हर महिला के जीवन में प्रेग्नेंसी एक सुखद और अलग अनुभव का अहसास कराता है. साथ ही, इस दौरान कुछ समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है.
प्रेग्नेंसी के अंतिम दौर पर महिलाओं के मौजूदा स्थिति के सहूलियत के अनुसार डिलीवरी के तरीके चुन सकते हैं.
ऐसे में आप लोटस बर्थ तकनीकी को अपना सकते हैं. तो चलिए आपको बताते हैं कि क्या है लोटस बर्थ और इसके फायदे और नुकसान.
क्या है लोटस बर्थ-
डिलीवरी के समय बच्चे के गर्भनाल (Umbilical Cord) को काटा नहीं जाता है और उसे मां की छाती पर रखा जाता है. जबकि सामान्य डिलीवरी में गर्भनाल को काटकर अलग कर दिया जाता है.
क्या है लोटस बर्थ के फायदे-
ऐसा माना जाता है कि इस प्रक्रिया में बच्चे की नेचुरल रिदम के साथ ज्यादा मेल खाती है. जो कि शिशु के तनाव को कम करती है.
लोटस बर्थ का जोखिम-
इससे नवजात शिशु में गर्भनाल और आसपास के ऊतकों का संक्रमण और शिशु को पीलिया होने का खतरा हो सकता है.
प्लेसेंटा की देखभाल कैसे करें-
प्लेसेंटा को बच्चे के शरीर के पास रखें और बच्चे को ढीले और सामने से खुले कपड़े ही पहनाएं.
कैसे हुई शुरुआत-
लोटस बर्थ की शुरुआत 1974 में क्लेयर लोटस डे नामक एक महिला द्वारा शुरू किया गया था.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.