हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी

Tahir Kamran
Nov 30, 2024

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे तू बहुत देर से मिला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल हार जाने का हौसला है मुझे

ये किन नज़रों से तू ने आज देखा कि तेरा देखना देखा न जाए

सिलवटें हैं मिरे चेहरे पे तो हैरत क्यूं है ज़िंदगी ने मुझे कुछ तुम से ज़ियादा पहना

कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसे तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा

चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही

मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर ये सोच ले कि मैं भी तिरी ख़्वाहिशों में हूं

भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाब, कि जैसे तू ने हथेली पे गाल रक्खा है

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