गणपति की आराधना में उनके हर भक्त की जुबान से ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया’, यही जयकारा सुनने को मिलता है
लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि आखिर ये जयकारा क्यों लगाते हैं?
कहानी एक भक्त और भगवान की है, जहां भक्त की भक्ति और आस्था के कारण भक्त के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया भगवान का नाम.
गणपति के इस जयकारे की जड़ें महाराष्ट्र के पुणे से 21 किमी. दूर बसे चिंचवाड़ गांव में हैं.
चिंचवाड़ जन्मस्थली है एक ऐसे संत की जिसकी भक्ति और आस्था ने लिख दी एक ऐसी कहानी, जिसके बाद उनके नाम के साथ ही जुड़ गया गणपति का भी नाम.
पंद्रहवी शताब्दी में एक संत हुए, जिनका नाम था मोरया गोसावी. कहते हैं भगवान गणेश के आशीर्वाद से ही मोरया गोसावी का जन्म हुआ था.
हर साल गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर मोरया चिंचवाड़ से मोरगांव गणेश की पूजा करने के लिए पैदल जाया करते थे.
बढ़ती उम्र की वजह से एक दिन खुद भगवान गणेश उनके सपने में आए और उनसे कहा कि उनकी मूर्ति उन्हें नदी में मिलेगी.
अगले ही दिन वैसा ही हुआ, नदी में स्नान के दौरान मोरया को गणेश जी की मूर्ति मिली.
तब से भक्त चिंचवाड़ गांव में मोरया गोसावी के दर्शन के लिए आने लगे. कहते हैं जब भक्त गोसावी जी के पैर छूकर मोरया कहते और संत मोरया अपने भक्तों से मंगलमूर्ति कहते थे.
भक्तों के प्यार और गणपति के आर्शीवाद से आज तक लोग गणपति से पहले मोरया को याद करते है.
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