क्रिकेट का एक रंग ऐसा भी, युद्ध से मिले ताउम्र के जख्मों पर मरहम लगा रहा ये खेल
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क्रिकेट का एक रंग ऐसा भी, युद्ध से मिले ताउम्र के जख्मों पर मरहम लगा रहा ये खेल

गॉल में जब तीसरे दिन कुछ देर बारिश होने के बाद खेल दोबारा शुरू हुआ तो युद्ध के ये जांबाज सीटियां बजा रहे थे. जाहिर है इनकी जिंदगी दोबारा पटरी पर लौट रही है. 

युद्ध से मिले ताउम्र के जख्मों पर मरहम लगा रहा क्रिकेट (PIC : ICC)

नई दिल्ली : निपुणा विजयसेना के जेहन में अब भी वे दिन ताजा हैं. 2009 की बात है. श्रीलंका सेना में स्टाफ सर्जेंट विजयसेना अपनी बटालियन के साथ तमिल विद्रोहियों के युद्ध क्षेत्र किलिनोच्ची में घात लगाकर बैठे थे. इससे कुछ माह पहले ही लिबरेशन टाइगर्स तमिल ईलम (लिट्टे) प्रमुख वेल्लपिल्लई प्रभाकरण की मौत हुई थी और गृह युद्ध लगभग समाप्त हो गया था. लेकिन अचानक विजयसेना ने कुछ विस्फोटों की आवाजें सुनीं. पूरी तरह बेहोश होने से पहले उसने अपने पैर में दर्द महसूस किया. जब विजयसेना को होश आया और उसने आंखें खोलीं तो खुद को भीड़ के बीच सेना के एक अस्पताल में पाया. उसका बायां पैर घुटनों से नीचे तक काटा जा चुका था. 

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, मोरातुवा में बड़ा हुआ विजयसेना क्रिकेट प्रेमी है. एक समय था जब वह श्रीलंका के विस्फोटक बल्लेबाज सनथ जयसूर्या जैसा बनना चाहता था. जयसूर्या की तरह ही वह भी लेफ्टी है. पास-पड़ोस के लोग उसके आक्रामक बल्लेबाजी के स्टाइल को देखकर उसे जयसूर्या कहा करते थे. लेकिन जब आजीविका और घर चलाने का सवाल उठा तो उसने सेना में जाने का फैसला कर लिया. प्रतिष्ठित नौकरी और स्थाई आय. 

सेना में जाने के लिए एक बार भी उसने दोबारा नहीं सोचा. बकौल विजयसेना, मैं अपनी नौकरी से प्रेम करता था. वहां नए दोस्त बनाता था, जो मेरी ही बैकग्राउंड और उम्र के थे. शुरू में मेरी पोस्टिंग दक्षिणी श्रीलंका में हुई जो शांत क्षेत्र था, लेकिन जब गृहयुद्ध शुरू हुआ तो मुझे युद्ध पर भेज दिया गया. मुझे बस इसी बात का अफसोस था कि वहां मैं क्रिकेट नहीं देख सकता था. 

लेकिन वक्त बदल गया. आज वह कहता है, आजकल मैं ज्यादा क्रिकेट मैच नहीं देखता. युद्ध के जख्मों ने मुझे स्तब्ध सा कर दिया है. सेना के पुनर्वास केंद्र में एक टेलीविजन था. युद्ध के दौरान वहां सभी हैंडीकैप्ड रहते थे, लेकिन वह और उसके मित्र शायद ही कभी क्रिकेट मैच या अन्य कोई खेल टीवी पर देखते हों. लेकिन हमारे मूड को बेहतर करने के लिए पुनर्वास केंद्र के अफसर हमें क्रिकेट मैच दिखाने ले जाते थे. जैसे अभी भारत और श्रीलंका के बीच गॉल में क्रिकेट मैच चल रहा है. हमारे कैंप से गॉल मैदान ज्यादा दूर नहीं था. वहां जाने वाले सभी लोग शरीर का कोई न कोई अंग खो चुके थे. उनके पास केवल युद्ध से मिले जख्म थे. हम लोग कभी क्रिकेट मैच और कभी फिल्म देखने जाते थे. 

युद्ध के इन सैनिकों ने जीवन के कठोर यथार्थ का सामना किया है. अब ये मैच देखते भी हैं तो इनमें पहले जैसा जुनून नहीं दिखाई पड़ता. 28 साल के थमारा रत्ननायके ने युद्ध में अपना एक हाथ गंवाया दिया था. थमारा कहते हैं, वह बहुत ज्यादा उत्साही नहीं होता, इसलिए नहीं कि उसने अपना एक हाथ गंवा दिया है बल्कि उसे स्लो क्रिकेट पसंद नहीं है. वह आगे कहते हैं, मैं टी 20 और एकदिवसीय मैच पसंद करता हूं. दिलशान और क्रिस गेल मेरे पसंदीदा खिलाड़ी हैं. मैं कोलंबो में मैच देखता हूं. और तुम्हें पता है, जब मैं युवा था तो मैं भी गेल की तरह शाट मारा करता था. 

मुलाथिवु में सैनिक शिविर में जब भी समय मिलता वह क्रिकेट खेलता. थमारा उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, वहां कोई खुला मैदान नहीं था, क्योंकि वह जंगली इलाका था. बारिश की वजह से वहां अधिकतर कीचड़ रहा करता था. हमें वहां डबल शिफ्ट करनी पड़ती थी, फिर भी हम गेंद और बल्ले का जुगाड़ कर ही लेते थे. लेकिन जिंदगी में यह सब मस्ती बहुत ज्यादा दिन नहीं चली क्योंकि मुझे और मेरे बहुत से दोस्तों को युद्ध के दौरान अपने अंग गंवाने पड़े. लेकिन मुझे गर्व है कि मैं देश के लिए कुछ बलिदान दे पाया. मेरे कुछ दोस्तों को तो अपनी जान तक गंवानी पड़ी. लेकिन अब हम उस मनोस्थिति से उबरने का प्रयास कर रहे हैं. गॉल में जब तीसरे दिन कुछ देर बारिश होने के बाद खेल दोबारा शुरू हुआ तो युद्ध के ये जांबाज सीटियां बजा रहे थे. जाहिर है इनकी जिंदगी दोबारा पटरी पर लौट रही है. 

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