भयानक भूकंप में भी कैसे बच गई ताइवान की सबसे ऊंची बिल्डिंग?

Shwetank Ratnamber
Apr 05, 2024

रिक्टर पैमाने पर 7.4 तीव्रता वाले भीषण भूकंप ने ताइवान को हिलाकर रख दिया. इसे इंजीनियरिंग का चमत्कार ही कहेंगे, जिसकी वजह से देश की सबसे ऊंची और नायाब इमारत जमीदोंज होने से बच गई. 2003 में बनी ये बिल्डिंग आधिकारिक तौर पर 2009 तक दुनिया की सबसे ऊंची इमारत थी.

ताइपे 101, कैसे बच गई इसका रहस्य इसकी डिजाइन में छिपा है. इसे बचाने में अहम योगदान है एक विशाल स्टील ओर्ब का जिसे ट्यून्ड मास डैम्पर कहा जाता है. ये इमारत वास्तुशिल्प का नायाब नमूना है. इस बिल्डिंग को बनाने में स्टील के साथ खास कंक्रीट का इस्तेमाल किया गया.

इस बिल्डिंग को बिना किसी क्षति के भूकंपीय तरंगों के साथ बहने के हिसाब से बनाया गया था. इसका ट्यून्ड मास डैम्पर 92 मोटी तारों (केबल) की मदद से गगनचुंबी इमारत के भीतर लटका हुआ एक विशाल सुनहरा गोला है जो इस इसकी 87वीं और 92वीं मंजिल के बीच स्थित है.

660 टन वजनी यह उपकरण प्रभावी ढंग से धरती की गतिज ऊर्जा को अवशोषित करता है और इसे टूटने या गिरने से बचाता है. ऊंची-ऊंची इमारतों और पुलों को भूकंपरोधी बनाने यानी अर्थक्वेक का असर कम करने के लिए अक्सर इस तकनीक का इस्तेमाल होता है.

इस बिल्डिंग में फिट गोल्डन बॉल कैसे काम करती है, आइए बताते हैं. इस बॉल को भूकंपीय गति के जवाब में एनर्जी ट्रांसफर करने के लिए डिजाइन किया गया है. भूकंप आता है, तो धरती अलग-अलग फ्रीक्वेंसी पर हिलती है. धरती के नीचे की प्लेटें टकराती हैं तो ऊर्जा निकलती है. ऐसे में ट्यून्ड मास डैम्पर स्थापित करके एनर्जी को ट्रांसफर करके इन्हें भूकंपरोधी बनाने में मदद मिल सकती है.

जब भी ये इमारत या ऐसी कोई गगनचुंबी इमारत हिलती है, तो उसमें लगा डैम्पर का द्रव्यमान विपरीत दिशा में चलता है, ये जादुई चीज भूकंपीय तरंगों से ऊर्जा को अवशोषित और नष्ट करती है. इससे इमारत की गति के आयाम को कम करने और संरचनात्मक क्षति को कम करने में मदद मिलती है.

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