`सोनिया के आश्वासन के बाद भी बापू की चीजें हो रही हैं नीलाम`
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`सोनिया के आश्वासन के बाद भी बापू की चीजें हो रही हैं नीलाम`

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आश्वासन के बावजूद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़ा सामान विदेशों में नीलाम हो रहा है और बापू की याद को सांस्कृतिक धरोहर की तरह सहेजने की बजाय उससे पैसा कमाया जा रहा है।

कानपुर : कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आश्वासन के बावजूद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़ा सामान विदेशों में नीलाम हो रहा है और बापू की याद को सांस्कृतिक धरोहर की तरह सहेजने की बजाय उससे पैसा कमाया जा रहा है। अगली कड़ी में 21 मई को लंदन में बापू के सामान की नीलामी होने जा रही है।
इस तरह की खबरों से आहत गांधीवादी लेखक पदमश्री गिरिराज किशोर का कहना है कि वह शीघ्र ही गांधीवादी विचारको को एकत्र कर एक आंदोलन की रूप रेखा बनाने जा रहे है ताकि राष्ट्रपिता का सामान यूं विदेशों में सरे बाजार नीलाम न हो।
गांधी पर लिखी अपनी पुस्तक पहला गिरमिटिया के लिये पदमश्री से सम्मानित गिरिराज किशोर ने पीटीआई भाषा से एक विशेष बातचीत में कहा देश के महापुरूषों से जुड़ा सामान उनके बेशकीमती यादें हैं और उन्हें सांस्कृतिक धरोहर के तौर पर सहेजना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके दर्शन कर सकें।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ऐसा सख्त कानून बनाए जिससे विदेशों में केवल धन कमाने के लिये महात्मा गांधी जैसे अनेक महापुरूष का सामान नीलाम न होने पाये। उन्होंने बताया कि इस तरह की नीलामी को रोकने के संबंध में उन्होंने सोनिया गांधी को भी पत्र लिखा था, जिसका जवाब 10 जुलाई 2012 को उनके पास आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह संस्कृति मंत्रालय से ऐसी नीति बनाने के लिए कहेंगी, जिसके जरिए महापुरूषों की वस्तुओं की विदेशों में होने वाली नीलामी को रोका जा सके।
किशोर ने इस बात पर खेद प्रकट किया कि पत्र का जवाब आए नौ महीने हो गये लेकिन सोनिया गांधी के आश्वासन के बाद भी इस दिशा में कुछ नहीं हुआ और 21 मई को एक बार फिर महात्मा गांधी के सामान की नीलामी होने जा रही है।
किशोर ने बताया कि इस नीलामी में 1921 में महात्मा गांधी द्वारा लिखी वसीयत, पावर आफ अटार्नी तथा हाथी के दांत के तीन बंदर और अन्य महत्वपूर्ण सामान शामिल हैं। उन्होंने कहा कि वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर उनका नौ माह पुराना वादा याद दिला रहे हैं।
पदमश्री किशोर ने कहा कि 17 अप्रैल 2012 को लंदन में महात्मा गांधी के चश्मे, पत्र, चरखा, घड़ी और उनके खून से सनी घास की नीलामी के बारे में मालूम होने के बाद उन्होंने 21 मई 2012 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को पत्र लिखा था। सात जून 2012 को राष्ट्रपति सचिवालय से उन्हें इस पत्र का जवाब मिला, जिसमें कहा गया था कि उनके पत्र को उचित कार्यवाही के लिये गृह और विदेश मंत्रालय को भेज दिया गया है।
उन्होंने बताया कि इससे पहले वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संस्कृति मंत्रालय को भी पत्र लिख चुके थे लेकिन उसका कोई जवाब नही आया। इसके बाद संस्कृति मंत्रालय को लिखे पत्र का भी कोई जवाब नही आया।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालयों से कोई ठोस आश्वासन न मिलने के बाद किशोर ने पदमश्री लौटाने की बात कहते हुये पूर्व राष्ट्रपति पाटिल को पत्र लिखा तब उनके कार्यालय से जवाब आया। नीलामी की कार्रवाई न रूकने पर वह कानपुर के जिलाधिकारी और कमिश्नर को अपना पदमश्री सम्मान वापस करने भी गये लेकिन इन दोनो अधिकारियों ने सम्मान वापस लेने से इंकार कर दिया।
गांधी की वस्तुओं की नीलामी से दुखी किशोर ने इस संबंध में राजनेताओं से किये गये पत्रव्यवहार को पुस्तक ‘‘गांधी की नीलामी से मुक्ति’’ में संकलित किया है। उन्होंने इस संबंध में तमाम गांधीवादी लोगों से एकजुट होकर सरकार पर इस दिशा में कानून बनाने के लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से अभियान चलाने का आह्वान किया है और इस सिलसिले में एक बड़े आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। (एजेंसी)

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