आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं, मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता, कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
आप के बाद हर घड़ी हम ने, आप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई, जैसे एहसान उतारता है कोई
आइना देख कर तसल्ली हुई, हम को इस घर में जानता है कोई
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं, वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा, ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है
यहां दिए गए शेर गुलजार ने लिखे हैं. Zee Bharat ने इन्हें इंटरनेट से लिया है.