इतिहास की पुस्तक के अनुसार मुगलों के बीच इसलिए रहता था क्योंकी उनकी कमजोरी जान सके.
बाबर ने हुमांयूं को भाइयों के साथ राज्य बांटने की सलाह दी थी.
इस काम में हुमायूं की सबसे ज्यादा मदद शेरशाह सूरी ने ही की थी.
शेर शाह को फरीद के नाम से भी जाना जाता था. 1484 में फरीद ने घर छोड़ दिया था.
शेरशाह कुछ समय आगरा में भी रहा था. उसने मुगलों की कार्यप्रणाली को समझा था.
1528 में वह बिहार चला गया, लेकिन मुगलों के संपर्क में रहा.
हुमांयू सतर्क था, उसने शेर शाह की घेराबंदी की, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी.
हुमांयूं ने शेरशाह से कुछ दुर्ग कब्जा लिए थे. इसलिए शेरशाह ने ये प्रस्ताव भेजा कि उसे बंगाल का सामंत बना दिया जाए तो वह बिहार दे देगा, लेकिन हुमायूं ने प्रस्ताव को नहीं माना और हमला कर दिया.
540 में शेरशाह ने कन्नौज के पास हुमायूं पर हमला किया, जिसमें मुगल बुरी तरह हार गए. हुमायूं बच गया, लेकिन अगले 15 साल तक हिंदुस्तान से दूर रहा.