बात 1956 ओलंपिक की है. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में हो रहे इन ओलंपिक खेलों के लिए बलबीर सिंह सीनियर को भारतीय टीम की कप्तानी सौंपी गई थी.
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नई दिल्ली. भारतीय खेलों में पाकिस्तानी टीम के साथ कोई भी मुकाबला हो और रोमांच न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. जरा सोचिए कि दोनों देशों के बीच विभाजन के बाद जब राष्ट्रवाद का भूत दोनों तरफ चरम पर रहा होगा तो ऐसे में उनके बीच मुकाबले का क्या आलम रहा होगा? मुकाबला भी यदि ओलंपिक खेलों में उस हॉकी का रहा हो, जिसे दोनों ही देश की जनता उन दिनों भगवान की तरह पूजती थी तो तनाव का अंदाजा खुद लगाया जा सकता है. ऐसे तनाव के बीच भी एक हॉकी लीजेंड ने अपना हाथ चोटिल होने के बावजूद टीम का नेतृत्व किया था और जीत के साथ ही ओलंपिक पदक भी पाकिस्तान के जबड़े से छीन ली थी. ऐसे लीजेंड बलबीर सिंह सीनियर का सोमवार को चंडीगढ़ में लंबी बीमारी के बाद 95 साल की उम्र में निधन हो गया.
सेमीफाइनल और फाइनल में चोट के बाद भी खेले थे बलबीर
बात 1956 ओलंपिक की है. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में हो रहे इन ओलंपिक खेलों के लिए बलबीर सिंह सीनियर को भारतीय टीम की कप्तानी सौंपी गई थी, जो 1948 और 1952 के ओलंपिक खेलों में भारतीय गोल्ड मेडल के आधार रहे थे. ऐसे में बलबीर के लिए दोहरी चुनौती थी, अपनी कप्तानी में गोल्ड मेडल जीतने का क्रम भी बरकरार रखना था और अपना प्रदर्शन भी शानदार रखना था. उन्होंने ओपनिंग मैच में अफगानिस्तान के खिलाफ 5 गोल ठोककर दिखा दिया कि वे थमने वाले नहीं है. यह मैच टीम ने 14-0 से जीता. लेकिन इस मैच में उनके हाथ में गंभीर चोट आ गई. उनकी अंगुली फ्रेक्चर हो गई थी. इसके बावजूद उन्होंने सेमीफाइनल में पूर्वी जर्मनी के खिलाफ टूटी अंगुली से ही मैच में उतरकर 1-0 की जीत का नेतृत्व किया. फाइनल में पाकिस्तान से भी बेहद कड़ा मुकाबला रहा. इस मैच में भी वे अपनी टीम का जोश ऊंचा रखने के लिए एक हाथ से ही स्टिक लेकर मैदान में डटे रहे. ये फाइनल मैच भारत ने रणधीर सिंह जेंटल के इकलौते गोल से 1-0 से जीता, लेकिन विशेषज्ञों ने माना कि बलबीर सिंह का एक हाथ से ही स्टिक पकड़कर गेंद को मारना टीम को जीत का जोश दिला गया.
पद्मश्री पुरस्कार पाने वाले पहले खिलाड़ी बने थे
बलबीर सिंह को 1957 में भारत सरकार ने शीर्ष नागरिक सम्मानों में से एक पद्मश्री से नवाजा था. वे इस सम्मान को पाने वाले देश के पहले खिलाड़ी बने थे. उन्हें सरकार ने 1982 के एशियाई खेलों में मशाल जलाकर खेलों की शुरुनआत करने का सम्मान भी दिया था. 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में डोमिनिकन गणराज्य की सरकार 1956 ओलंपिक खेलों को लेकर डाक टिकट जारी किया था, जिस पर बलबीर सिंह और एक अन्य भारतीय हॉकी खिलाड़ी गुरुदेव सिंह की तस्वीर छापी गई थी.
कोच के तौर पर भी थे चैंपियन
बलबीर सिंह एक कोच के तौर पर भी चैंपियन साबित हुए थे. उनके चीफ कोच रहते हुए भारतीय टीम कभी किसी टूर्नामेंट से खाली हाथ नहीं लौटी थी. वे 8 टूर्नामेंट में टीम के चीफ कोच रहे थे और इन सभी में भारतीय टीम ने पदक जीता था. इनमें 1975 वर्ल्ड कप में भारत का इकलौता विश्व खिताब, 1966 एशियाई खेलों का गोल्ड मेडल, 1971 वर्ल्ड कप का ब्रांज मेडल, 1982 चैंपियंस ट्रॉफी का ब्रांज मेडल और 1982 एशियाई खेलों का सिल्वर मेडल शामिल है.