका आए आपको उसे भुनाना होता है. पिछले साल मुझे पहले तीन मैचों में मौका नहीं मिला था. चौथे मैच में मुझे मौका मिला था. वहां अगर मैं कुछ नहीं कर पाता तो शायद टीम से बाहर चला जाता. पिछले साल का प्रदर्शन अच्छा रहा तो इस साल पहले मैच से ही खेलने का मौका मिला और मैंने अच्छा किया."

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फाइनल में विदर्भ की जीत की एक अहम वजह सौराष्ट्र के मुख्य बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा का विकेट रहा. आदित्य ने ही दोनों पारियों में उन्हें अपनी फिरकी में फंसाया. फाइनल में आदित्य ने 157 रन देकर 11 विकेट लिए और मैन ऑफ द मैच भी रहे.

विकेट से भी काफी मदद
पुजारा को लेकर तैयारी के बारे में आदित्य ने कहा, "प्लानिंग सिर्फ पुजारा के लिए नहीं थी. विपक्षी टीम के सभी खिलाड़ियों के लिए हमने तैयारी की थी. हम विपक्षी टीम के हर खिलाड़ी के वीडियो देखते हैं. पुजारा का यह था कि अगर वह शुरुआत में आउट नहीं होते तो लंबा खेलते हैं. हमारा यही था कि शुरुआत में ही उन पर दबाव बनाएं. विकेट से भी काफी मदद मिल रही थी. ऐसे में मैंने सिर्फ सही जगह पर गेंद डालने का सोचा और सफल रहा."

दवाब नहीं था
पुजारा के सामने दवाब महसूस करने के सवाल के जबाव में आदित्य ने कहा, "उनके रहने का दवाब नहीं था, क्योंकि रणजी ट्रॉफी भारतीय टीम में जाने का पहला गेट है तो पता है कि यहां बड़े-बड़े खिलाड़ी आएंगे तो ऐसा दवाब नहीं था. बस कोशिश उन्हें जल्दी आउट करने की थी."

आईपीएल में जाने की चाहत
भारत में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) एक बड़ा मंच बन गया है, जहां खेलना हर खिलाड़ी की इच्छा होती है. आदित्य को भी लगता है कि उन्हें आईपीएल में मौका मिलना चाहिए, हालांकि वह इसके बारे में ज्यादा सोच नहीं रहे हैं. उन्होंने कहा, "अगर आईपीएल में खेलने का मौका मिले तो अच्छा है क्योंकि काफी लोगों की नजर भी जाती है आप पर. वहां से राष्ट्रीय टीम में भी चयन होते हैं, लेकिन मैं इस बारे में ज्यादा सोच नहीं रहा. मैं अपना खेल जारी रखना चाहता हूं और बाकी का काम चयनकताओं के हाथों मे है."

ईरानी ट्रॉफी टीम में जगह मिली
नेशनल टीम में जाने के सपने के बारे में आदित्य ने अपने प्रदर्शन पर ध्यान देने की बात दोहराई और कहा, "मैं आगे का ज्यादा सोचता नहीं हूं. जाहिर सी बात है कि आपको लगता है आपको ऊपरी स्तर पर खेलने का मौका मिले, लेकिन इसके बारे में सोचने से प्रदर्शन पर फर्क पड़ता है. मेरा ध्यान मिले मौके पर अच्छा प्रदर्शन करने पर होता है. अभी ईरानी ट्रॉफी टीम में जगह मिली है तो मैं सोचता हूं कि अच्छा करूं टीम को जिताऊं तो ज्यादा नाम बढ़ेगा."

आदित्य के शौक
क्रिकेट के अलावा आदित्य को किताबें पढ़ने और टीवी देखने का भी शौक है.बकौल आदित्य, "मुझे किताबें पसंद हैं. किताबों से मैं क्रिकेट से थोड़ा दूर जाता हूं. वो भी एक खिलाड़ी के लिए जरूरी है. मेरा ऐसा कोई पसंदीदा लेखक नहीं है, लेकिन मुझे इतिहास, जीवनियां पढ़ना पसंद हैं. मैंने हाल ही में राहुल द्रविड़ की किताब पढ़ी है. साथ ही सचिन की भी, शेन वार्न की भी जीवनियां पढ़ी हैं. इसके अलावा मुझे टीवी देखना भी पसंद है."

(इनपुट-आईएएनएस)

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