संस्कृत के वो श्लोक जो सफलता को कर सकते हैं आकर्षित

Jun 12, 2024

हर इंसान अपने जीवन में सफल बनने की चाह रखता है.

अगर आप भी जीवन में सफल होना चाहता हैं तो हम आपके लिए संस्कृत के 5 ऐसे श्लोक लेकर आए हैं जो आपके लिए सफलता की सीढ़ी बन सकते हैं.

वो 5 श्लोक बताने से पहले आपको बता दें कि संस्कृत के श्लोकों को जब भी बोलना चाहिए तो सही उच्चारण के साथ बोलना चाहिए.

आइए आपको अब बताते हैं वो 5 श्लोक...

विद्यां ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्॥

इस श्लोक का अर्थ है कि विद्या मनुष्य को विनम्रता प्रदान करती है, उसी विनम्रता से उसकी योग्यता बढ़ती है. योग्यता से मनुष्य धन प्राप्त करता है और धर्म से ही सुख की प्राप्ति होती है.

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्यणि न मनौरथै:। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।

इस श्लोक का अर्थ है किसी भी काम को करने के लिए उद्यम(मेहनत) ही सबसे जरूरी है क्योंकि मनोरथों से कार्य सिद्ध नहीं होते. जिस तरह सोते हुए शेर के मुंह में हिरन खुद नहीं जाता उसी तरह आलस्य से भरे इंसान का कोई भी काम पूरा नहीं होता.

यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः। चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता ।।

इस श्लोक का अर्थ है कि जैसा मन है वैसी ही वाणी भी होती है और जैसी वाणी होती है वैसी ही क्रियाएं भी होती हैं. वाणी और क्रियाओं में समानता साधुओं की होती है.

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैवकुटम्बकम् ॥

इस श्लोक का अर्थ है कि जिनका मन छोटा होता है उनके मन का भाव होता है कि 'ये मेरा है वो उसका है', जबकि जो उदार व्यक्ति होते हैं उनके लिए तो पूरा संसार ही एक परिवार की तरह ही होता है.

लसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् । अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥

इस श्लोक का अर्थ है कि आलस करने वालों को विद्या नहीं मिलती, जिनके पास विद्या नहीं होती वो मनुष्य धन नहीं कमा सकता और जिसके पास धन नहीं है(निर्धन) उनके पास मित्र नहीं होते और जब मित्र नहीं होंगे तो सुख की प्राप्ति नहीं होगी.

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