दुनिया का सबसे गहरा गड्ढा, कहा जाता है नरक का द्वार; रूस ने दी थी US को मात

Dec 13, 2024

इंसान अंतरिक्ष के राज खोजने में लगा है. लेकिन जमीन के अंदर क्या है, यह जानने की होड़ भी एक वक्त पर पूरे उफान पर थी.

ये होड़ थी दुनिया की दो महाशक्तियों सोवियत संघ और अमेरिका के बीच. इसकी शुरुआत हुई थी 1950 में और बाजी मारी थी रूस ने.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और अमेरिका के बीच कोल्ड वॉर शुरू हो चुका था. दोनों हर मामले में एक दूसरे से खुद को ऊंचा दिखाना चाहते थे.

इसके बाद जंग छिड़ी कि कौन धरती की सबसे ज्यादा गहराई में जा सकता है. फिर क्या था दोनों देशों ने अपनी-अपनी मशीनों को धरती की छाती में उतार दिया.

अमेरिका ने मोहोल नाम का प्रोजेक्ट शुरू किया. मैक्सिको के पास ग्वाडलूप आइलैंड पर ड्रिलिंग शुरू कर दी. 1961 तक 601 फीट ड्रिलिंग हो भी गई.

लेकिन बजट और खराब प्रबंधन का हवाला देकर अमेरिकी कांग्रेस ने इस प्रोजेक्ट के लिए फंड देने से इनकार कर दिया और अमेरिका का यह प्रोजेक्ट अधर में लटक गया.

लेकिन रूस अपने प्रोजेक्ट पर जुटा रहा और मरमंस्क प्रांत में कोला आइलैंड में ड्रिलिंग जारी रखी. इस प्रोजेक्ट का नाम था कोला सुपर डीप बोरहोल.

मई 1970 में जमीन के अंदर खोज की तलाश शुरू हुई और 1989 तक 12.26 किमी तक ड्रिलिंग हो गई. यह धरती की कुल गहराई से 2 प्रतिशत से भी कम था.

इतनी गहराई में टेंपरेचर 180 डिग्री सेल्सियस था. अब यहां से वैज्ञानिकों की असली मुश्किल शुरू हुई. ड्रिलिंग करने वाले उपकरण इतने टेंपरेचर में हार मान गए.

मगर 1992 तक ड्रिलिंग चली और 15 किलोमीटर तक जमीन खोद दी गई. लेकिन इसके आगे काम नहीं बढ़ गया. सोवियत यूनियन के पतन के बाद पैसों की किल्लत हो गई और काम रोकना पड़ा.

डीप बोरहोल को लेकर एक मिथक भी चर्चित है. कहा जाता है कि जब रूस 12.26 किमी से आगे ड्रिल कर रहा था, तब एक चैंबर क्षतिग्रस्त हो गया. इसके बाद चीखने-चिल्लाने की भयानक आवाजें आने लगीं.

हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो पाई. मगर इसके बाद इस जगह को नरक का द्वार कहा जाने लगा. कहा जाता है कि इसके बाद रूस ने खुदाई बंद कर दी. अब इसे पूरी तरह सील कर दिया गया है.

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