आश्विन मास कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिनों के लिए पितृगण अपने वंशजों के यहां धरती पर अवतरित होते हैं.

Aug 08, 2023

इस अवधि को पितृ पक्ष कहा जाता है. इस दौरान पितरों की इच्छापूर्ति और उनका श्राद्ध कर पितृ दोष को दूर किया जा सकता है.

इस दौरान पितर जानवरों, पक्षियों के माध्यम से हमारे निकट आते हैं और उनके माध्यम से भोजन ग्रहण करते हैं.

पितर जिन जीवों के माध्यम से आहार ग्रहण करते हैं, उनमें गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी जीव शामिल हैं.

ऐसे में श्राद्ध के समय बनाए जाने वाले भोजन में से एक हिस्सा इन जीवों के लिए रखा जाता है.

इनको भोजन कराए बिना श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता है.

श्राद्ध के समय पितरों को अर्पित करने वाले भोजन में से गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए हिस्सा रखा जाता है.

इन पांचों हिस्सों को पञ्चबलि कहते हैं.

चुने गए पांचों जीवों में से कुत्ता जल तत्व, चींटी अग्नि तत्व, कौवा वायु, गाय पृथ्वी और देवता आकाश तत्व के प्रतीक होते हैं.

गाय, कुत्ता, चींटी और देवताओं के लिए पत्ते और कौवे के लिए भूमि पर भोजन के अंश रखे जाते हैं. हिंदू धर्म में गाय की काफी मान्यता है.

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