भारत इन इलाकों में सड़क और हवाईपट्टी के निर्माण पर जोर दे रहा, लेकिन पर्याप्त धन के अभाव में अधिकतर परियोजनाएं अटकी हुईं हैं
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नई दिल्लीः पिछले साल डोकलाम में चीनी सेना को अपने कदम वापस खींचने के लिए मजबूर करने वाली भारतीय सेना पूर्वोत्तर के दूर्गम इलाकों में आधारभूत संरचनाओं की कमी से जूझ रही है. पिछले काफी समय से भारत इन इलाकों में सड़क और हवाईपट्टी के निर्माण पर जोर देता रहा है, लेकिन पर्याप्त धन के अभाव में इनमें से अधिकतर परियोजनाएं अब भी अटकी हुई है. दूसरी तरफ चीन तेजी से अपने इलाके में सड़कों का जाल बिछा रहा है. ऐसे में रक्षा क्षेत्र के जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंतिम पूर्ण बजट से इस क्षेत्र के विकास के लिए काफी उम्मीदें लगाए हुए हैं.
पिछले दिनों सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने भी कहा था कि भारत को एक साथ उत्तरी और पश्चिमी दो मोर्चों पर युद्ध के लिए तैयार रहना होगा. एक तरफ चीन अपनी ताकत का दंभ भरता है दूसरी तरफ पाकिस्तान छद्म युद्ध के सहारे देश को अस्थिर करने की कोशिश करता रहा है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि मोदी सरकार दोनों मोर्चों पर सेना की ताकत बढ़ाने के लिए पूर्वोत्तर में आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए बजट आवंटन में बढ़ोतरी करेगी.
रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 73 सड़कें बननी थीं
दरअसल, सरकार ने चीन के साथ लगी सीमा पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 73 सड़कों की पहचान की है. पिछले साल इस बारे में आई सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 4644 करोड़ की लागत से निर्मित होने वाली 61 सड़कों को बनाने का काम सीमा सड़क संगठन को दिया गया था. इन्हें 2012 तक पूरा करना था, लेकिन धन की कमी के कारण इनमें से अधिकतर सड़के अब भी अधूरी हैं. मार्च 2016 तक केवल 22 सड़कों का निर्माण पूरा हो सका था. इन 22 सड़कों के निर्माण पर ही 4544 करोड़ रुपये खर्च हो गए. यानी 61 सड़कों के लिए आवंटित 4644 करोड़ रुपये का 98 फीसदी हिस्सा. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑडिट के लिए चुनी गई 24 सड़कों में से केवल छह सड़कें ही मार्च 2016 तक पूरी हो पाई थीं. इतना ही नहीं ये सड़कें भी सेना के भारी साजो-सामान को ले जाने लायक नहीं थीं.
इसके अलावा सेना की दूसरी सबसे बड़ी चिंता गोला-बारुद की कमी है. थल सेना के पास 40 फीसदी तक गोला-बारुद की कमी है, सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक 152 में 61 प्रकार के गोला-बारुद की कमी बेहत चिंतनीय है. सैन्य विशेषज्ञ लगातार ऐसी स्थिति को लेकर चिंता जता रहे हैं. उनका कहना है कि दो-दो मोर्चों पर चुनौती की सामना कर रही भारतीय सेना को एक तरह से हमेशा अलर्ट मोड पर रहना पड़ता है. ऐसे में सरकार को प्राथमिकता के आधार पर सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए धन की व्यवस्था करनी होगी.