यूं भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
आइना देख कर तसल्ली हुई हम को इस घर में जानता है कोई
आप के बाद हर घड़ी हम ने आप के साथ ही गुजारी है
वो उम्र कम कर रहा था मेरी मैं साल अपने बढ़ा रहा था
उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जां पर चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़ किसी की आंख में हम को भी इंतिजार दिखे
वक्त रहता नहीं कहीं टिक कर आदत इस की भी आदमी सी है
आदतन तुम ने कर दिए वादे आदतन हम ने एतिबार किया
जिस की आंखों में कटी थीं सदियां उस ने सदियों की जुदाई दी है