1896 के एथेंस ओलंपिक (Athens Olympics 1896) से लेकर टोक्यो (Tokyo) तक काफी बदलाव आया है. इन गेम्स के साथ-साथ इनके मेडल्स ने भी लंबा सफर तय किया है और प्राइज देने के तरीके में भी काफी बदलाव आया है.
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नई दिल्ली: टोक्यो ओलंपिक गेम्स (Tokyo Olympic Games) शुरू होने में अब कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं. खेलों के इस महाकुंभ में शामिल होने वाले हर खिलाड़ी की ख्वाहिश होती है कि अपने मुल्क के लिए मेडल जरूर जीते. लेकिन क्या आपको पता है कि इन मेडल्स का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है.
एक जमाने में ओलंपिक गेम्स (Olympic Games) में विनिंग प्लेयर्स को जैतून के फूलों (Olive Flower) का हार दिया जाता था फिर टेक्नोलॉजी के दौर में पुराने मोबाइल फोन और इलेक्ट्रिक के सामन को गलाकर मेडल तैयार किए जाने लगे.
टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) के मेडल्स रीसाइकल्ड इलेक्ट्रिक सामानों (Recycled Electrical Equipment) से बने हैं. इन मेडल्स का व्यास 8.5 सेंटीमीटर होगा और इस पर यूनान की जीत की देवी ‘नाइकी’ (Nike) की तस्वीर बनी होगी.
पुराने सेलफोन से बनेंगे मेडल्स
पिछले कई सालों के उलट इन्हें सोने, चांदी और कांसे (इस मामले में तांबा और जिंक) से तैयार किया गया है जिसे जापान की जनता द्वारा दान में दिए गए 79 हजार टन से ज्यादा इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन और अन्य छोटे इलेक्ट्रिक उपकरणों से निकाला गया है. प्राचीन ओलंपिक खेलों के दौरान विजेता खिलाड़ियों को ‘कोटिनोस’ या जैतून के फूलों का हार दिया जाता था जिसे ग्रीस में पवित्र पुरस्कार माना जाता था और यह सर्वोच्च सम्मान का सूचक था.
यूनान की खो चुकी परंपरा ओलंपिक खेलों ने 1896 में एथेंस में फिर से जन्म लिया. पुनर्जन्म के साथ पुरानी रीतियों की जगह नई रीतियों ने ली और मेडल देने की परंपरा शुरू हुई. विजेताओं को रजत जबकि उप विजेता को तांबे या कांसे का मेडल दिया जाता था. पदक के सामने देवताओं के पिता ज्यूस की तस्वीर बनी थी जिन्होंने नाइक को पकड़ा हुआ था. ज्यूस के सम्मान में खेलों का आयोजन किया जाता था. पदक के पिछले हिस्से पर एक्रोपोलिस की तस्वीर थी.
1904 के सेंट लुईस में पहली बार गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल का इस्तेमाल किया गया. ये मेडल ग्रीस की पैराणिक कथाओं के शुरुआती 3 युगों का प्रतिनिधित्व करते हैं. स्वर्णिम युग- जब इंसान देवताओं के साथ रहता था, रजत युग- जहां जवानी सौ साल की होती थी और कांस्य युग या नायकों का युग.
अगली एक सदी में मेडल के साइज, शेप, वजन, कॉम्बिनेश और इनमें बनी इमेज में बदलाव होता रहा. आईओसी ने 1923 में ओलंपिक खेलों के पदक को डिजाइन करने के लिए शिल्पकारों की प्रतियोगिता शुरू की. इटली के कलाकार ज्युसेपी केसियोली के डिजाइन को 1928 में विजेता चुना गया. फिर 1924 में पेरिस ओलंपिक आयोजित किए गए.
लंबे वक्त तक रहा ये डिजाइन
पदक का सामने वाला हिस्सा उभरा हुआ था जिसमें नाइकी ने अपने बाएं हाथ में ताड़ और दाएं हाथ में विजेता के लिए मुकुट पकड़ा हुआ है. इसकी पृष्ठभूमि में कलागृह का चित्रण था और पिछली तरफ एक विजयी खिलाड़ी को लोगों की भीड़ ने उठा रखा था. पदक का यह डिजाइन लंबे समय तक बरकरार रहा.
मेजबान शहरों को 1972 म्यूनिख ओलंपिक से मेडल्स के पिछले हिस्से में बदलाव की इजाजत दी गई. अगले हिस्से में हालांकि 2004 में एथेंस ओलंपिक के दौरान बदलाव हुआ. इसमें नाइकी की नई इमेज थी वो सबसे मजबूत, सबसे ऊंचे और सबसे तेज खिलाड़ी को जीत प्रदान करने 1896 पैनाथेनिक स्टेडियम में उड़ती हुईं आ रहीं थी.
रोम ओलंपिक 1960 से पहले तक विजेताओं की छाती पर पदक पिन से लगाया जाता था लेकिन इन खेलों में पदक का डिजाइन नैकलेस की तरह बनाया गया और खिलाड़ी चेन की सहायता से इन्हें अपने गले में पहन सकते थे. चार साल बाद इस चेन की जगह रंग-बिरंगे रिबन ने ली.
पूरी तरह सोने का नहीं होता गोल्ड मेडल
दिलचस्प बात ये है कि गोल्ड मेडल पूरी तरह सोने का नहीं बना होता. स्टॉकहोम ओलंपिक 1912 में आखिरी बार पूरी तरह सोने के बने तमगे दिए गए. अब मेडल्स पर सिर्फ सोने का पानी चढ़ाया जाता है. आईओसी के दिशानिर्देशों के अनुसार स्वर्ण पदक में कम से कम 6 ग्राम सोना होना चाहिए. लेकिन असल में मेडल में चांदी का बड़ा हिस्सा होता है.
चीन वालों ने क्या किया?
बीजिंग ओलंपिक 2008 (Beijing Olympics 2008) में पहली बार चीन ने ऐसा मेडल पेश किया जो किसी धातु नहीं बल्कि जेड से बना था. चीन की पारंपरिक संस्कृति में सम्मान और सदाचार के प्रतीक इस माणिक को हर मेडल के पिछली तरफ लगाया गया था.
पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरुकता को देखते हुए रियो ओलंपिक 2016 में आयोजकों ने रिसाइकल्ड मेटल्स के ज्यादा इस्तेमाल का फैसला किया. मेडल्स में ना सिर्फ 30 फीसदी रिसाइक्ल्ड चीजों का इस्तेमाल हुआ बल्कि उससे जुड़े रिबन में भी 50 फीसदी रिसाइकल्ड प्लास्टिक बोतलों का इस्तेमाल किया गया.रियो के नक्शे कदम पर चलते हुए टोक्यो ओलंपिक के आयोजकों ने भी ऐसे ही मेडल्स बनाने का फैसला किया.