बाहरी नेताओं की राजस्थान में लॉटरी, चुनाव में खूब पसंद करती है जनता

Vinay Trivedi
Apr 21, 2024

नेता जी पधारो म्हारे देश...

राजनीतिक इतिहास बताता है कि राजस्थान की जनता बाहरी नेताओं को खूब पसंद करती है. तमाम बाहरी नेताओं को कई बार चुन चुकी है.

60 के दशक में दिखा जनता का मिजाज

60 के दशक में ही ये दिख गया था कि राजस्थानी जनता को बाहरियों से परहेज नही है. बंगाल से नाता रखने वाले सुरेंद्र कुमार डे यहां से चुनाव जीते थे.

जब बाहरी नेता ने नागौर से जीता चुनाव

सुरेंद्र कुमार डे देश के पहले पंचायती राज मंत्री थे. वह राजस्थान के नागौर से चुनाव जीतकर 1962 में संसद पहुंचे थे.

बूटा सिंह राजस्थानियों को आए पसंद

पंजाब से आने वाले बूटा सिंह को भी राजस्थानियों ने पसंद किया. बूटा सिंह को जालोर की जनता ने तीन बार सांसद चुना.

तीन बार केंद्र सरकार में मंत्री रहे बूटा सिंह

बूटा सिंह आठवीं, दसवीं बारहवीं और तेरहवीं लोकसभा में चुनाव जीते. बूटा सिंह तीन बार कैबिनेट मंत्री भी रहे.

बलराम जाखड़ ने तो दो सीटों से चुनाव जीता

पंजाब के ताल्लुक रखने वाले बलराम जाखड़ ने तो एक नहीं बल्कि राजस्थान की दो सीटों से चुनाव जीता. वह अकेले ऐसे बिरले नेता रहे.

कैबिनेट मंत्री रहे थे बलराम जाखड़

बलराम जाखड़ दो बार सीकर से और एक बार बीकानेर से सांसद बने. बलराम जाखड़ 1991 से 1996 तक कैबिनेट मंत्री भी रहे थे.

राजस्थान को भाया हरियाणा का लाल

हरियाणा के लाल चौधरी देवीलाल भी राजस्थान वालों को खूब पसंद आए थे. चौधरी देवीलाल, बलराम जाखड़ को हराकर सांसद बने थे.

जब चौधरी देवीलाल बने उपप्रधानमंत्री

चौधरी देवीलाल वीपी सिंह की गवर्मेंट में 1989 से 1991 तक उपप्रधानमंत्री रहे थे. सीकर से चुनकर चौधरी देवीलाल संसद पहुंचे थे.

जब सचिन पायलट के पापा बने सांसद

सचिन पायलट के पापा राजेश्वर प्रसाद विधूड़ी का यूपी से ताल्लुक था. जब वह राजस्थान गए तो विरोध हुआ. फिर संजय गांधी से मामले को सुलझाया था.

कैसे पड़ा राजेश पायलट नाम?

संजय गांधी ने राजेश्वर प्रसाद विधूड़ी के कहने पर उन्होंने अपना नाम बदलकर राजेश पायलट रखा. और फिर चुनाव लड़ने पर भरतपुर से सांसद बने.

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