जन्माष्टमी की रात को करते हैं ये विशेष विधान, इसके बिना अधूरी मानी जाती है पूजा

Arti Azad
Sep 06, 2023

धूमधाम से मनाया जाएगा जन्माष्टमी का पर्व

कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बहुत धूमधाम से भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन बाल गोपाल की पूजा में कुछ विशेष विधान किए जाते हैं.

जन्माष्टमी का विशेष विधान

इन्हीं में से एक है कान्हा के जन्मदिन पर खीरा काटना. आइए जानते हैं जन्माष्टमी की पूजा में खीरा रखने का क्या महत्व होता है.

रोहिणी नक्षत्र में जन्मे थे कान्हा

श्री कृष्ण का जन्म मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसके कारण कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा रात में ही की जाती है.

रात को हुआ था कान्हा का जन्म

रात में बाल गोपाल के जन्म के बाद उन्हें स्नान कराया जाता है, बाल गोपाल को नए वस्त्र पहना कर तैयार किया जाता है.

खीरा काटे बिना अधूरी है पूजा

सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार खीरा के बिना श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा को अधूरा माना जाता है.

डंठल वाला खीरा

कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा में खास तौर पर डंठल वाला खीरा रखना बेहद जरूरी होता है. दरअसल, इस खीरे को गर्भनाल की तरह माना जाता है.

नाल छेदन की प्रक्रिया

जैसे मां के गर्भ से बाहर आने के बाद बच्चे को नाल से अलग कर दिया जाता है, उसी तरह डंठल को खीरे से अलग किया जाता है, जिसे नाल छेदन की प्रक्रिया कहते हैं.

सिक्के से अलग किया जाता है डंठल और खीरा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लड्डू गोपाल का जन्म खीरे से होता है. इस दिन कान्हा के पास खीरा रखते हैं और मध्य रात्रि 12 बजे उसे डंठल से अलग कर देते हैं.

गर्भवती महिलाओं के लिए होता है लाभकारी

पूजा के बाद आप कटा हुआ खीरा गर्भवती महिलाओं को दें सकते हैं और आधा हिस्सा प्रसाद के रुप में भी सबमें बांट सकते हैं.

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