स्वतंत्रता दिवस पर पढ़िए शौर्य की अनसुनी गाथा, जब 10 हजार दुश्मनों से लड़े 300 मराठा

Zee News Desk
Aug 13, 2024

मुगलों को चुनौती

1660, ये वो समय था जब मुगलिया परचम को कुछ मुट्ठी भर मराठा मुगलों के जीवन की सबसे बड़ी चुनौती दे रहे थे.

भीषण युद्ध

पवनखिंद का वो युद्ध शायद ही कोई आदिलशाही या मुगल सिपाही कभी भूल पाएगा क्योंकि उन्होंने जो उस दिन देखा वो किसी इंसानी सीमा के परे था.

कहां हुआ था युद्ध?

मराठा सरदार बाजी प्रभु देशपांडे और आदिलशाही का सिद्दी मसूद के बीच विशालगढ़ किले के पास पहाड़ी दर्रे पर हुई थी.

10 हजार मुगल

छत्रपति शिवाजी को पकड़ने की हर विफल कोशिश के बाद सिद्दी मसूद ने मुगलों के साथ मिलकर शिवाजी को पकड़ने के लिए 10 हजार सिपाही भेजे

विश्वसनीय सेनापति

छत्रपति शिवाजी को उनके शासनकाल में उनके सेनापति बाजीप्रभु, जाधवराव, बंदाल और तान्हाजी मालुसरे जैसे अनगिनत लोगों ने मदद की.

विशालगढ़ किला

बाजीप्रभु देशपांडे ने पीछा कर रही आदिलशाही सेना को रोकने की शपथ लेते हुए 300 सैनिकों को चुना जिनका लक्ष्य था की छत्रपति विशालगढ़ तक सुरक्षित पहुंचे.

आदिलशाही की विफल कोशिश

पवनखिंद की लड़ाई में आदिलशाही सेना बार-बार ढाल बनी 300 मराठाओं को रोकने की कोशिश कर रही थी क्योंकि वो शिवाजी को पकड़ने पर आमादा थे.

छत्रपति का संकेत

दोनों हाथों में तलवार लेकर लड़ रहे बाजीप्रभु न जाने कितने घावों के बावजूद तब तक लड़ते रहे जब तक उन्हें छत्रपति के विशालगढ़ पहुंचने के संकेत नहीं मिला.

नहीं बच सके बाजी

संकेत मिलते ही बाजी के सैनिक अपने सरदार को बचाने की कोशिश में लग गए लेकिन घाव ज्यादा होने के कारण उन्होंने दम तोड़ दिया.

सैनिकों का सम्मान

उन्हीं बाजीप्रभु और सैनिकों के सम्मान में छत्रपति शिवाजी ने दर्रे का नाम पवनखिंद रखा जिसका अर्थ है पवित्र. और ये युद्ध आदिलशाही सेना की हार के साथ समाप्त हुआ.

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