Coronavirus: कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग टेक्नोलॉजी क्या है और ये कैसे काम करती है?
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Coronavirus: कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग टेक्नोलॉजी क्या है और ये कैसे काम करती है?

दुनिया भर की सरकारें वायरस से संक्रमित लोगों का पता लगाने के लिए कर रही इस तकनीक का इस्तेमाल

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के प्रसार के धीमे होने के कोई संकेत नहीं दिखाई दे रहे, ऐसे में दुनिया भर की सरकारें वायरस से संक्रमित लोगों का पता लगाने के लिए मोबाइल टेक्नोलॉजी का उपयोग करने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन ये मोबाइल कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग ऐप कैसे काम करते हैं, और क्या ये करोना संक्रमण के वक्र को समतल करने में मदद कर सकते हैं?

  1. कोरोना संक्रमितों का पता लगाने के लिए हो रहा है contact-tracing ऐप का उपयोग
  2. भारत समेत कई देशों ने अपनाई ये तकनीक
  3. 60 फीसदी आबादी ऐप डाउनलोड करे, तभी होंगे प्रभावी

वैश्विक स्तर पर कोरोन वायरस से लगभग 2.14 मिलियन लोग संक्रमित हो चुके हैं. दुनिया भर के 200 से अधिक देश इस अदृश्य दुश्मन के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई भी इसे हराने में कामयाब नहीं हुआ है.

कोरोना वायरस को तभी खत्म किया जा सकता है जब इससे संक्रमित लोगों को सफलतापूर्वक अलग रखकर उनका इलाज किया जाता है. और यहां ब्लूटूथ-संचालित contact-tracing apps काम आ सकते हैं.

क्या है ये तकनीक?

- सबसे पहले ऐप डाउनलोड करना होता है. फिर यूजर को अपना कोरोना वायरस स्टेटस अपडेट करना होता है.
- ये ऐप ब्लूटूथ तकनीक का उपयोग कर यह निर्धारित करते हैं कि यूजर किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया है या नहीं.
- अगर ऐसा होता है, तो यह यूजर को नोटिफिकेशन भेजता है और टेस्ट कराने और सेल्फ आइसोलेट करने के लिए कहता है.
- यह सिस्टम पारंपरिक कॉन्टेक्ट-ट्रेसिंग के तरीकों की तुलना में ज्यादा बेहतर है, जहां संबंधित कर्मचारियों को मरीजों की यात्रा के बारे में उनका इंटरव्यू करने की जरूरत होती है.
- कई देशों ने पहले ही इस तकनीक को अपना लिया है, और दूसरे भी जल्द इसे अपनाने वाले हैं.

सिंगापुर ऐसा पहला देश है जिसने 'trace together' नाम के ऐप के जरिए, कॉन्टेक्ट ट्रेस करना शुरु किया था. भारत का 'आरोग्य सेतु' ऐप भी उसी तकनीक पर काम करता है. इजरायल, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देश भी घातक वायरस के प्रसार को रोकने के लिए इसी तरह के ऐप का उपयोग कर रहे हैं.

ऐप-आधारित ट्रेसिंग को अधिक प्रभावी बनाने के लिए ऐपल और गूगल जैसे टेक दिग्गज नए टूल पर काम कर रहे हैं. कंपनियों का कहना है कि उनकी तकनीक 14 दिनों की अवधि के लिए संपर्कों की निगरानी के लिए ऐप्स को सक्षम कर सकती है.

डिजिटल ट्रेसिंग की प्रक्रिया अधिकारियों को कुछ हिस्सों में लॉकडाउन को कम करने और कुछ जगहों को ज्यादा अलग करने में मदद कर सकती है. दूसरे शब्दों में, यह निर्णायकों को यह निर्धारित करने में मदद कर सकता है कि कौन से क्षेत्र दूसरों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं.

क्या यह प्रभावी है?

- शोधकर्ताओं का कहना है कि डिजिटल ट्रेसिंग तभी प्रभावी हो सकती है, जब 60 फीसदी आबादी ऐप डाउनलोड कर अपनी स्थिति अपडेट करे.
- विशेषज्ञों का मानना है कि कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग केवल उन ही देशों में मददगार है, जहां बड़े पैमाने पर टेस्ट उपलब्ध हों.
- कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप में निजता संबंधी चिंताएं हैं. निजता की सिफारिश करने वालों को चिंता है कि ऐसा डेटाबेस हैकर्स के लिए गोल्डमाइन साबित हो सकता है.
- कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि गोपनीयता की सुरक्षा के साथ भी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की जा सकती है. हालांकि ये प्रत्येक देश में अलग-अलग ऐप पर निर्भर करता है.

ये तकनीक तो भरोसेमंद लग रही है, लेकिन इसे प्रभावी होने के लिए उपयोगकर्ताओं के समर्थन की जरूरत है.

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