धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार जब ऋषि दुर्वासा की सेवा करने के उद्देश्य से भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी उनके आश्रम पहुंचे.

जहां उन्होंने ऋषि दुर्वासा से अपने साथ चलने का आग्रह किया.

ऋषि दुर्वासा ने भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी के साथ जाने से पहले एक शर्त रखी.

वह जिस रथ पर सवार होकर द्वारिका जाएंगे, उस रथ को केवल रुक्मणी और भगवान श्री कृष्ण चलाएंगे.

ऐसे में जब थोड़ी दूर तक रथ चलाने के बाद माता रुक्मणी का कंठ सूखने लगा.

तब उन्होंने अपने दाहिने पैर का अंगूठा धरती की ओर दबाया.

जिस वजह से गंगा माता प्रकट हुई और माता रुक्मणी ने जल का सेवन कर लिया.

इस दौरान उनसे एक भूल हो गई कि उन्होंने जल ग्रहण करने से पहले ऋषि दुर्वासा से नहीं पूछा.

जिस कारण क्रोधित होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें भगवान श्री कृष्ण से अलग होने का श्राप दे दिया.

यही कारण है कि माता रुक्मणी को भगवान श्री कृष्ण के साथ नहीं पूजा जाता.

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