कभी जो ख्वाब था वो पा लिया है, मगर जो खो गई वो चीज क्या थी.

तब हम दोनों वक्त चुरा कर लाते थे, अब मिलते हैं जब भी फुर्सत होती है.

तुम बैठे हो लेकिन जाते देख रहा हूं, मैं तन्हाई के दिन आते देख रहा हूं.

थीं सजी हसरतें दुकानों पर जिंदगी के अजीब मेले थे.

खून से सींची है मैं ने जो जमीं मर-मर के, वो जमीं एक सितम-गर ने कहा उस की है.

मैं कत्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन मिरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है.

फिर खमोशी ने साज़ छेड़ा है फिर खयालात ने ली अंगड़ाई.

हर तरफ शोर उसी नाम का है दुनिया में कोई उस को जो पुकारे तो पुकारे कैसे.

उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी, सिर झुकाए हुए चुप-चाप गुजर जाते हैं.

जिधर जाते हैं सब, जाना उधर अच्छा नहीं लगता मुझे पामाल रस्तों का सफर अच्छा नहीं लगता