नई दिल्ली: टीम इंडिया के कैप्टन विराट कोहली (Virat Kohli) को न सिर्फ दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज माना जाता है, इसके साथ ही उनकी गिनती विश्व के सबसे शानदार कप्तानों में भी की जाती है. विराट ने भारतीय टीम की कमान तब संभाली थी जब साल 2014 में एमएस धोनी (MS Dhoni) ने अचानक ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी थी. विराट ने पहले ही मैच में अपनी कप्तानी का खूब जलवा दिखाया था और एडिलेड टेस्ट में टीम को जीत के मुहाने तक पहुंचा दिया था, लेकिन निचले क्रम के बल्लेबाज एक के बाद एक आउट होते चले गए और भारतीय टीम मैच को काफी कम अंतर से हार गयी थी. तब से अब तक विराट 55 टेस्ट मैचों में टीम इंडिया की कप्तानी कर चुके हैं, जिनमें से 33 मैचों में भारत को जीत हासिल हुई है. अगर आंकड़ों पर करीब से नजर डाली जाए तो यह पता चलता है कि एक कप्तान के तौर पर विराट का टेस्ट क्रिकेट में जीत का प्रतिशत 60% से ज्यादा है, जोकि किसी और भारतीय कैप्टन से कहीं ज्यादा है.
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अब विराट ने खुद ही अपनी कप्तानी की विशेषताओं के बारे में बात की है, जिसमें उन्होंने अपनी कप्तानी से जुड़े कई राज खोले हैं. टीम इंडिया के ओपनर मयंक अग्रवाल (Mayank Agarwal) के साथ बातचीत के दौरान विराट ने ये भी बताया कि उनकी और बाकी भारतीय कप्तानों की कप्तानी में क्या फर्क है. यहां विराट ने कहा कि 'कैप्टन कोहली' की कप्तानी का एक्स फैक्टर है टेस्ट मैचों में लक्ष्य का पीछा करना वाला एटिट्यूड. विराट ने आगे कहा कि वो हमेशा टेस्ट मैच जीतने के लिए मैदान पर उतरते हैं न कि उसे ड्रॉ कराने के लिए. उनके लिए मैच को ड्रॉ कराना आखिरी विकल्प होता है.
From 2014 to 2018 – How Virat Kohli turned it around @imVkohli chats with @mayankcricket on how he put behind his failures in England with technical inputs from @sachin_rt and @RaviShastriOfc and came out all guns blazing in 2018
Full video https://t.co/yNMw87SR4z pic.twitter.com/m6zCPftcTC
— BCCI (@BCCI) July 24, 2020
विराट कोहली ने कहा, 'मैं किसी भी परिस्थिति में अपने परिणामों से समझौता नहीं कर सकता. मैच को ड्रॉ करवाना मेरे लिए सबसे अंतिम काम है. अगर आप मुझसे कहें कि आपको टेस्ट मैच के आखिरी दिन 300 रन चेज करने हैं तो मैं कहूंगा चलो इसका पीछा करते हैं. आपको हर सेशन में 100 ही रन बनाने हैं और अगर आप पहले सेशन में 2 विकेट के नुकसान पर 80 रन बनाते हैं तो बीच के सेशन में दो खिलाड़ी आक्रामक खेल दिखाकर 100 रन बना सकते हैं. इसके बाद आपके पास आखिरी सेशन में 120 रन बचते हैं. अगर आपके पास 7 विकेट हैं और आपको आखिरी सेशन में 120 रन बनाने हैं तो आप इसे वनडे गेम समझ कर बड़ी आसानी से हासिल कर सकते हैं.'
विराट ने आगे कहा, 'ड्रॉ के लिए मैं तभी जाता हूं जब चीजें ज्यादा खराब हों या फिर मैच का आखिरी घंटा बचा हो, जहां मेरे पास कुछ और करने का विकल्प नहीं है. मैं दिन के पहले मिनट से ड्रॉ के बारे में नहीं सोचता हूं. अगर आपको आखिरी दिन 300 रन चेज करने है और आपके हाथ में 10 विकेट हैं तो मेरे लिए ड्रॉ का कोई ऑप्शन नहीं है और ना ही आगे होगा. एक खिलाड़ी के लिए हार का डर एक नकारात्मक चीज है जो उसे काफी नुकसान पहुंचा सकता है. अगर आप कुछ किए बिना ही हार मान जाते हो तो यह आपकी मानसिकता को नुकसान पहुंचाता है. मेरा लक्ष्य यही होता है कि मैं लोगों को एहसास कराऊं कि वह कितने अच्छे हो सकते हैं और अगर पूरी टीम एक साथ खड़ी हो जाए तो आपको कोई नहीं हरा सकता.'