महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के जीवन की सबसे बड़ी गलती

Deepak Verma
Jul 09, 2024

जनरल रिलेटिविटी

अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1905 में अपनी सबसे मशहूर 'थ्‍योरी ऑफ जनरल रिलेटिविटी' पेश की. लेकिन आइंस्टीन इस थ्योरी से संतुष्ट नहीं थे.

क्या गड़बड़ी थी?

आइंस्टीन के समीकरण, स्थिर ब्रह्माण्ड की अनुमति नहीं देते थे. गुरुत्वाकर्षण के कारण शुरू में ब्रह्माण्ड जो शुरू में फैल नहीं रहा था, सिकुड़ जाता.

आइंस्टीन का विचार

इस संभावना को काटने के लिए, आइंस्टीन ने 1917 के पेपर में अपनी थ्‍योरी में कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट यानी ब्रह्माण्ड संबंधी स्थिरांक जोड़ा. हालांकि, आइंस्टीन इससे भी खुश नहीं थे.

'बदसूरत चीज'

आइंस्टीन ने बाद में कहा, 'मैं इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा हूं कि प्रकृति में ऐसी बदसूरत चीज सच में साकार होती है.'

हो सकता था कि...

अगर यह कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट नहीं होता तो शायद आइंस्टीन को अमेरिकी एस्ट्रोनॉमर एडविन हबल से पहले ही ब्रह्माण्ड के विस्तार का पता चल गया होता.

हबल की खोज

आइंस्टीन की स्टैटिक थ्‍योरी पेश करने के कुछ साल बाद ही, 1929 में हबल की खोजों ने संकेत दिए कि ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है.

जीनियस आइंस्टीन

यह बात आइंस्टीन के मूल जनरल रिलेटिविटी समीकरणों में बताए गए समाधान से मेल खाती थी. वह समाधान फ्रीडमैन नाम के मैथमेटिशियन ने जनरल रिलेटिविटी के आइंस्टीन समीकरणों पर काम करते हुए ढूंढा था.

आइंस्टीन की भूल

आइंस्टीन ने अपने समीकरणों की इस वैधता को स्वीकार करने में अपनी विफलता को अपनी 'सबसे बड़ी भूल' बताया था. उन्होंने ब्रह्माण्ड के विस्तार की सैद्धांतिक भविष्यवाणी की थी.

पेच भी है

अन्य खोजों से हमें यह पता चला कि आइंस्टीन के समीकरणों में कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट जोड़ने से संतुलन में स्थिर ब्रह्माण्ड नहीं बनता है. अगर ब्रह्माण्ड थोड़ा फैलता है, तो उससे वैक्यूम एनर्जी निकलती है, जो और अधिक विस्तार का कारण बनती है. ऐसे में ब्रह्माण्ड जो थोड़ा सिकुड़ता है, सिकुड़ता ही रहेगा.

मौजूदगी के सबूत

कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट में वैज्ञानिकों की दिलचस्पी बनी रही. ब्रह्माण्ड से जुड़े हालिया आंकड़े बड़ी मजबूती से यह संभावना रखते हैं कि ब्रह्माण्ड में एक पॉजिटिव कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट है.

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