'मिला है हुस्न तो इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर...', पढ़िए महबूब के हुस्न पर उर्दू के बेहतरीन

Tahir Kamran
Dec 03, 2024

इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का, क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम

तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले, तिरा हुस्न कुछ नहीं था मिरी शाइरी से पहले

मिला है हुस्न तो इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर, संभल के चल तुझे सारा जहान देखता है

न पाक होगा कभी हुस्न ओ इश्क़ का झगड़ा, वो क़िस्सा है ये कि जिस का कोई गवाह नहीं

इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं, कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है

तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत, हम जहां में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं

उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन, देखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं

'मिला है हुस्न तो इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर...', पढ़िए महबूब के हुस्न पर उर्दू के बेहतरीन

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