पावस की प्रथम फुहारों से, जिसने मुझको कुछ बोल दिये मेरे आंसू मुस्कानों की, कीमत पर जिसने तोल दिये
मैं तुम्हें ढूंढ़ने स्वर्ग के द्वार तक रोज आता रहा, रोज जाता रहा तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
आना तुम मेरे घर अधरों पर हास लिये तन-मन की धरती पर झर-झर-झर-झर-झरना सांसों में प्रश्नों का आकुल आकाश लिये
मैं तुम्हें अधिकार दूंगा एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा मैं अपरिमित प्यार दूंगा मैं तुम्हें अधिकार दूंगा
जब भी मुँह ढंक लेता हूँ तेरे जुल्फों की छाँव में कितने गीत उतर आते हैं मेरे मन के गाँव में
6. जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है, जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है,
सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में, नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे