नई दिल्ली: भारत में कई शहर ऐसे हैं जहां मंदिरों की कोई कमी नहीं है, वहीं ज्यादातर देशवासियों को धर्म नगरी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने का इंतजार है. हालांकि देश के बीचों-बीच राज्य में एक ऐसा नगर है जिसे 'मध्य प्रदेश का अयोध्या' (Ayodhya of Madhya Pradesh) कहा जाता है. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं. ओरछा (Orchha) अपने इतिहास के लिए काफी प्रसिद्ध है. भव्य मंदिरों और किलों का गढ़ कहा जाने वाला ये नगर बुंदेलों के पराक्रम की गाथा बताता है. देश के ऑफबीट पर्यटन स्थलों में से एक ओरछा अब लोगों के बीच मशहूर हो रहा है.
झांसी से करीब 16 किमी की दूरी पर ओरछा शहर मौजूद है. हरियाली से घिरा और पहाड़ों की गोद में बसा ओरछा एक समय बुंदेलखंड की राजधानी हुआ करता था. ओरछा एक ऐसी जगह है जहां पर एंट्री करते ही आपको प्राचीनकाल के शहरों की वास्तुकला और सौंदर्य की अनुभूति होगी. मान्यता है कि ओरछा को 'दूसरी अयोध्या' माना गया है. यहां पर प्रभु श्रीराम अपने बाल रूप में विराजमान हैं. लोगों की मान्यता है कि श्रीराम दिन में यहां तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं. धार्मिक मान्यता है कि श्रीराम के दो निवास हैं जिसमें दिन में वो ओरछा रहते हैं, रात में अयोध्या में वास करते हैं.
परिहार राजाओं के बाद ओरछा पर चंदेलों और फिर बुंदेलों ने शासन किया. इन राजाओं के काल में ओरछा की दशा अच्छी नहीं थी. लेकिन जब बुंदेलों का शासन आया तो ओरछा का फिर उदय हुआ. बुंदेलों के राजा रुद्रप्रताप ने 1531 ई. में नए सिरे से इस शहर की स्थापना की. उन्होंने नगर में कई मंदिर, महल और किलों का निर्माण करवाया. फिर मुगल शासक अकबर के समय में यहां के राजा मधुकर शाह थे. जहांगीर ने वीरसिंहदेव बुंदेला को, जो ओरछा राज्य की बड़ौनी जागीर के स्वामी थे, पूरे ओरछा राज्य की गद्दी दी थी. वहीं जब शाहजहां का शासन काल आया तो बुंदेलों ने मुगलों कई बार मात दी.
इस किले को ओरछा के पहले शासक रुद्रप्रताप ने बनवाया था. किला परिसर में कई इमारतें हैं जिन्हें कई अलग-अलग लोगों ने बनवाया था. इसी के साथ ओरछा के सबसे प्राचीन स्मारकों में से एक 'राजमहल' को 17वीं शताब्दी में मधुकर शाह ने बनवाया था. इसे देखना भी न भूलें.
जहांगीर महल का निर्माण आयतकार चबूतरे पर कराया गया है और इसके हर कोने पर गुंबद बने हैं. अपनी खूबसूरत सीढ़ियों और गेट के लिए यह महल प्रसिद्ध है, जिसे मुगल बुंदेला दोस्ती का प्रतीक माना गया है. कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने अबुल फजल को शहजादे सलीम (जहांगीर) को काबू करने के लिए भेजा था, लेकिन सलीम ने बीर सिंह की मदद से उसका कत्ल करवा दिया. इससे खुश होकर सलीम ने ओरछा की कमान बीर सिंह को सौंप दी थी. वैसे, ये महल बुंदेलाओं की वास्तुशिल्प के प्रमाण है. जहांगीर महल के प्रवेश द्वार पर दो झुके हुए हाथी बने हुए हैं जो अपने आप में वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है.
यहां बेतवा नदी के किनारे कंचन घाट पर कई छतरियां हैं जो बुंदेलखंड के शासकों के वैभव की कहानी बताता है. चौदह छतरियों में बुंदेलखण्ड के राजा-महाराजा के अस्तित्व बसे हुए हैं.
यह मंदिर ओरछा का सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण मंदिर है. यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है. माना जाता है कि राजा मधुकर को भगवान राम ने स्वप्न में दर्शन दिए और अपना एक मंदिर बनवाने को कहा. राजा ने श्रीराम के जन्मस्थल अयोध्या से उनकी मूर्ति मंगवाई और उसे मंदिर का निर्माण होने तक महल में रखवा दिया. बाद में राम ने मूर्ति महल से न हटाने का निर्देश दिया. इस प्रकार महल को ही भगवान राम का मंदिर बना दिया गया.
ओरछा गांव के पश्चिम में एक पहाड़ी पर बना 622 ई. में बीरसिंह देव ने इस मंदिर कां बनवाया था. मंदिर में सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के चित्र बने हुए हैं, जो तब के इतिहास को बयां करते हैं.
ओरछा का नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो है जो 163 किमी. की दूरी पर है. यह एयरपोर्ट दिल्ली, वाराणसी और आगरा से नियमित फ्लाइटों से जुड़ा है. इसी के साथ रेल मार्ग से झांसी और ओरछा रेल स्टेशन सबसे नजदीक है. दिल्ली, आगरा, भोपाल, मुम्बई, ग्वालियर आदि प्रमुख शहरों से झांसी के लिए अनेक रेलगाड़ियां हैं.ओरछा झांसी-खजुराहो मार्ग पर स्थित है. सड़क मार्ग से नियमित बस सेवाएं ओरछा और झांसी को जोड़ती हैं. दिल्ली, आगरा, भोपाल, ग्वालियर और वाराणसी से यहां से लिए नियमित बसें चलती हैं.
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