क्या भारत में बच्चों के लिए Ban कर देना चाहिए Social Media? मुमकिन है या नहीं... जानिए एक्सपर्ट्स की राय
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क्या भारत में बच्चों के लिए Ban कर देना चाहिए Social Media? मुमकिन है या नहीं... जानिए एक्सपर्ट्स की राय

ऑस्ट्रेलिया की संसद ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर रोक लगाने का कानून बनाया है. ऐसे में चर्चा है कि क्या भारत में बच्चों के लिए सोशल मडिया बैन कर देना चाहिए. जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स...

 

क्या भारत में बच्चों के लिए Ban कर देना चाहिए Social Media? मुमकिन है या नहीं... जानिए एक्सपर्ट्स की राय

क्या भारत में बच्चों के लिए सोशल मीडिया बंद कर देना चाहिए? ऑस्ट्रेलिया की संसद ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर रोक लगाने का कानून बनाया है. इस वजह से, भारत में भी इस बारे में बहुत चर्चा हो रही है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये कानून बनाना तो अच्छा है, लेकिन इसे लागू करना बहुत मुश्किल होगा. आइए जानते हैं ऐसा क्यों...

सेहत के लिए हानिकारक है सोशल मीडिया

हाल ही में, अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (APA) ने सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल के बारे में चेतावनी जारी की है. उन्होंने कहा है कि ज्यादा सोशल मीडिया इस्तेमाल करने से किशोरों को रोजमर्रा के काम करने में दिक्कत हो सकती है. इसके अलावा, ज्यादा सोशल मीडिया इस्तेमाल करने से किशोरों की मानसिक सेहत भी खराब हो सकती है.

AIIMS-Delhi के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर राजेश सागर ने कहा, 'बच्चों के लिए सोशल मीडिया बंद करना एक अच्छा कदम है, लेकिन इसे पूरी तरह से बंद करना मुश्किल होगा. हमें बच्चों को सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल करना सिखाना चाहिए.'

एक्सपर्ट ने बताया- बैन होना मुश्किल

बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञ डॉक्टर प्रमित रस्तोगी का कहना है कि बच्चों के दिमाग अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं, लेकिन उन्हें बिना किसी देखरेख के मोबाइल फोन और टैबलेट दे दिए जाते हैं. यही वजह है कि सोशल मीडिया पर रोक लगाने की बात की जा रही है. उन्होंने कहा, 'अगर हम सोशल मीडिया पर पूरी तरह से रोक लगा देंगे, तो दूसरी तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं. लोग गैर-कानूनी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने लगेंगे. हमें पहले देखना चाहिए कि पश्चिमी देशों में क्या होता है, फिर हम अपने देश में सोशल मीडिया पर कुछ नियम बना सकते हैं. उदाहरण के लिए, स्कूलों में सोशल मीडिया का इस्तेमाल न करने देना या इंटरनेट प्रोवाइडर्स के ज़रिए बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखना, जैसे काम किए जा सकते हैं.'

सर गंगा राम अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर रोमा कुमार का कहना है कि सोशल मीडिया के ज़्यादा इस्तेमाल की वजह से किशोरों के दोस्त बनाने और उनसे बातचीत करने का तरीका बदल गया है. पिछले दस सालों में, किशोरों में डिप्रेशन, चिंता और आत्महत्या के ख्याल बढ़ गए हैं.

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