निराला से बाजपेयी, 10 प्रसिद्ध कवियों की कालजयी रचनाएं

Devinder Kumar
Nov 02, 2023

रामधारी सिंह दिनकर

सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

अभी न होगा मेरा अंत अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसंत अभी न होगा मेरा अंत

सुभद्रा कुमारी चौहान

शैशव के सुन्दर प्रभात का मैंने नव विकास देखा। यौवन की मादक लाली में जीवन का हुलास देखा।।

जयशंकर प्रसाद

चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर प्रलय चल रहा अपने पथ पर मैंने निज दुर्बल पद-बल पर उससे हारी-होड़ लगाई

दुष्यंत कुमार

मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ एक जंगल है तेरी आँखों में मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ

महादेवी वर्मा

कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार अनुराग भरा उन्माद राग आँसू लेते वे पथ पखार जो तुम आ जाते एक बार

सुमित्रानंदन पंत

मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे, रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी, और फूल फलकर मैं मोटा सेठ बनूंगा पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा, बंध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला। सपने जाने कहां मिटे, कब धूल हो गये।

हरिवंश राय बच्चन

मुझसे मिलने को कौन विकल? मैं होऊँ किसके हित चंचला? यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता हैं! दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मैथिली शरण गुप्त

कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो, न निराश करो मन को

अटल बिहारी बाजपेयी

'बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा. कदम मिलाकर चलना होगा.'

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